कमजोरी को ताकत में बेशक तब्दील किया जा सकता है. लेकिन, हमेशा ऐसा नहीं हो सकता. पूरा संसार अपवादों से भरा पड़ा है. तेजस्वी यादव को भी बिहार चुनाव कैंपेन में ये भी समझना होगा. और, बीते वाकयों से सबक लेने की भी कोशिश करनी होगी. वरना, लेने के देने पड़ते देर नहीं लगती है. ये भी शाश्वत सत्य है.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहार अधिकार यात्रा पर निकले हैं. ये यात्रा वोटर अधिकार यात्रा के बाद हो रही है. पिछली यात्रा कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई थी, ये यात्रा तेजस्वी यादव अकेले कर रहे हैं. वो महागठबंधन के बैनर तले हो रही थी, ये यात्रा आरजेडी की अपनी यात्रा है. लेकिन, कुछ चीजें कॉमन लगती हैं.
वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी चुनाव आयोग के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टार्गेट कर रहे थे. तेजस्वी यादव करीब करीब उसी अंदाज में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाना बना रहे हैं. जैसे राहुल गांधी जगह जगह प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘वोट-चोर’ बोल रहे हैं, तेजस्वी यादव भी वैसे ही नीतीश कुमार को ‘भ्रष्टाचार का पितामह’ बता चुके हैं – और जैसे राहुल गांधी न्यूज एजेंसी एएनआई के माइक पर ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ बोलकर आगे बढ़ जाते हैं, तेजस्वी यादव भी बिहार अधिकार यात्रा के दौरान नीतीश कुमार को ‘भ्रष्टाचारी’ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.
तेजस्वी यादव क्यों भूल रहे हैं कि बार बार माफी मांगने के बावजूद ‘जंगलराज’ के चुनावी जिन्न से अब तक पीछा नहीं छूटा है, और भ्रष्टाचार के नाम पर नीतीश कुमार को निशाना बनाना बैकफायर भी कर सकता है – जैसे मोदी पर निजी हमलों का खामियाजा राहुल गांधी को भुगतना पड़ा है, तेजस्वी यादव को भी लेने के देने पड़ सकते हैं.
जंगलराज के साये से पीछा छूटा नहीं, और…
सोशल साइट X पर तेजस्वी यादव की एक पिन-पोस्ट है, ‘अगर लालू जी BJP से हाथ मिला लेते तो वो आज हिंदुस्तान के राजा हरीशचंद्र होते. तथाकथित चारा घोटाला दो मिनट में भाईचारा घोटाला हो जाता अगर लालू जी का DNA बदल जाता.’
दिसंबर, 2017 की ये पोस्ट उसी लाइन पर है, जिसमें बीजेपी के विरोधी उस पर राजनीति का वाशिंग मशीन होने का इल्जाम लगाते हैं. तेजस्वी यादव अपनी जगह सही हो सकते हैं. नैरेटिव का खेल तो पहले भी रहा है, लेकिन मौजूदा दौर में ये बाजी पलट देने में ज्यादा असरदार साबित हो रहा है.
और, नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव भ्रष्टाचार का आरोप ऐसे वक्त लगा रहे हैं, जब वो खुद और उनका पूरा परिवार ऐसे ही आरोपों के साये से मुक्त नहीं हो सका है. बेशक आरोप, सिर्फ आरोप होते हैं – लेकिन, तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव तो वो दायरा भी लांघ चुके हैं. क्योंकि, चारा घोटाले में उन पर आरोप साबित हो चुका है, और वो सजायाफ्ता हैं.
तेजस्वी यादव बेरोजगारी, नौकरी और बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार को घेर सकते हैं. और, इसमें प्रशांत किशोर का ‘नौंवी फेल’ वाला कैंपेन भी बेअसर रह सकता है, लेकिन भ्रष्टाचार की मिसाइल बैकफायर भी कर सकती है.
बिहार अधिकार यात्रा में जहानाबाद से आगे बढ़ते ही तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के प्रति जनता की बढ़ती नाराजगी का मामला जोर शोर से उठाया. सरकारी दफ्तरों और थानों में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया. जबरन वसूली और बढ़ते अपराध का भी हवाला दिया. आरोप लगाया कि लोग अपने घरों में ही असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
ये बात तो नीतीश कुमार और बीजेपी हर चुनाव में लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार की याद दिलाते हुए कहते हैं, और उसी को जंगलराज के रूप में पेश करते हैं. तेजस्वी यादव को ये तो समझ ही लेना चाहिए कि जब तक वो नीतीश कुमार की कमजोर नस पकड़ कर उस पर वार नहीं करते, कोई राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला है.
दो दो बार बिहार के डिप्टी सीएम रह चुके तेजस्वी यादव कहते हैं, जनता भ्रष्ट सरकार से तंग आ चुकी है… बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता… राज्य में कोई भी सुरक्षित महसूस नहीं करता… अपराधी ‘विजय’ और ‘सम्राट’ बन गए हैं.
असल में तेजस्वी यादव बिहार के दोनों डिप्टी सीएम को टार्गेट कर रहे हैं. विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी को. लोहे को लोहा निश्चित तौर पर काटता है, लेकिन राजनीति में भ्रष्टाचार को भी भ्रष्टाचार काट पाए जरूरी नहीं है. जरूरी इसलिए नहीं है, क्योंकि जब तक लोग ऐसी बातों पर यकीन नहीं करेंगे, गंभीर आरोप भी हवा हवाई ही साबित होंगे.
बंदूक की जगह कलम बांटना चलेगा
पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह के गढ़ मोकामा पहुंचे तेजस्वी यादव ने कहा, ‘यहां लोग बंदूक बांट रहे हैं, लेकिन हम कलम बांट रहे हैं… कलम की ताकत को समझिए… तेजस्वी आएगा तो आपके बच्चे का भविष्य बेहतर करेगा.’
अनंत सिंह के इलाके में घोड़े पर सवार तेजस्वी की बंदूक के बदले बच्चों को कलम थमाने की बात असरदार हो सकती है. अनंत सिंह के बहाने नीतीश कुमार को घेरने का ये दांव चल सकता है. अनंत सिंह ने जेडीयू से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. पूरे बिहार में तो नहीं, लेकिन मोकामा में तो तेजस्वी का दांव चल ही सकता है – और ऐसे ही दांव पूरे बिहार के लिए भी तलाशने होंगे.
राहुल गांधी 2019 के आम चुनाव में मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगवा कर टार्गेट कर रहे थे, और अब भी कुछ बदला नहीं है. वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा भी मिलता जुलता ही है. बिहार चुनाव में इस नारे से होने वाले नुकसान का राहुल गांधी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन तेजस्वी यादव को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर भला जंगलराज और चारा घोटाले के साये से निकलना कैसे संभव हो पाएगा? राहुल गांधी का जो दांव 2019 में फेल हो चुका है, तेजस्वी यादव उसी नाव पर सवार होकर 2025 की वैतरणी पार करना चाहते हैं.
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