मौसम में बदलाव, रोगों का प्रकोप और नवरात्रि… नौ देवियों का ही रूप हैं हरड़, ब्राह्मी, अलसी जैसी नौ औषधियां – shardiya navratri ayurvedic health devi worship scientific importance ntcpvp

मौसम में बदलाव, रोगों का प्रकोप और नवरात्रि… नौ देवियों का ही रूप हैं हरड़, ब्राह्मी, अलसी जैसी नौ औषधियां – shardiya navratri ayurvedic health devi worship scientific importance ntcpvp


शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. घर-घर में देवी की आराधना जारी है. नवरात्रि का आज दूसरा दिन है, जिसमें देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा होती है. खास बात ये है कि आज 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस भी है. खगोलीय तौर पर आज की खास बात ये है कि आज रात और दिन दोनों ही बराबर होते हैं.

नवरात्रि के पर्व का आयुर्वेद के साथ गहरा संंबंध है, बल्कि यह नौ दिन का अनुष्ठान ही आरोग्य के लिए ही होता है. शरद ऋतु की शुरुआत में पड़ने वाली यह नवरात्रि सिर्फ पूजा या अनुष्ठान का समय नहीं है, बल्कि यह एक तरीके से आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक कायाकल्प का समय होता है.  नवरात्रि का पर्व उस समय आता है, जब वर्षा की ऋतु समाप्ति की ओर होती है और धीरे-धीरे हम सर्दी के मौसम की ओर बढ़ रहे होते हैं.

ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है नवरात्रि, क्या कहते हैं आयुर्वेदाचार्य
देखा जाए तो हम एक बदलाव की ओर प्रवेश कर रहे होते हैं. आयुर्वेद की भाषा में इसे ऋतु संधि कहते हैं. ऋतु परिवर्तन, संधि काल, वातावरण में बदलाव और मौसम बदलने की इस प्रक्रिया के दौरान नवरात्रि जैसा उत्सव और इसमें भी देवी की पूजा का विधान, इन सभी के सामंजस्य और संयोग के पीछे बड़े वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं.

डॉ प्रदीप चौधरी (आयुर्वेदाचार्य, शतभिषा आयुर्वेद लखनऊ) इस बारे में विस्तार से बताते हैं और कहते हैं कि हमारे हर त्योहार और उनको मनाए जाने की वजह बहुत वैज्ञानिक है और यह शरीर और वातावरण के ज्ञान से जुड़े हुए हैं.

उनका कहना है कि, आयुर्वेद के अनुसार, इस समय सबसे पहले पाचन अग्नि (अग्नि) को संतुलित करना जरूरी है. वर्षा में कमजोर हुई अग्नि शरद ऋतु में पित्त को बढ़ा सकती है, जिससे बुखार, त्वचा रोग, आंखों में जलन, चिड़चिड़ापन और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

उपवास का असली अर्थ समझने की जरूरत
इसलिए नवरात्रि में उपवास का विधान है. उपवास का मतलब केवल भोजन छोड़ना नहीं, बल्कि शरीर की अग्नि को संतुलित करना और जमा हुए विषैले तत्वों (आम) को बाहर निकालना है. इसका अर्थ आलू, सिंघाड़ा या तली-भुनी चीजों से पेट भरना नहीं है. सच्चा उपवास है संयम, हल्का सात्त्विक भोजन और शुद्धिकरण करने वाली जड़ी-बूटियों का सेवन.

डॉ. चौधरी कहते हैं कि नवरात्रि के नौ दिन में नौ देवियों की पूजा होती है और ये सभी देवियां नौ औषधियों का प्रतीक हैं, इन सभी औषधियों के गुण हर देवी अपने स्वरूप में दर्शाती हैं और यह आयुर्वेद में स्वास्थ्य के प्रति हमारे प्राचीन ऋषियों-मनीषियों की जागरूकता को सामने रखता है.

Navratri

1 शैलपुत्री –  हरितकी या हरड़ (Terminalia chebula)

नवरात्रि की पहली देवी शैलपुत्री हैं. इसी तरह हरितकी और देवी शैलपुत्री के बीच सीधा संबंध है. हरितकी को देवी शैलपुत्री का ही एक रूप माना जाता है. हरितकी आयुर्वेद में एक प्रमुख औषधि है जो भूख बढ़ाने (दीपन) और कायाकल्प (रसायन) करने के गुणों के कारण प्रसिद्ध है.

प्रकृति: उष्ण
गुण:
त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करती है, खासकर वात और कफ के दोष को दूर कर मल साफ करती है, अग्नि को प्रज्वलित करती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है. कब्ज, पाचन समस्याएं, गले की खराश, श्वास रोग, बवासीर और मूत्र रोग में लाभकारी है. तिब्बत में इसे “औषधियों का राजा” कहा जाता है.

2 ब्रह्मचारिणी – ब्राह्मी (Bacopa monnieri)
दूसरी देवी ब्रह्मचारिणी हैं. यह देवी ब्रह्मचर्य, स्थिरता और  संयम की देवी हैं. इसी तरह ब्राह्मी भी शीतलता का गुण लिए हुए हैं और पित्त के दोष को शांत करती है.

प्रकृति: शीतल
गुण:
स्मरण शक्ति बढ़ाती है, पित्त को शांत करती है, मन को स्थिर करती है.
उपयोग: अनिद्रा, तनाव, अवसाद और मानसिक थकान में उपयोगी. बच्चों और विद्यार्थियों के लिए बुद्धि वर्धक.

3 चंद्रघंटा – चंद्रसूर (Lepidium sativum)
चंद्रघंटा और चंद्रसूर के बीच सीधा संबंध नवरात्र के तीसरे दिन से हैं. चंद्रघंदा देवी की पूजा तीसरे दिन की जाती है और जिनके स्वरूप के अनुरूप औषधीय गुणों वाले ‘चन्दुसूर’ या ‘चर्महंती’ नामक पौधे को चंद्रसुर कहा जाता है, यह पेट को शीतलता देते हुए गैस, कब्ज को दूर करता है. 

प्रकृति: उष्ण
गुण:
पाचन सुधारती है, शारीरिक बल बढ़ाती है और दूध उत्पादन में मदद करती है.
उपयोग: प्रसव के बाद स्त्रियों में दूध बढ़ाने, हड्डियों को मजबूत करने, गैस, कब्ज और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक.

4 कूष्मांडा – कद्दू (Benincasa hispida)
कूष्मांडा यानी चौथे दिन की देवी. इनका संबंध कद्दू (या सफेद कद्दू/पेठा) से होता है, जो नवरात्रि के चौथे दिन मां को प्रिय भोग के रूप में चढ़ाया जाता है. देवी कूष्मांडा सृष्टि की निर्माता हैं, जो अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड में ऊर्जा और प्रकाश लाती हैं. उन्हें अष्टभुजा के रूप में दर्शाया जाता है, जो ज्ञान, धैर्य और शक्ति प्रदान करती हैं.

प्रकृति: शीतल
गुण:
पित्त को शांत करता है, हृदय और मस्तिष्क को प्रसन्न रखता है.
उपयोग: बुखार, पित्त विकार, हृदय की धड़कन, मूत्र रोग और मानसिक तनाव में लाभकारी. यह शरीर को हल्कापन और ताजगी देता है.

5 स्कंदमाता – अलसी (Linum usitatissimum)
नवरात्रि के पांचवें दिन पूजी जाने वाली देवी स्कंदमाता को अलसी का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि अलसी वात, पित्त और कफ के रोगों को नष्ट करती है और स्कंदमाता की आराधना से मन को शांति मिलती है, साथ ही संतान संबंधी परेशानियां दूर होती हैं.

प्रकृति: उष्ण
गुण:
वात को शांत करती है, बल और ओज बढ़ाती है.
उपयोग: अलसी का तेल हृदय के लिए लाभकारी है. इसमें ओमेगा-3 होता है, जो नसों को मजबूत करता है. पुरुषों में वीर्य वृद्धि और स्त्रियों में हार्मोन संतुलन में मददगार.

6 कात्यायनी – मचिका (Hibiscus cannabinus)
कात्यायनी मां दुर्गा का एक स्वरूप हैं, जो नवदुर्गाओं में छठवें स्थान पर हैं और नवरात्रि के छठे दिन उनकी पूजा की जाती है. उन्हें महर्षि कात्यायन की पुत्री माना जाता है. ‘मचिका’ देवी कात्यायनी से जुड़ी एक आयुर्वेदिक औषधि का नाम है. 

प्रकृति: शीतल
गुण:
रक्त शोधक, पित्त को शांत करने वाली, यकृत की रक्षा करने वाली.
उपयोग: रक्ताल्पता, पीलिया, स्त्री रोग और शरीर की गर्मी में लाभकारी. इसकी पत्तियां और बीज औषधीय रूप से उपयोगी हैं.

7 कालरात्रि – नागदोन (Euphorbia tithymaloides)
कालरात्रि दुर्गा मां का सातवां स्वरूप हैं और इन्हें ‘नागदोन’ या ‘नागदमन’ औषधि के रूप में भी जाना जाता है, इस जड़ी के कई लाभ हैं, यह पेट के संक्रमण में लाभदायक है और नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करती है.

प्रकृति: उष्ण
गुण:
कृमिनाशक, वात-कफ को शांत करने वाली.
उपयोग: दमा, खाँसी, त्वचा रोग, पेट के कीड़े और संक्रमण में प्रभावी. इसे घर के आसपास लगाने से मच्छर और नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है.

Navratri Puja

8 महागौरी – तुलसी (Ocimum sanctum)
महागौरी नवदुर्गा का अष्टम रूप हैं, उन्हें तुलसी के रूप में भी जाना जाता है. तुलसी एक पवित्र और औषधीय पौधा है जो देवी के औषधीय गुणों का प्रतिनिधित्व करता है. तुलसी घर के वातावरण को भी सकारात्मक बनाती है. 

प्रकृति: उष्ण
गुण:
कफ-वात को शांत करती है, ओज बढ़ाती है, ज्वरनाशक.
उपयोग: सर्दी-जुकाम, खाँसी, बुखार, हृदय रोग, मानसिक शांति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में उत्तम. तुलसी घर के वातावरण को भी शुद्ध करती है.

9 सिद्धिदात्री – शतावरी (Asparagus racemosus)
सिद्धिदात्री, देवी दुर्गा का नौवां और अंतिम रूप हैं, जिन्हें नारायणी या शतावरी भी कहा जाता है, क्योंकि वे एक सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी हैं और शतावरी एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो बल, बुद्धि और वीर्यवर्धक है, साथ ही हृदय को बल देने वाली और कई विकारों को दूर करने वाली महाऔषधि है

प्रकृति: शीतल
गुण:
स्त्री रोगों में अमृत समान, पित्त को शांत करती है, बल और वीर्य वर्धक.
उपयोग: गर्भधारण, दूध उत्पादन, मासिक धर्म की समस्याएँ, अनिद्रा, वात-पित्त विकार और कमजोरी में लाभकारी.

नवरात्रि का यह विधान हमें सिखाता है कि त्योहार केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि मौसम के बदलाव के साथ शरीर को संतुलित रखने का प्राकृतिक विज्ञान है. यह जड़ी बूटियां न सिर्फ औषधि हैं, बल्कि देवियों के स्वरूप भी हैं.

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