आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने से लगभग हर क्षेत्र में बदलाव आया है. लोगों की टेक्नोलॉजी पर निर्भरता बढ़ी है. इसका असर एजुकेशन पर भी पड़ रहा है और एजुकेशन सिस्टम में भी अहम बदलाव देखने को मिल रहा है. होमवर्क से लेकर बच्चों को टीचिंग तक का पैटर्न बदल रहा है और अब इन कामों के लिए भी एआई का चलन पढ़ रहा है. चलिए समझते हैं कि वहां किस तरह के परिवर्तन आ रहे हैं.
क्या है 10 मिनट होमवर्क रूल?
आजकल बच्चों के अभिभावकों और शिक्षकों के बीच 10 मिनट होमवर्क रूल की लोकप्रियता बढ़ी है. यह रूल कहता है कि छात्रों को उनकी कक्षा के हिसाब से रोज केवल दस मिनट का होमवर्क मिलना चाहिए. यानी तीसरी कक्षा के छात्र को 30 मिनट और सातवीं कक्षा के छात्र को 70 मिनट का ही होमवर्क दिया जाना चाहिए. भारत की पैरेंट-टीचर एसोसिएशन (पीटीए) और अमेरिका की नेशनल एजुकेशन एसोसिएशन जैसे संघ और शिक्षक भी इसका समर्थन कर रहे हैं. हालांकि ये सिर्फ एक गाइडलाइन है और कोई स्कूल इसे मानने के लिए बाध्य नहीं है.
एजुकेटर्स का मानना है कि ट्यूशन की थकान और ज्यादा होमवर्क से बच्चों में होने वाले तनाव को कम करने के लिए यह जरूरी है. इससे होमवर्क मैनेज करना और बाकी हॉबीज के लिए समय निकालना आसान हो जाएगा. कम होमवर्क चलते छात्र उसे समय पर और फोकस के साथ पूरा कर पाएंगे. इससे उनमें टाइम मैनेजमेंट और ऑर्गनाइजेशन जैसे जरूरी स्किल भी विकसित होंगे.
कक्षाओं में एआई टीचर्स
कक्षाओं में एआई बॉट और असिस्टेंट बच्चों को पढ़ा रहे हैं. भारत का एआई ट्यूटर मार्केट 39 प्रतिशथ की सालाना बढ़त के साथ साल 2030 तक 393 करोड़ तक पहुंच सकता है. यह असिस्टेंट छात्रों को व्यक्तिगत सपोर्ट देते हैं. और सीखने की प्रक्रिया को मजेदार बनाते हैं. साल 2023 में केरल के तिरुवनंतपुरम के एक स्कूल ने देश की पहली एआई-ह्यूमनॉइड टीचर आईरिस का अनावरण किया, जो जनरेटिव एआई और छात्रों से बातचीत की मदद से सीखने की प्रक्रिया को मजेदार बनाती है.
स्कूल पारंपरिक होमवर्क नीतियों पर दोबारा क्यों सोच रहे हैं?
एआई की बढ़ती लोकप्रियता के कारण अब छात्र निबंध लिखने के लिए भी अपनी समझ के बजाए चैट-जीपीटी का इस्तेमाल कर रहे हैं. पारंपरिक होमवर्क में इसका चलन बढ़ गया है. शिक्षकों के मन में इस चीटिंग के प्रति ड़र है. छात्रों के पास ए-आई जनरेटेड कंटेंट की भरमार है. आसान प्रॉम्प्ट्स लिखकर वो तुरंत होमवर्क के लिए आइडिया, उदाहरण, यहां तक कि रिसर्च के लिए साइटेशन तक ढूंढ सकते हैं. इसलिए अब पढ़ाई के तरीके को बदलने पर सोचा जा रहा है.
एआई टीचर्स के क्या फायदे और चुनौतियां हैं?
ह्यूमनॉइड टीचर्स को शिक्षकों की मदद के लिए प्रोग्राम किया गया है. हालांकि इन्हें उनके विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है.
फायदे-
• इंसानों के मुकाबले एआई टीचर्स में ज्यादा ज्ञान से प्रोग्राम किया जा सकता है. उनके पास हर विषय पर ज्ञान उपलब्ध है.
• इनका ध्यान पाठ से नहीं भटक सकता, इसलिए पढ़ाई के दौरान बेकार की चर्चा से बचा जा सकता है.
• इमोशंस ना होने की वजह से ये छात्रों पर आपा नहीं खोते और बिना थके लगातार पढ़ा सकते हैं.
• ये छात्रों के लिए हर समय उपलब्ध होते हैं.
चुनौतियां-
• रोबोट्स किसी भी समय खराब हो सकते हैं, जिससे पढ़ाई में रूकावट आ सकती है. उन्हें ठीक करने में समय लगता है. इस वजह से काफी सारी जानकारी नष्ट हो सकती है और इन्हें फिर प्रोग्राम करना पड़ सकता है.
• रोबोटों को छात्रों को कंट्रोल करने में परेशानी हो सकती है क्योंकि वे उन्हें गंभीरता से नहीं लेते.
• इन्हें बेहतर संचालन के लिए बहुत सारी बिजली और तेज इंटरनेट कनेक्शन जैसी टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है, जिसमें बहुत खर्चा आ सकता है.
• एआई रोबोट्स और टूल्स पर बहुत ज्यादा निर्भरता छात्रों के एक-दूसरे से जुड़ाव, सोचने की क्षमता और सहयोग को कम करती है.
• इन्हें पहले से फीड डेटा के आधार पर ट्रेन किया जाता है, इसलिए इनके जवाब में पक्षपात (bias) दो सकता है. साथ ही गलत सूचना फैलने का जोखिम भी रहता है.
आने वाले समय में छात्रों का सीखने का अनुभव कैसे बदलेगा?
एआई छात्रों की जरूरत के हिसाब से पढ़ाई का कंटेंट तैयार करके और उन्हें तुरंत फीडबैक देकर उनके पढ़ाई के अनुभव को बेहतर कर सकता है. वर्चुअल टेक्नोलॉजी (VR) की मदद से उन्हें इमर्सिव लर्निंग का अनुभव करा सकता है, जिससे मुश्किल कॉन्सेप्ट आसानी से समझ आए. एआई टूल्स इस्तेमाल करके वो कई फॉर्मेट्स में कंटेंट बनाकर अपने कम्यूनिकेशन स्किल्स निखार सकते हैं. एनालिटिक्स छात्रों के कक्षा में प्रदर्शन का ब्योरा दे सकते हैं, जिससे उनके लिए बेहतर सलेबस और पढ़ाने के तरीके तैयार करने में मदद मिले.
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