बैतूल: कफ सिरप पीने से वेंटिलेटर पर मासूम, दोनों किडनी फेल, प्रवीण सोनी ने लिखी थी दवाई – betul child cough syrup kidney failure ventilator lclnt

बैतूल: कफ सिरप पीने से वेंटिलेटर पर मासूम, दोनों किडनी फेल, प्रवीण सोनी ने लिखी थी दवाई – betul child cough syrup kidney failure ventilator lclnt


मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के अमला विकासखंड के छोटे से गांव टीकाबर्री में रहने वाले गोकुल यदुवंशी के घर इन दिनों मातम का माहौल है. गोकुल का 3 साल 8 माह का बेटा हर्ष यदुवंशी, जो घर का सबसे चंचल और प्यारा बच्चा था, आज नागपुर मेडिकल कॉलेज के वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है. परिवार का दावा है कि उसकी इस हालत के लिए डॉक्टरों की लापरवाही और कोल्ड्रिफ सिरप जिम्मेदार है.

एक महीने पहले आया था बुखार
करीब एक माह पहले हर्ष को हल्का बुखार आया. चिंता में पड़े परिजन उसे परासिया के डॉक्टर प्रवीण सोनी के पास ले गए. डॉक्टर ने परचे में कोल्ड्रिफ सिरप समेत कुछ दवाइयां लिख दीं. हर्ष ने दवाइयां लीं, लेकिन ठीक होने की बजाय उसकी हालत बिगड़ने लगी. 25 सितंबर को फिर से उसकी तबीयत ज्यादा खराब हुई तो परिवार उसे परासिया के ही डॉक्टर अमित ठाकुर के पास लेकर पहुंचा. डॉक्टर ने इलाज किया, लेकिन इस बार भी हर्ष की तबीयत सुधरने के बजाय और बिगड़ गई.

हर्ष का यूरिन बंद हुआ
कुछ दिनों बाद अचानक हर्ष का यूरिन बंद हो गया. परिवार ने उसे बैतूल के चार अलग-अलग अस्पतालों में दिखाने की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी भर्ती नहीं किया. हालत लगातार नाजुक होती जा रही थी, इसलिए मजबूर होकर परिजन हर्ष को नागपुर ले गए. वहां पहले कुछ प्राइवेट अस्पतालों में दिखाया गया. इलाज का खर्च इतना ज्यादा था कि मध्यमवर्गीय परिवार का बजट टूटने लगा. आखिरकार उसे नागपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि हर्ष की दोनों किडनी फेल हो चुकी हैं.

वेंटिलेटर पर है हर्ष
अब हर्ष वेंटिलेटर पर है और उसकी हालत बेहद गंभीर है. परिवार का कहना है कि दोनों डॉक्टरों ने बिना सोचे-समझे कोल्ड्रिफ सिरप दी, जिसकी वजह से उनकी मासूम जान खतरे में है. हर्ष के दादा देवा यदुवंशी फोन पर रोते हुए बताते हैं कि उनका पोता अब कोई मूवमेंट भी नहीं कर पा रहा है.

ढाई लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर चुका है परिवार
परिवार अब तक इलाज में ढाई लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर चुका है. यह संघर्ष सिर्फ पैसों का नहीं, बल्कि उस नन्हीं जान को बचाने का है, जो अभी जिंदगी की पहली पाठशाला में कदम रखने भी नहीं पहुंचा था. हर्ष की सांसें फिलहाल मशीनों के सहारे चल रही हैं और पूरा परिवार भगवान से चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठा है.

—- समाप्त —-



Source link

Leave a Reply