मिशन बिहार के ‘संकटमोचक’ बने धर्मेंद्र प्रधान, चिराग को मनाने और NDA में सीट बंटवारे के पीछे की कहानी – bihar elections dharmendra pradhan story behind convincing chirag seat sharing nda ntc

मिशन बिहार के ‘संकटमोचक’ बने धर्मेंद्र प्रधान, चिराग को मनाने और NDA में सीट बंटवारे के पीछे की कहानी – bihar elections dharmendra pradhan story behind convincing chirag seat sharing nda ntc


चुनाव आयोग ने जैसे ही बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, पटना में राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी. सबसे पहला मुद्दा उठा- NDA में सीटों के बंटवारा का. इस पूरी कवायद के केंद्र में थे बीजेपी के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) प्रमुख नेता चिराग पासवान. 

चुनाव अधिसूचना की स्याही सूखी भी नहीं थी कि चिराग पासवान के खेमे ने बीजेपी पर ज़्यादा सीटों के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. एलजेपी (R) के एक वरिष्ठ नेता ने मज़ाकिया लहजे में कहा था कि हमारा लकी नंबर 9 है, इसलिए हम उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जिनका अंक 9 है. ये बयान आत्मविश्वास और सोच-समझकर लिए गए फैसलों की ओर इशारा करता है. 

वहीं, अपनी संयमित बातचीत शैली के लिए जाने जाने वाले धर्मेंद्र प्रधान ने एनडीए के सहयोगियों के साथ कई बार विचार-विमर्श किया, लेकिन चिराग तक पहुंचना मुश्किल साबित हुआ. एलजेपी (आर) 40 से ज़्यादा सीटों की मांग करते हुए अपनी ज़िद पर अड़ गई. 

कई दौर की बातचीत के बाद धर्मेंद्र प्रधान और भाजपा महासचिव विनोद तावड़े गतिरोध तोड़ने के लिए चिराग पासवान के आवास पर गए. हालांकि बैठक बेनतीजा रही. कुछ ही घंटों में चिराग ने अपने करीबी सांसद अरुण भारती को सीटों पर बातचीत के लिए आधिकारिक वार्ताकार नियुक्त कर दिया. ये कदम दोनों दलों के बीच बढ़ते तनाव का संकेत माना गया.

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देर रात हुई बातचीत के बाद बनी बात

ये गतिरोध तब तक जारी रहा, जब तक केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने हस्तक्षेप कर चिराग पासवान से भाजपा के 25 सीटों वाले फॉर्मूले को मानने की अपील नहीं की,लेकिन चिराग अपने रुख पर कायम रहे. इसके बाद चिराग के आवास पर देर रात हुई बैठक ने पूरे समीकरण को बदल दिया. 

सूत्रों का कहना है कि लंबी चर्चा के बाद धर्मेंद्र प्रधान ने चिराग को 29 सीटों के अंतिम समझौते पर सहमत होने के लिए मना लिया. बैठक समाप्त होते ही दोनों नेता मुस्कुराते और हाथ मिलाते हुए देखे गए,  जो बिहार चुनाव से पहले एनडीए की सबसे अहम बातचीतों में से एक के सफल अंत का संकेत था.

मिशन बिहार के लिए बीजेपी के मार्गदर्शक बने धर्मेंद्र प्रधान

इस सहज समझौते के पीछे धर्मेंद्र प्रधान का हाथ था, जो एक रणनीतिकार हैं और अपने शांत स्वभाव और तीक्ष्ण राजनीतिक सूझबूझ के लिए जाने जाते हैं.बिहार चुनाव के लिए भाजपा के प्रभारी बनाए गए धर्मेंद्र प्रधान की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ समन्वय तक सीमित नहीं है,वे पार्टी के भरोसेमंद क्राइसिस मैनेजर हैं, जिन्हें अक्सर तब मैदान में उतारा जाता है, जब हालात जटिल हों. बिहार की राजनीति में उनका अनुभव लंबा और असरदार रहा है. 

बिहार में 2010 में एनडीए की भारी जीत (243 में से 206 सीटें) की पटकथा लिखने से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (40 में से 31 सीटें) तक, बिहार के चुनावी मानचित्र पर प्रधान की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है.

धर्मेंद्र प्रधान की सफलता का रिकॉर्ड कई राज्यों में फैला हुआ है..

– उत्तर प्रदेश (2022): भाजपा की लगातार दूसरी बार जीत सुनिश्चित की.

– हरियाणा (2024): एंटी-इंकंबेंसी के बावजूद तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनवाई. 

– उत्तराखंड (2017): पार्टी को सत्ता में वापस लाने में अहम भूमिका.

– पश्चिम बंगाल (2021): नंदीग्राम पर खास फोकस, जहां ममता बनर्जी को हार का सामना करना पड़ा.

– ओडिशा: जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत कर भविष्य की जीत की नींव रखी.

भाजपा के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार

धर्मेंद्र प्रधान की असली ताकत उनके संगठन-निर्माण कौशल, सहज लेकिन प्रभावी बातचीत शैली और बिना किसी शोर-शराबे के गतिरोध सुलझाने की क्षमता में छिपी है. यही गुण उन्हें जटिल गठबंधनों और सूक्ष्म राजनीतिक समीकरणों के बीच भाजपा का सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार बनाते हैं. जैसे-जैसे बिहार अब चुनावों की ओर बढ़ रहा है, ‘डबल इंजन सरकार’ को एकजुट रखने और एनडीए को एक दिशा में आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी में धर्मेंद्र प्रधान की रणनीतिक चतुराई और भरोसेमंद छवि निर्णायक साबित हो सकती है. भाजपा के लिए वे न सिर्फ़ संगठन की रीढ़ हैं, बल्कि वह उसकी ‘विजयी रणनीति’ का विश्वसनीय चेहरा भी बने हुए हैं. 

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