भारत में महिलाओं की हेल्थ से जुड़े कई मुद्दों पर अब समाज और मेडिकल में खुलकर चर्चा होने लगी है. लेकिन ऑटोइम्यून बीमारियां एक ऐसा जरूरी हेल्थ प्रॉब्लम विषय है, जो अब भी चर्चा से बाहर रह जाता है. हाल ही में गुजरात के द्वारका में आयोजित भारतीय रुमेटोलॉजी एसोसिएशन, IRACON 2025 के 40 वें वार्षिक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इस गंभीर विषय पर रोशनी डाली. इस सम्मेलन में यह हैरान करने वाला तथ्य सामने आया कि ऑटोइम्यून बीमारियों से पीड़ित हर 10 मरीजों में से लगभग 7 महिलाएं होती हैं यानी 70 प्रतिशत ऑटोइम्यून मरीज महिलाएं होती हैं. यह आंकड़ा न सिर्फ परेशानी वाला है, बल्कि यह भी बताता है कि महिलाओं की लाइफस्टाइल, हार्मोन, और सामाजिक परिस्थितियां किस तरह उन्हें इन बीमारियां के प्रति ज्यादा सेंसिटिव बनाती हैं. तो चलिए जानते हैं कि आखिर ऑटोइम्यून बीमारियां क्या होती हैं और यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा क्यों होती है.
क्या होती हैं ऑटोइम्यून बीमारियां?
ऑटोइम्यून बीमारियों का मतलब ऐसी बीमारियां हैं, जिसमें शरीर का अपना इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही हेल्दी टिशू और ऑर्गन पर हमला करने लगता है. आम तौर पर यह सिस्टम शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाता है, लेकिन ऑटोइम्यून डिसऑर्डर में यही सुरक्षा सिस्टम शरीर के लिए खतरा बन जाता है. इन बीमारियों में शरीर के जोड़ों, स्किन, मांसपेशियों, ब्लड वेसल्स और इंटरनल ऑर्गन को नुकसान पहुंच सकता है. कुछ आम ऑटोइम्यून बीमारियों में रुमेटीइड गठिया, ल्यूपस, हाइपोथायरायडिज्म और सोरायसिस शामिल हैं.
ऑटोइम्यून बीमारियां महिलाओं में ज्यादा क्यों होती है
एक्सपर्ट्स के अनुसार, ऑटोइम्यून बीमारियां महिलाओं में पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा पाई जाती हैं. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. जैसे –
1. हार्मोनल बदलाव: महिलाओं के शरीर में हार्मोन, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं. पीरियड्स, प्रेगनेंसी और मेनोपॉज जैसे चरणों में हार्मोन में बदलाव होता है, जिससे शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया खराब हो सकती है.
2. जेनेटिक कारण: कुछ बीमारियां परिवारों में चलती हैं. अगर किसी महिला की मां या बहन को ऑटोइम्यून बीमारी है, तो उस महिला में भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है.
3. इम्यून सिस्टम की सेंसिटिविटी: महिलाओं का इम्यून सिस्टम पुरुषों की तुलना में ज्यादा एक्टिव होता है. यही कारण है कि वे संक्रमण से बेहतर लड़ पाती हैं, लेकिन कभी-कभी यही एक्टिवनेस शरीर के अपने ही अंगों पर हमला कर देती है.
भारत में स्थिति क्यों ज्यादा खराब?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 70 प्रतिशत ऑटोइम्यून मरीज महिलाएं होती हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि ज्यादातर महिलाएं डॉक्टर के पास तब आती हैं जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है. कई महिलाएं बार-बार थकावट, जोड़ों का दर्द, स्किन की समस्याएं या लगातार बुखार जैसे लक्षणों को नजरअंदाज करती रहती हैं. वे इन्हें सामान्य कमजोरी या उम्र का असर समझ बैठती हैं. वहीं भारत में पर्यावरण और लाइफस्टाइल की समस्याएं इस स्थिति को और बिगाड़ देती हैं. शहरों में बढ़ता प्रदूषण और संक्रमण भी इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है. इसके अलावा खराब खानपान, तनाव, और नींद की कमी से स्थिति खराब होने लगती है.
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