Satellite Technology: अंतरिक्ष में घूमते हुए उपग्रह (सैटेलाइट) लाखों किलोमीटर दूर दिखाई देते हैं फिर भी हम उन्हें कंट्रोल कर पाते हैं कमांड भेजते हैं, डेटा लेते हैं और उनकी कक्षा बदलते हैं. यह सब संभव होता है सिग्नल, एंटीना और जमीन स्थित कंट्रोल सेंटर के व्यवस्थित मिलन से. आइए सरल भाषा में समझते हैं कि यह पूरा प्रोसेस कैसे काम करता है.
ग्राउंड स्टेशन और मिशन कंट्रोल
हर सैटेलाइट का एक या कई ग्राउंड स्टेशन होते हैं बड़े एंटीना वाले वे केंद्र जो उपग्रह के साथ रेडियो सिग्नल भेजते और प्राप्त करते हैं. मिशन कंट्रोल यानी कंट्रोल रूम यह तय करता है कि कौन से कमांड भेजने हैं कब सैटेलाइट को मनोवैज्ञानिक आदेश दिए जाएं और प्राप्त टेलीमीटर डेटा (Telemetry) की निगरानी की जाती है. ग्राउंड स्टेशन हमेशा सैटेलाइट का ट्रैक रखता है और उसे आवश्यक कमांड देता है यह प्रक्रिया Telemetry, Tracking & Command (TT&C) के नाम से जानी जाती है.
सिग्नल कैसे जाता और आता है
जब कंट्रोल सेंटर कोई आदेश भेजता है, तो वह रेडियो तरंगों के रूप में ग्राउंड एंटीना से निकलता है इसे अपलिंक कहते हैं. सैटेलाइट उस सिग्नल को प्राप्त कर के अपने ऑन-बोर्ड कंप्यूटर के द्वारा पढ़ता है और कमांड लागू कर देता है. वहीं सैटेलाइट द्वारा भेजा गया डेटा जैसे इमेज, सिस्टम हेल्थ या एक्सपेरिमेंट का रिजल्ट जमीन पर आने वाले सिग्नल को डाउनलिंक कहते हैं. ये दोनों सिग्नल अलग-अलग फ़्रीक्वेंसी बैंड (जैसे S-band, X-band, Ka-band) में होते हैं ताकि इंटरफेरेंस कम रहे और डेटा स्पीड बढ़े.
लेज़र और रीयल-टाइम कनेक्शन
कुछ आधुनिक मिशनों में रेडियो के बजाय लेज़र संचार का भी इस्तेमाल होने लगा है लेज़र बीम बहुत हाई स्पीड और कम हस्तक्षेप वाले लिंक देते हैं पर इन्हें सटीक पॉइंटिंग और साफ़ मौसम की ज़रूरत होती है.
सिग्नल की सबसे बड़ी चुनौती है दूरी. प्रकाश की गति से भी सिग्नल को समय लगता है. उदाहरण के लिए, लो-एर्थ ऑर्बिट (LEO) के करीब के सैटेलाइट तक संकेत पहुँचने में मिलीसेकंड्स लगते हैं जबकि जियोस्टेशनरी-ऑर्बिट (GEO) — पृथ्वी से करीब 36,000 กม दूर के लिए एक तरफ़ में लगभग 120 मिलीसेकंड लगते हैं (राउंड-ट्रिप दोगुना). अंतरिक्ष में सैटेलाइट और ग्राउंड स्टेशन के बीच सापेक्ष गति की वजह से डोप्लर शिफ्ट होता है इसलिए ग्राउंड स्टेशन लगातार फ़्रीक्वेंसी एडजस्ट करता है ताकि संकेत ठीक से पकड़ा जा सके.
एंटीना और प्वाइंटिंग
ग्राउंड स्टेशनों के बड़े डिश एंटीना या फेज्ड-एरेज़ सैटेलाइट की दिशा में सटीक रूप से पॉइंट किए जाते हैं. सैटेलाइट पर भी हाई-गैन एंटीना होते हैं जो जमीन के छोटे हिस्से को टार्गेट करते हैं. सटीक पॉइंटिंग ही सुनिश्चित करती है कि सिग्नल मजबूत और साफ़ रहे.
डेटा की सुरक्षा और विश्वसनीयता
कमांड और टेलीमीटर पर एन्क्रिप्शन और ऑथेंटिकेशन जरूरी होते हैं ताकि कोई अनधिकृत पार्टी सैटेलाइट को नियंत्रित न कर सके. साथ ही एरर-करेक्शन कोडिंग का इस्तेमाल होता है ताकि शोर और बाधा के बावजूद डेटा शुद्ध पहुंचे.
कई सैटेलाइट अब कुछ मामलों में स्वायत्त होते हैं यानी वे छोटे-छोटे निर्णय खुद ले लेते हैं (जैसे पावर-मैनेजमेंट या एंटेना-री-अलाईनमेंट) क्योंकि जमीन से त्वरित कमांड हमेशा उपलब्ध नहीं रहता. साथ में, मिशन-कंट्रोल के पास रेडंडेंट ग्राउंड स्टेशनों और स्वचालित स्क्रिप्ट्स रहते हैं ताकि आपात स्थिति में भी सैटेलाइट सुरक्षित रहे.
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