भगवान गणेश ने अपने बचपन में ब्रह्मचारी (अविवाहित) रहने का संकल्प लिया था। उनका मानना था कि सभी जीव माता पार्वती के अंश हैं, इसलिए वह सभी स्त्रियों को माता समान पूजेंगे और विवाह नहीं करेंगे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
गणेशजी की बचपन की शरारत और ब्रह्मचारी संकल्प
गणेशजी बहुत नटखट थे। एक बार उन्होंने एक बिल्ली को हवा में उछाल दिया, जो दरअसल माता पार्वती स्वयं थी। इससे माता को चोट लगी। उन्होंने गणेशजी को समझाया कि संसार के सभी जीव उनके अंश हैं, इसलिए किसी को दुख न दें।
गणेशजी ने इसे समझकर ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया, यह सोचकर कि वह सभी स्त्रियों को माता समान मानेंगे और किसी से विवाह नहीं करेंगे।
वृंदा (तुलसी) की कहानी और शाप
तब एक तेजस्विनी कन्या वृंदा (जो बाद में तुलसी कहलायीं) गंगातट पर तपोलीन गणेशजी को देखकर उनसे विवाह करना चाहती थीं। लेकिन गणेशजी ने अपने ब्रह्मचारी रहने के संकल्प का हवाला देते हुए विवाह से मना कर दिया।
रिसा कर वृंदा ने उन्हें शाप दिया कि तुम्हें एक नहीं, दो-दो विवाह होंगे।
गणेशजी ने भी तुलसी को शाप दिया कि उसका विवाह एक असुर (जलंधर) से होगा और वह बाद में तुलसी का रूप धारण कर भगवान विष्णु के प्रिय पौधे के रूप में पूजा जाएगी।
तुलसी का विवाह और देवताओं का युद्ध
तुलसी का विवाह जलंधर से हुआ, जो असल में शिवजी के अंश से बना था। जलंधर अत्याचारी बन गया और देवताओं ने उसकी हार के लिए विष्णु जी की सहायता ली। अंत में तुलसी के पतिव्रत भंग होने से जलंधर का वध हो गया।
गणेशजी के दो विवाह: ऋद्धि और सिद्धि
तुलसी के शाप के कारण गणेशजी को विवाह करना पड़ा, लेकिन उनके हाथी के सिर और ब्रह्मचारी होने के कारण कोई कन्या विवाह के लिए राज़ी नहीं होती थी।
देवताओं की सहायता से ब्रह्माजी ने अपने पुत्र विश्वकर्मा से कहा कि वे दो कन्याओं, ऋद्धि और सिद्धि, को लेकर आएं। इन्हीं से गणेशजी के विवाह हुए।
सारांश:
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गणेशजी ने ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया था।
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तुलसी (वृंदा) के शाप के कारण गणेशजी के दो विवाह हुए।
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विवाह ऋद्धि और सिद्धि से हुआ, जो उनकी शक्ति और समृद्धि के प्रतीक हैं।
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यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है।