भारत ने मंगलवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में अपने तकनीकी मिशन को दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की है. यह कदम दोनों देशों के बीच बढ़ते राजनयिक रिश्तों को और गहराने की दिशा में उठाया गया है.
यह घोषणा ऐसे समय हुई है जब करीब डेढ़ हफ्ते पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने अफगान समकक्ष अमीर खान मुत्ताकी से मुलाकात के दौरान संकेत दिया था कि भारत जल्द ही काबुल में अपनी राजनयिक मौजूदगी को अपग्रेड करेगा.
गौरतलब है कि भारत ने अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अपने राजनयिकों को काबुल दूतावास से वापस बुला लिया था. हालांकि, जून 2022 में भारत ने ‘तकनीकी टीम’ भेजकर वहां सीमित स्तर पर अपनी मौजूदगी दोबारा स्थापित की थी.
विदेश मंत्रालय का बयान
विदेश मंत्रालय (MEA) ने बयान में कहा, ‘हाल ही में अफगान विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान लिए गए निर्णय के अनुरूप, भारत सरकार ने काबुल में अपने तकनीकी मिशन का दर्जा पुनः भारतीय दूतावास के रूप में बहाल करने का फैसला किया है.’
MEA ने कहा कि यह फैसला भारत की संकल्पबद्धता को दर्शाता है कि वह अफगानिस्तान के साथ सभी साझा हितों के क्षेत्रों में अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है.
बयान में आगे कहा गया कि काबुल स्थित भारतीय दूतावास अब अफगानिस्तान के समग्र विकास, मानवीय सहायता और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में भारत के योगदान को और बढ़ाएगा. जानकारी के मुताबिक, काबुल मिशन की कमान अब एक Charge d’affaires (कार्यवाहक राजदूत) स्तर के राजनयिक के पास होगी.
भारत ने नहीं दी है तालिबान को मान्यता
अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी इस महीने 6 दिनों की यात्रा पर भारत आए थे. यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों में नए अध्याय का संकेत मानी जा रही है, हालांकि भारत ने अब तक तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता नहीं दी है.
मुत्ताकी ने अपनी यात्रा के दौरान कहा था कि अफगानिस्तान अपनी जमीन को भारत के खिलाफ किसी भी गतिविधि के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा. उन्होंने कहा था कि काबुल जल्द ही भारत में अपने राजनयिक भी भेजेगा ताकि द्विपक्षीय संबंधों को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जा सके.
मुत्ताकी ने कहा था, ‘हम किसी भी तत्व को किसी और देश के खिलाफ अफगानिस्तान की जमीन इस्तेमाल नहीं करने देंगे. दाएश (ISIS-K) पूरे क्षेत्र के लिए चुनौती है और अफगानिस्तान इस लड़ाई की अग्रिम पंक्ति में है.’
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