कब्र पर फूल या अगरबत्ती जलाना क्यों है गुना के बराबर, जानें इस्लाम में इसके पीछे की वजह!

कब्र पर फूल या अगरबत्ती जलाना क्यों है गुना के बराबर, जानें इस्लाम में इसके पीछे की वजह!


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Laying Flowers on Grave In Islam: मुस्लिम समाज में अक्सर यह देखा जाता है कि लोग अपने प्रियजनों की कब्र पर फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती जलाते हैं या कब्र को सजाते हैं. कुछ लोगों के अनुसार यह सम्मान और मोहब्बत का प्रतीक है, जबकि कई लोग इसे इस्लाम के खिलाफ मानते हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस्लाम में कब्र पर फूल या सजावट करना जायज़ है या नाजायज़?

इस्लाम के मुताबिक वही काम जायज़ हैं जो कुरआन और सही हदीस से साबित हों. कोई भी ऐसा आमाल जो न पैग़ंबर मोहम्मद ने किया और न ही कुरआन में उसकी दलील हो, तो उसे नई रस्म माना जाता है, जो इस्लाम में नाजायज़ और हराम माना जाता है.

इस्लामी शरीयत में नहीं है ये परंपरा 

कब्र पर फूल चढ़ाना, अगरबत्ती जलाना या सजावट करना इस्लामी शरीयत में कहीं भी नहीं मिलता है. उलमा का भी यही इत्तेफाक है कि कब्रों को सादगी से रखना चाहिए, क्योंकि सजावट और अनावश्यक रस्में करना गुमराही की तरफ ले जाता है.

उन्होंने कहा कि जो लोग इस तरह की नई रस्में अपनाते हैं, वे नादानी में गुनाह कर रहे हैं और उन्हें तौबा करनी चाहिए.

दिल की तसल्ली के लिए न करें ये काम

इस्लाम सादगी और ईमानदारी का धर्म है. कब्रिस्तान में सजावट या दिखावे के बजाय वहां दुआएं और माफी की दरख्वास्त करना ज़्यादा अफज़ल माना गया है. रसूलुल्लाह ने भी कब्रों के पास जाकर सिर्फ दुआ की तालीम दी है, न कि सजावट या फूल चढ़ाने की.

यह भी कहा जाता है कि एक सच्चे मुसलमान का फर्ज है कि वह सिर्फ वही अमल करे जो कुरआन और हदीस की रोशनी में जायज़ है. अपने दिल की तसल्ली या परंपरा के नाम पर ऐसे कामों से बचना चाहिए जो धर्म की असल भावना के खिलाफ हों.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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