Premanand Maharaj: पितृ पक्ष में तर्पण, पिंडदान आदि पितरों की आत्मा की शांति के लिए किए जाते हैं. कहते हैं इससे पूर्वज खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं. प्रेमानंद जी महाराज ने पितरों के श्राद्ध को लेकर भी कई अहम बातें बताई हैं.
उनके एक भक्त ने पूछा कि मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा दूसरा जन्म लेती है या उसके कर्मों अनुसार स्वर्ग-नर्क पाती है, ऐसे में उस आत्मा का संबंध परिवार से टूट जाता, वह अगला जन्म ले लेती है, तो फिर श्राद्ध का फल परिवारजन और पुण्य आत्मा को कैसे मिलता है ? जानें प्रेमानंद महाराज ने इसपर क्या कहा.
मृत्यु के बाद टूट जाता है संबंध तो आत्मा कैसे पाती श्राद्ध का फल
प्रेमानंद जी महाराज ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि हिंदू धर्म में श्राद्ध केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता का भाव, सम्मान प्रकट करना है. जैसे पिता भले ही स्वर्ग सिधार गए, लेकिन हम जीवित रहते हुए उनकी संपत्ति आदि का सुख तो भोग रहे हैं.
ऐसे में जब उनके नाम से दान, तर्पण, पिंडदान करेंगे तो वो जिस योनि में होंगे उनको उसका फल प्राप्त होगा. अगर वो अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो उनका उत्थान होगा.
आत्मा का संवर जाता है अगला जन्म
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि मृत्यु के बाद भले ही आत्मा का आपसे संबंध न हो लेकिन आपका भावनात्मक संबंध तो उनसे है. अगर आप अपने परिजनों का तर्पण, पिंडदान नहीं करते हैं तो ये आपकी कर्तव्यहीनता होगी, क्योंकि जीवित रहते उन्होंने अपने परिवार के लिए जो भी किया वो अपना कर्तव्य पूर्ण कर मृत्यु को प्राप्त हो गए
लेकिन बाद में परिवार जन की ये जिम्मेदारी बनती है कि अपना कर्तव्य निभाएं और उनकी आत्मा का मंगल करें. आपके किए गए तर्पण, दान, भजन आदि से उनका अगला जन्म संवर जाएगा, इसका पूरा फल उन्हें मिलेगा. फिर चाहे वो किसी भी योनि में हो.
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