7 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी
- कॉपी लिंक

जॉली एलएलबी फ्रेंचाइज की खासियत यही रही है कि अदालत की दीवारों के भीतर गम्भीर मुद्दों को भी हल्की-फुल्की कॉमेडी के साथ पेश किया गया। पहली फिल्म में अरशद वारसी ने जॉली बनकर दिल जीता था, दूसरी में अक्षय कुमार ने बागडोर संभाली। अब तीसरे हिस्से ‘जॉली एलएलबी 3’ में दोनों जॉली आमने-सामने हैं और कहानी किसानों की जमीन की जंग पर आकर उलझ जाती है
फिल्म की कहानी क्या कहती है?
‘जॉली एलएलबी 3’ की कहानी 2011 में उत्तर प्रदेश के भट्टा-पारसौल किसान आंदोलन पर ढीले रूप से आधारित है। फिल्म में इसे राजस्थान के बीकानेर की पृष्ठभूमि दी गई है, जहां इम्पीरियल ग्रुप का मालिक हरीभाई खेतान (गजराज राव) किसानों की जमीन जबरन हथियाकर “बीकानेर टू बोस्टन” नामक परियोजना शुरू करना चाहता है।
गांव का लोककवि राजाराम सोलंकी अपनी जमीन खोने के गम में आत्महत्या कर लेता है। इसके बाद खेतान मीडिया में राजाराम और उसकी बहू के अवैध संबंधों की झूठी कहानियां फैलाता है ताकि प्रोजेक्ट पर कोई आंच न आए।

राजाराम की पत्नी जानकी (सीमा विश्वास) मदद की तलाश में दिल्ली पहुंचती है और वकील जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (अरशद वारसी) तक जाती है। पहले अनमने ढंग से पीछे हटने वाला जॉली अंततः जनहित याचिका दायर करता है, लेकिन अदालत में उसका सामना दूसरे जॉली, जगदीश मिश्रा (अक्षय कुमार) से होता है और उसकी दलीलों के चलते न्यायमूर्ति सुंदरलाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला) की अदालत में याचिका खारिज हो जाती है।
इसके बाद जानकी सीधे जगदीश मिश्रा से मिलती है और अपनी आपबीती सुनाती है। यहीं, मिश्रा का हृदय परिवर्तन होता है और वह किसानों का पक्ष लेने का निर्णय करता है। दोनों जॉली साथ मिलकर खेतान जैसे शक्तिशाली व्यापारी के खिलाफ खड़े होते हैं। फिल्म का चरम इसी अदालत की जंग पर टिकता है।

फिल्म में कैसी रही है एक्टिंग?
अरशद वारसी – उन्होंने किरदार की गहराई को समझते हुए बेहद सशक्त अभिनय किया है। सधी हुई अदायगी और गहरी आवाज ने अदालत के दृश्य असरदार बना दिए। बिना दिखावे के उन्होंने अक्षय पर भारी पड़ते हुए दर्शकों का मन जीत लिया।
अक्षय कुमार – कामेडी वाले सीन्स में रंग जमाया, लेकिन कई बार ज्यादा बनावटी लगे। सीरियस मोमेंट्स में अपेक्षा के अनुरूप निखर नहीं पाए।
गजराज राव – चालाक व्यापारी और खलनायक के रूप में शानदार। उनकी अदाकारी ने कहानी को धार दी।
सौरभ शुक्ला – पहले जैसे ही दिखे, अभिनय मजबूत है पर कुछ नया नहीं।
सीमा विश्वास – कम संवादों में भी चेहरे के भावों से गहरी छाप छोड़ी।
अमृता राव और हुमा कुरैशी – सीमित उपस्थिति, असर खास नहीं पड़ा।
फिल्म का निर्देशन और तकनीकी पहलू
डायरेक्शन (सुभाष कपूर) – किसानों का मुद्दा उठाने की कोशिश सराहनीय है, परन्तु गति कई जगह धीमी पड़ जाती है। जरूरत से ज्यादा कामेडी सीन्स और उप कथाएं असली विषय से भटका देती हैं।
सिनेमैटोग्राफी – अदालत के क्लोज-अप और गांव के दृश्य असरदार। रंगों का प्रयोग यथार्थवादी – गांव में हल्के, अदालत में गंभीर।

एडिटिंग – 157 मिनट की लंबाई भारी लगती है। यदि कुछ सीन हटाए जाते तो फिल्म और कसावट भरी हो सकती थी।
संगीत और बैकग्रांउड म्यूजिक – गाने भुला देने योग्य हैं, लेकिन पृष्ठभूमि संगीत अदालत की बहस और भावनात्मक दृश्यों में सही असर डालता है।
फिल्म का कमजोर पहलू
जबरदस्ती डाले गए हास्य दृश्य फिल्म की गंभीरता तोड़ते हैं। अदालत की बहसें कई बार लंबी और खींची हुई लगती हैं। सहायक पात्रों को और गहराई दी जा सकती थी।
फिल्म का मजबूत पक्ष
किसानों की पीड़ा और जमीन छिनने का दर्द दिल छू लेता है। अरशद वारसी और गजराज राव का अभिनय सबसे मजबूत कड़ी है। फिल्म का साफ संदेश है कि अगर अन्नदाता का अधिकार छिना, तो देश का विकास अधूरा रहेगा।
जॉली एलएलबी 3 में मनोरंजन भी है और संदेश भी। हां, लंबाई और बेवजह हास्य दृश्य इसे कमजोर बनाते हैं, लेकिन किसानों की जंग, अदालत का संघर्ष और अरशद वारसी का दमदार अभिनय फिल्म को देखने लायक बना देता है।