Shardiya Navratri 2025: मां दुर्गा की पूजा का महाउत्सव शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है. 1 अक्टूबर को दुर्गा नवमी के साथ नवरात्रि का समापन होगा. इस बार ये पर्व 9 नहीं, 10 दिनों का होगा. ये अद्भुत संयोग लगभग 9 साल बाद बन रहा है.
इससे पहले 2016 में भी नवरात्रि 10 दिनों की थी. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस बार 9 की बजाय 10 दिन की शारदीय नवरात्रि होगी, क्योंकि नवरात्रि की एक तिथि में वृद्धि होने के कारण शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक होगी.
सबसे खास बात यह है कि इस बार तृतीया तिथि की वृद्धि हुई है. जिसकी वजह से 24 और 25 सितंबर को तृतीया तिथि रहेगी. इस कारण शारदीय नवरात्रि का समापन 2 अक्टूबर को होगा और इसी दिन दशहरा भी मनाया जायेगा.
नवरात्रि में तृतीया तिथि रहेगी दो दिन
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल नवरात्रि की चतुर्थी तिथि दो दिन रहेगी, इस कारण देवी पूजा के लिए भक्तों को एक अतिरिक्त दिन मिलेगा और भक्त 10 दिनों तक नवरात्रि मना पाएंगे. पंचांग के अनुसार 24 और 25 सितंबर को दोनों दिन तृतीया तिथि रहेगी.
नवरात्रि की समाप्ति के बाद इस बार दशहरा 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा.
देवी चंद्रघंटा की दो दिन होगी पूजा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि तृतीया तिथि दो दिन होने के कारण मां दुर्गा के तृतीया स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा दो दिन होगी.
नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करते हैं, इनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी शामिल हैं.
हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि, नवरात्रि की शुरुआत में मां दुर्गा के वाहन का विशेष महत्व रहता है. ये वाहन नवरात्रि के प्रारंभ होने वाले दिन (वार) पर निर्भर करता है. इस बार नवरात्रि की शुरुआत रविवार से हो रही है.
जब नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार को होती है, तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं. हाथी को सुख-समृद्धि, धन-धान्य और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है.
ऐसे में हाथी पर सवार होकर मां दुर्गा के आने से देश और समाज में सुख-समृद्धि और उन्नति के योग बनेंगे.
शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि शुरू हो तो मां का वाहन अश्व (घोड़ा) पर, गुरुवार या शुक्रवार को डोली में और बुधवार को नौका से देवी मां का आगमन होता है. हिंदू शास्त्र में देवी के वाहनों के अलग-अलग फल बताए गए हैं.
नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त
- अमृत मुहूर्त : सुबह 6.19 से 7.49 बजे तक
- शुभ मुहूर्त : सुबह 9.14 से 10.49 बजे तक,
- अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11.55 से 12.43 बजे तक रहेगा
कलश स्थापना
भविष्यवक्ता डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि, नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है. घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है.
मान्यता है कि गलत समय में घट स्थापना करने से देवी मां क्रोधित हो सकती हैं. रात के समय और अमावस्या के दिन घट स्थापित करने की मनाही है. घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है.
अगर किसी कारणवश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं, तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं. प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है. सामान्यत: यह 40 मिनट का होता है. हालांकि इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है.
कलश स्थापना की सामग्री
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि, मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है, इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें. इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश मौली, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए होते है.
कलश स्थापना कैसे करें?
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें. मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं.
कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं. अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें. अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं.
फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें. इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं. अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें. फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें.
अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं. कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है. आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं.
शारदीय नवरात्रि तिथि
- 22 सितंबर, सोमवार : प्रतिपदा तिथि
- 23 सितंबर, मंगलवार : द्वितीय तिथि
- 24 सितंबर, बुधवार : तृतीया तिथि
- 25 सितंबर, गुरुवार : तृतीया तिथि
- 26 सितंबर, शुक्रवार : चतुर्थी तिथि
- 27 सितंबर, शनिवार : पंचमी तिथि
- 28 सितंबर, रविवार : षष्ठी तिथि
- 29 सितंबर, सोमवार : सप्तमी तिथि
- 30 सितंबर, मंगलवार : अष्टमी तिथि
- 01 अक्टूबर, बुधवार : नवमी तिथि
- 02 अक्टूबर, गुरुवार : दशहरा
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