बगराम एयरबेस पर नजर, चीन पर निशाना… क्या अफगानिस्तान में वापसी की तरफ देख रहे ट्रंप? जानें कितना फायदा-कितना नुकसान – us plans recapture bagram airbase china surveillance taliban rejects ntc

बगराम एयरबेस पर नजर, चीन पर निशाना… क्या अफगानिस्तान में वापसी की तरफ देख रहे ट्रंप? जानें कितना फायदा-कितना नुकसान – us plans recapture bagram airbase china surveillance taliban rejects ntc


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया है कि अमेरिका काबुल के पास बने एक बड़े अफगान एयरबेस को फिर से अपने कब्जे में लेने की योजना बना रहा है ताकि चीन पर नजर रखी जा सके. लेकिन असलियत में, अगर तालिबान भी इस प्रस्ताव को मान ले, तो अमेरिका को इससे क्या मिल सकता है? आइए समझते हैं.

सबसे पहले बात बगराम एयरबेस की

इस बेस को एक छोटे शहर की तरह समझिए, जो शिमला से थोड़ा छोटा है. करीब 3300 एकड़ में फैला बगराम एयरबेस कभी अफगानिस्तान में अमेरिका का सबसे बड़ा और व्यस्त सैन्य अड्डा था. इसका मुख्य रनवे 7 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा है. एक समय पर यहां करीब 40,000 सैनिक और नागरिक कॉन्ट्रैक्टर तैनात थे.

bagram

यह वही मुख्य सैन्य ठिकाना था, जहां से तालिबान के खिलाफ पूरे अफगानिस्तान में ऑपरेशन चलाए जाते थे. लेकिन जुलाई 2021 में अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने यहां से सेना हटा ली थी, जब तालिबान तेजी से सरकारी फौजों पर हावी हो रहा था. आखिर में 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया.

trump

अमेरिका का मकसद क्या है?

लंदन में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका बगराम में दोबारा अपनी मौजूदगी कायम करना चाहता है ताकि चीन पर निगरानी रखी जा सके. बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंसेज़ के डेटा के आधार पर किए गए विश्लेषण के मुताबिक, बगराम एयरबेस के 1,000 किलोमीटर दायरे में कोई पक्का परमाणु ठिकाना नहीं है.

हालांकि, इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम के 2020 के विश्लेषण के अनुसार, चीन का एक संभावित परमाणु हथियार ठिकाना काशगर में स्थित है, जो बगराम से हवाई दूरी पर करीब 700 किलोमीटर दूर है.

nuclear sites

एक अमेरिकी अधिकारी ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि बगराम एयरबेस को फिर से कब्जाने की ‘कोई सक्रिय योजना’ नहीं है. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि यह व्यावहारिक रूप से संभव है.’ इतने बड़े एयरबेस को इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकी खतरों से सुरक्षित करना बड़ी चुनौती होगी.

अधिकारी के मुताबिक, बगराम पर कब्जा जमाने और उसे बनाए रखने के लिए हजारों सैनिकों की जरूरत होगी. बेस को फिर से दुरुस्त करने में भारी खर्च आएगा और रसद की सप्लाई भी बड़ी समस्या होगी, क्योंकि यह एक लैंडलॉक्ड देश में अमेरिकी फौज का अलग-थलग ठिकाना होगा.

map

भले ही अमेरिकी सेना बेस पर कब्जा कर ले, लेकिन उसके चारों ओर फैले बड़े इलाके को साफ करके सुरक्षित रखना पड़ेगा, वरना दुश्मन वहां से रॉकेट हमले कर सकता है. अमेरिका के एक पूर्व वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने भी इस बेस के फायदे को कम करके आंका. उन्होंने कहा कि चीन के नजदीक होने की बात को ट्रंप ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि वहां मौजूद रहने से कोई खास सैन्य फायदा मिलेगा. बल्कि जोखिम, फायदों से कहीं ज्यादा हैं.’

तालिबान का जवाब

अफगानिस्तान की हुकूमत चला रहे तालिबान ने साफ कह दिया है कि बगराम एयरबेस को अमेरिका को देने का सवाल ही नहीं उठता. TOLO News के मुताबिक तालिबान ने इस संभावना को खारिज कर दिया है.

तालिबानी विदेश मंत्रालय के दूसरे राजनीतिक निदेशक जाकिर जलाली ने अपनी एक्स पोस्ट में लिखा कि अफगानिस्तान और अमेरिका को आपस में बातचीत करनी चाहिए और आपसी सम्मान और साझा हितों के आधार पर दोनों आर्थिक व राजनीतिक रिश्ते बना सकते हैं, ‘लेकिन अमेरिका की किसी भी सैन्य मौजूदगी के बिना.’

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