अमेरिका से भारत लौटे एक पूर्व अमेजन यूएसए कर्मचारी ने रेडिट पर लिखा कि अमेरिकी टेक कंपनियों में कुछ भारतीय मैनेजर H-1B वीजा पर काम करने वालों का शोषण करते हैं और भर्ती में भाषा, क्षेत्र और जाति के आधार पर पक्षपात करते हैं. पूर्व कर्मचारी ने कहा कि उनका भारत लौटने का बड़ा कारण यही था कि भारतीय मैनेजर का व्यवहार काफी टॉक्सिक था. उनका आरोप है कि कई मैनेजर H-1B कर्मचारियों को इसलिए नौकरी देते हैं ताकि उनका और उनके वीजा स्टेटस का फायदा उठा सकें, क्योंकि ऐसे कर्मचारी नौकरी जाने से डरते हैं.
तेलुगु और गुजराती समुदाय का दबदबा
उन्होंने वॉलमार्ट और इंटेल जैसी कंपनियों का नाम लिया और कहा कि वहां भी भर्ती में तेलुगु और गुजराती समुदाय का दबदबा दिखता है. कई रेडिट यूजर ने भी इस पोस्ट पर सहमति जताई और लिखा कि कभी-कभी यह पक्षपात जाति तक पहुंच जाता है. यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा की फीस $100,000 करने का ऐलान किया है। हालांकि यह सिर्फ नए आवेदकों पर लागू होगा, लेकिन इससे अमेरिका में भारतीय पेशेवरों की चिंता बढ़ गई है।
अमेरिका से भारत लौटे एक पूर्व अमेजन यूएसए कर्मचारी ने रेडिट पर अपनी राय शेयर की है. अपनी पोस्ट में पूर्व अमेजन यूएसए कर्मचारी ने बताया कि क्यों अमेरिका में भारतीयों को नौकरी करने से नफरत की जाती है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी टेक कंपनियों में कुछ भारतीय मैनेजर और कर्मचारी अपने ही देश के लोगों के साथ पक्षपात और उनका शोषण करते हैं.
H-1B वीजा वाले कर्मचारियों का उठाते हैं फायदा
पूर्व कर्मचारी ने लिखा कि भारतीय मैनेजर का टॉक्सिक व्यवहार ही उनकी भारत वापसी का एक बड़ा कारण था. उनका आरोप है कि कई मैनेजर H-1B वीजा वाले कर्मचारियों का फायदा उठाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि विदेशी कर्मचारी अपनी नौकरी और वीजा स्थिति के कारण दबाव में रहते हैं. उन्होंने कहा, “कई भारतीयों को नौकरी पर सिर्फ उनके वीजा स्टेटस का दुरुपयोग करने के लिए रखा जाता है. अमेरिकी इस तरह का शोषण बर्दाश्त नहीं करेंगे, इसलिए प्रबंधक ऐसे कर्मचारियों को नौकरी पर रखना पसंद करते हैं.
भर्ती में क्षेत्र और भाषा के आधार पर पक्षपात
कर्मचारी ने अपनी पोस्ट में बताया कि यह समस्या सिर्फ एक कंपनी तक सीमित नहीं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री में फैली हुई है. उन्होंने वॉलमार्ट और इंटेल जैसी कंपनियों का उदाहरण दिया, जहां भर्ती में क्षेत्र और भाषा के आधार पर पक्षपात देखा गया. रेडिट पर अन्य यूजर ने भी इसको लेकर कई कमेंट किए हैं. एक यूजर ने लिखा कि जिन लोगों ने ग्रीन कार्ड या नागरिकता के लिए व्यवस्था का दुरुपयोग किया, उन्हें कभी सजा नहीं मिली, जबकि मेहनती लोग पीड़ित बने. एक अन्य यूजर ने लिखा कि कभी-कभी पक्षपात क्षेत्र और भाषा से आगे बढ़कर जाति तक पहुंच जाता है. यह पोस्ट ऐसे समय में सामने आयी है जब डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर शुल्क $100,000 करने की घोषणा की. हालांकि व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ नए आवेदन पर लागू होगा, लेकिन इससे अमेरिकी टेक क्षेत्र में भारतीय पेशेवरों की चिंता बढ़ गई है.
नौकरी और वीजा स्थिति को लेकर दबाव
कर्मचारी ने आगे बताया कि मैनेजर कर्मचारियों का शोषण करते हैं. “वे जानते हैं कि स्थिति कितनी जटिल और नाजुक है क्योंकि वे खुद इससे गुजर चुके हैं. कई लोग भारतीयों को नौकरी पर रखते हैं, सिर्फ उनका और उनके वीजा स्टेटस का दुरुपयोग करने के लिए. कर्मचारी ने आगे बताया कि मैनेजर जानते हैं कि अमेरिकी इस तरह का शोषण बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि वे मुकदमा कर सकते हैं, इसलिए मैनेजर भारतीयों को नौकरी पर रखना पसंद करते हैं. रेडिट यूजर के अनुसार, समस्या एक कंपनी से आगे तक फैली हुई है. उसने वॉलमार्ट को “तेलुगु मैनेजर और कर्मचारी” रखने के लिए और इंटेल को गुजरातियों के वर्चस्व वाली भर्ती संस्कृति के लिए जिम्मेदार ठहराया. “जाहिर है, अगर अमेरिकी इस तरह का पक्षपात देखेंगे तो वे नाराज होंगे. वे बेवकूफ नहीं हैं. एच-1बी नियमों को कड़ा करने से ऐसी प्रथाओं को कम करने में मदद मिल सकती है.
भारतीय को जाती के आधार पर मिलती है नौकरी
लास्ट में यूजर ने स्पष्ट किया कि भारत लौटने का उनका निर्णय था और केवल कार्यस्थल की समस्याओं के कारण नहीं था. विदेश में रहते हुए उन्हें “कुछ बहुत अच्छे अवसर” मिले. अब वायरल हो चुके इस पोस्ट पर अन्य रेडिट यूजर ने की तीखी प्रतिक्रिया आईं. एक यूजर ने लिखा था: “पता है इससे भी बुरा क्या है? एक अन्य यूजर ने बताया कि कैसे पक्षपात कभी-कभी क्षेत्र और भाषा से आगे बढ़कर जाति तक पहुंच जाता है: “मेरी एक बुजुर्ग रिश्तेदार हैं जो एक टेक कंपनी में मैनेजर हैं. उन्होंने एक पद के लिए दो लोगों का इंटरव्यू लिया था-एक अमेरिकी और एक भारतीय. उन्होंने कहा कि उन्होंने उस भारतीय को इसलिए नौकरी पर रखा क्योंकि वह ‘हमारी जाति’ की थी. यह देखकर मुझे उल्टी आ गई.”
वर्क प्लेस को लेकर बहस ऐसे समय में शुरू हुई है जब डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा एच-1बी वीजा आवेदन शुल्क को बढ़ाकर 100,000 डॉलर करने की घोषणा से हजारों कुशल श्रमिक परेशान हो गए हैं, जिनमें से कई भारत से हैं. व्हाइट हाउस ने बाद में स्पष्ट किया कि यह वृद्धि केवल नए आवेदकों पर लागू होगी, मौजूदा वीजा धारकों पर नहीं, लेकिन इस अनिश्चितता ने अमेरिका में भारतीय प्रौद्योगिकी समुदाय की चिंताएं पहले ही बढ़ा दी हैं.
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