Navratri 2025: नवरात्रि में इस दिन महिलाएं न करें ये काम, वरना गर्भनाश जैसा लग सकता है दोष

Navratri 2025: नवरात्रि में इस दिन महिलाएं न करें ये काम, वरना गर्भनाश जैसा लग सकता है दोष



Shardiya Navratri 2025: नवरात्रि का चौथा दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप देवी कूष्मांडा को समर्पित है. कहा जाता है कि, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. इनका निवास सूर्यलोक में होता है. मां कूष्मांडा की पूजा से संतान की रक्षा होती है. इसलिए इन्हें संतान रक्षिका देवी भी कहा जाता है.

संतान की रक्षिका हैं मां कूष्मांडा 

दरअसल ऋग्वेद में सूर्य को हिरण्यगर्भ नाम दिया गया है, जिसका अर्थ है ऐसा आवरण जिसके भीतर सुनहला प्रकाश है. यही आवरण मां कूष्मांडा है. समस्त संसार की चेतना जिस गर्भस्त शिशु के रूप में मौजूद है, मां कूष्मांडा उस गर्भ की देवी हैं. मान्यता है कि जो भी सृजनकार्य हो रहा है वह मां कूष्मांडा की कृपा से ही हो रहा है. इसलिए मां कूष्मांडा को गर्भ में पल रहे संतान की रक्षिका देवी भी कहा जाता है.

मां कूष्मांडा ना सिर्फ गर्भ में पले रहे शिशु की बल्कि जन्म के बाद भी संतान की रक्षा करती हैं. मां कूष्मांडा को बैमाता, कृत्तिका और छठी मईया जैसे नामों से भी जाना जाता है. नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का विधान है. लेकिन इस दिन महिलाओं को एक गलती करने से बचना चाहिए. वरना आपका व्रत खंडित हो सकता है. इतना ही नहीं इस गलती से गर्भनाश का दोष भी लग सकता है.

इन कामों से लग सकता है गर्भनाश जैसा दोष

आज के दिन खासकर महिलाओं को कद्दू काटने से बचना चाहिए. ध्यान रखें कि, महिलाएं पूरा गोल कद्दू ना काटे. बता दें कि कद्दू को कई जगहों पर कोहड़ा, भतुआ और पेठा आदि जैसे नामों से भी जाना जाता है.

कद्दू के साथ ही कोई भी बड़ा या साबुत फल जैसे- नारियल, खरबूजा, गोल वाली लौकी, पपीता आदि भी काटने से बचना चाहिए. मान्यता है कि,इन फलों में मां कूष्मांडा का वास होता है. इसलिए इन्हें महिलाओं को नहीं काटना चाहिए.

केवल आज या नवरात्रि में ही नहीं, बल्कि महिलाओं को ये फल-सब्जी अन्य दिनों में साबुत नहीं काटना चाहिए. आइये जानते हैं इसके पीछे का क्या कॉन्सेप्ट है.

क्या है कॉन्सेप्ट

कई स्थानों और लोक मान्यताओं में कद्दू को पुत्र समान माना जाता है. इसलिए कद्दू काटने को संतान की बलि देने के समान समझा जाता है. इसलिए गोल और बड़े कद्दू में पहले पुरुष उसमें चीरा लगाते हैं, फिर महिलाएं उसे काटती है. पौराणिक महत्व है कि, जहां पशुबलि नहीं दी जाती, वहां कद्दू को पशु का प्रतीक मानकर बलि देने की परंपरा है.

वहीं महिलाओं का कद्दू ना काटने के पीछे एक कॉन्सेप्ट यह भी है कि, सनातन परंपरा के अनुसार, स्त्री सृजनकर्ता है ना कि संहराकर्ता. स्त्री ‘मां’ और ‘जन्मदात्री’ है, जो शिशु को जन्म देती है. इसलिए उसके द्वारा प्रतिकात्मक रूप से भी बलि देना पाप के समान है.

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