लाहौर शहर, इस्लामी वास्तुकला और मुगल इतिहास का ही केंद्र नहीं है बल्कि वास्तव में ये भारत की एक भूली हुई आध्यात्मिक राजधानी थी

लाहौर शहर, इस्लामी वास्तुकला और मुगल इतिहास का ही केंद्र नहीं है बल्कि वास्तव में ये भारत की एक भूली हुई आध्यात्मिक राजधानी थी


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भारत और पाकिस्तान की सीमाओं ने हमें राजनीतिक तौर पर बांट दिया है, लेकिन धर्म और संस्कृति की जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं. पाकिस्तान का लाहौर शहर, जिसे आज लोग सिर्फ इस्लामी वास्तुकला और मुगल इतिहास के लिए जानते हैं जो वास्तव में भारत की एक भूली हुई आध्यात्मिक राजधानी रहा है.

रामायण काल की गूढ़ गाथा

पुराणों और लोककथाओं के अनुसार, लाहौर का असली नाम लवपुरी था. यह वही नगरी है जिसे श्रीराम और सीता के पुत्र लव ने बसाया था. इसी कारण लाहौर को कभी लवपुर या लवपुरी कहा जाता था. यानी पाकिस्तान की धरती पर आज भी रामायण की परंपरा जीवित है. यह तथ्य सुनकर बहुत लोग हैरान हो जाते हैं कि जिस शहर को हम आज सीमा के पार मानते हैं, वह वास्तव में अयोध्या की संतानों की नगरी रहा है.

सिख गुरुओं की शहादत और मंदिरों की विरासत

लाहौर केवल हिंदू संस्कृति तक सीमित नहीं रहा. यही वह स्थान है जहां गुरु अर्जुन देव जी ने शहादत दी और आज भी उनका गुरुद्वारा डेरा साहिब यहां स्थित है.

विभाजन से पहले यहां शिवालय, शक्तिपीठ और विष्णु मंदिर सक्रिय थे. दीपावली और बैसाखी का उत्सव अमृतसर की ही तरह यहां भी जगमगाता था.

अमृतसर–लाहौर: एक ही आत्मा के दो हिस्से

भारत का अमृतसर और पाकिस्तान का लाहौर, दोनों सांस्कृतिक रूप से जुड़वां शहर माने जाते थे. भाषा, खानपान, त्यौहार और धर्म, सबकुछ समान. आज सीमा ने इन्हें अलग कर दिया, लेकिन पुरानी पीढ़ी के बुजुर्ग आज भी कहते हैं: लाहौर बिना अमृतसर अधूरा है, और अमृतसर बिना लाहौर.

हैरान कर देने वाली सच्चाई

जब आप लाहौर को पाकिस्तान का हिस्सा मानते हैं, तो यह भूल जाते हैं कि यह वही भूमि है जहां रामायण की गाथा गूंजी, जहां वेदों के श्लोक पढ़े गए, और जहां सिख गुरु ने बलिदान देकर धर्म की रक्षा की. यानी यह शहर भारत की आत्मा का ही एक अंश है. बस राजनीतिक नक्शे ने इसे सीमाओं के पार धकेल दिया.

लाहौर भारत से अलग होकर भी भारत का ही हिस्सा है. यह वह स्थान है जहां हिंदू धर्म की जड़ें, सिख धर्म का बलिदान और साझा संस्कृति सब मिलकर यह साबित करते हैं कि धार्मिक रिश्ते सरहदों से बड़े होते हैं.

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