आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हर फील्ड में तेजी से अपना दखल बढ़ा रहा है. मेडिकल सेक्टर भी इससे बचा नहीं है. जहां एक तरफ AI को डायग्नोसिस और डिजीज मैनेजमेंट का फ्यूचर माना जा रहा है, वहीं लैंसेट (Lancet) जर्नल में प्रकाशित एक नई स्टडी ने गंभीर खतरे की ओर इशारा किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, लगातार AI-आधारित टूल्स पर निर्भरता डॉक्टरों की स्किल्स को कमजोर कर सकती है. यानी, जिस तकनीक से मरीजों का इलाज आसान होना चाहिए, वही डॉक्टरों की क्षमता को धीरे-धीरे खत्म भी कर सकती है.
डॉक्टरों की स्किल्स पर असर
पोलैंड के चार कोलोनोस्कोपी सेंटर्स में की गई स्टडी में पाया गया कि AI असिस्टेड डायग्नोसिस से डॉक्टरों की ‘अडेनोमा डिटेक्शन रेट’ (adenoma detection rate यानी कैंसर जैसी बीमारियों का शुरुआती पता लगाना) घट गया. आंकड़ों के अनुसार, जहां पहले बिना AI की मदद के 28 मामलों में एडेनोमा डिटेक्ट किया जा रहा था, वहीं AI पर निर्भर होने के बाद यह घटकर 22 प्रतिशत रह गया. यानी करीब 20 प्रतिशत की कमी. इसका मतलब है कि डॉक्टर लगातार AI पर निर्भर रहकर अपनी क्लिनिकल जजमेंट और डायग्नोसिस की क्षमता खो सकते हैं.
क्यों हो रहा है यह खतरा?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब किसी डॉक्टर को लगातार तैयार सॉल्यूशन और सजेशन मिलते हैं, तो उनकी खुद की सोचने और एनालाइज करने की क्षमता घटती जाती है. हेल्थ सेक्टर में यह स्थिति और भी खतरनाक है, क्योंकि यहां गलत डायग्नोसिस का सीधा असर मरीज की जान पर पड़ सकता है. रिसर्चर्स का कहना है कि अगर यह ट्रेंड बढ़ा तो आने वाले समय में डॉक्टर सिर्फ AI पर निर्भर हो जाएंगे और उनकी अपनी प्रोफेशनल स्किल्स पिछड़ जाएंगी.
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?
स्टडी में शामिल पोलैंड के डॉ. मार्सिन रोमार्स्क्ज़िक का कहना है कि हमें यह समझना होगा कि किन फैक्टर्स से यह समस्या बढ़ रही है. वहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ ओस्लो के प्रोफेसर यूइची मोरी ने बताया कि अगर डॉक्टर लगातार AI का इस्तेमाल करते हैं तो वे खुद कम मोटिवेटेड, कम फोकस्ड और कम जिम्मेदार हो सकते हैं. यानी मरीजों की जान बचाने की बजाय डॉक्टर टेक्नोलॉजी पर आंख बंद करके भरोसा करने लगेंगे.
भारत के लिए बड़ा अलार्म
भारत जैसे देशों में जहां डॉक्टरों और हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी पहले से है, वहां AI पर ज्यादा निर्भरता स्थिति को और भी मुश्किल बना सकती है. डॉ. विदुर महाजन, जो CARPL.AI के सीईओ हैं, का कहना है कि हमें AI के बढ़ते इस्तेमाल के फायदे और नुकसान दोनों पर ध्यान देना होगा. AI टेक्नोलॉजी को अपनाना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही डॉक्टरों की ट्रेनिंग और प्रैक्टिकल स्किल्स को और मजबूत करना होगा.
लैंसेट की यह रिपोर्ट एक बड़ी चेतावनी है कि अगर AI का इस्तेमाल बैलेंस तरीके से नहीं किया गया, तो हेल्थ सेक्टर में डॉक्टरों की स्किल्स धीरे-धीरे खत्म हो सकती हैं. AI को सहायक के रूप में इस्तेमाल करना जरूरी है, न कि पूरी तरह निर्भर होने का जरिया. वरना वह दिन दूर नहीं जब डॉक्टर सिर्फ मशीनों के फैसलों पर काम करेंगे और मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी.
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