स्त्री की नाभि को क्यों नहीं छूना चाहिए? जानें इसके पीछे शास्त्रों का चौंकाने वाला रहस्य

स्त्री की नाभि को क्यों नहीं छूना चाहिए? जानें इसके पीछे शास्त्रों का चौंकाने वाला रहस्य


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मानव शरीर को शास्त्रों में मंदिर कहा गया है और उसके हर अंग को किसी न किसी देवता का स्थान. इन्हीं में नाभि का स्थान सर्वोच्च माना गया है.

नाभि गर्भ से जीवन का पहला संबंध है. गर्भावस्था में शिशु की नाल यहीं से जुड़ती है, इसी कारण इसे जीवन का मूल केंद्र माना गया है. आयुर्वेद कहता है कि नाभि से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं जो पूरे शरीर में ऊर्जा और रक्त प्रवाह करती हैं.

चरक संहिता में कहा गया है कि नाभिः प्राणस्य मूलम् अर्थात् नाभि को प्राण का मूल स्थान माना गया है. यही कारण है कि नाभि को छेड़ना या अशुद्ध भाव से स्पर्श करना शरीर और आत्मा दोनों के लिए दोषकारी समझा गया है.

धर्मशास्त्र और पुराणों में नाभि को लक्ष्मी का निवास कहा गया है. स्वयं भगवान विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ था जिस पर ब्रह्मा प्रकट हुए. श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णन है कि तस्य नाभ्यां महासंभूतं पद्मं लोकसमृद्धये अर्थात् विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल ही लोकसमृद्धि का कारण बना. यही कारण है कि नाभि को लक्ष्मी ऊर्जा का आसन कहा गया है.

लोकमान्यता है कि स्त्री की नाभि गृहलक्ष्मी की शक्ति का प्रतीक होती है. विवाहोपरांत स्त्री को गृहलक्ष्मी कहा जाता है और उसकी नाभि को धन व सौभाग्य का द्वार. विष्णु धर्मसूत्र में यह उल्लेख मिलता है कि “लक्ष्मी नाभिस्थिता” अर्थात् लक्ष्मी नाभि केंद्र में वास करती हैं.

इसी मान्यता के आधार पर स्त्री की नाभि का अपमान करना लक्ष्मी का अपमान समझा जाता है. यदि कोई अशुद्ध भाव से नाभि को छूता है या उसमें उंगली डालता है तो यह केवल शारीरिक अशुद्धता ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से अलक्ष्मी का कारण भी माना गया है.

स्त्री की नाभि को छेड़ना क्यों दोषकारी है? इसका उत्तर केवल धार्मिक मान्यता में ही नहीं, आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी छिपा है. सुश्रुत संहिता में लिखा है कि नाभि देशे व्यथाभावः सर्वशरीरदुःखकारणम् अर्थात् नाभि क्षेत्र में विकार पूरे शरीर को पीड़ा देता है.

जब नाभि का संतुलन बिगड़ता है तो पाचन, अग्नि और मानसिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ता है. यही कारण है कि शारीरिक दृष्टि से भी नाभि को छेड़ना संक्रमण और रोग का कारण बन सकता है.

धार्मिक दृष्टि से इसके परिणाम और भी गहरे बताए गए हैं. यदि नाभि का अपमान होता है तो लक्ष्मी जी घर से विमुख हो जाती हैं. परिवार में दरिद्रता का प्रवेश हो सकता है, दांपत्य जीवन में तनाव आ सकता है और मानसिक अशांति का वातावरण बन सकता है.

अनेक पुराणों में अलक्ष्मी का उल्लेख आता है, जो कलह और दुर्भाग्य का प्रतीक है. पद्म पुराण में कहा गया है कि यत्र स्त्रीः न सन्मान्याः तत्र लक्ष्मीर्न तिष्ठति अर्थात् जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता वहां लक्ष्मी का वास भी नहीं होता. स्त्री की नाभि का अपमान इसी श्रेणी में आता है.

यदि भूलवश या अज्ञानवश ऐसा दोष हो गया हो तो शास्त्र इसके उपाय भी बताते हैं. शुक्रवार का दिन लक्ष्मी जी का प्रिय है. इस दिन माता को कमल का फूल, धूप और दीप अर्पित करना दोष निवारण करता है. साथ ही नाभि पर शुद्ध घी या सरसों का तेल लगाकर ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः मंत्र का 108 बार जप करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.

आयुर्वेद में भी कहा गया है कि नाभि पर शुद्ध तेल लगाने से शरीर की अग्नि संतुलित रहती है और मानसिक शांति बनी रहती है. इसके अतिरिक्त कन्याओं को भोजन कराना और उनका आशीर्वाद लेना भी अलक्ष्मी को दूर करने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय है.

संस्कृति और समाज दोनों में यह शिक्षा दी गई है कि स्त्री का सम्मान करना ही लक्ष्मी का सम्मान है. नाभि केवल सौंदर्य का अंग नहीं बल्कि देवी ऊर्जा का प्रतीक है.

यदि इसे अपवित्र दृष्टि से छेड़ा जाए तो यह देवियों का अपमान है और इसके परिणामस्वरूप घर में दरिद्रता, मानसिक कष्ट और कलह का वास हो सकता है. यही कारण है कि प्राचीन समय से परिवारों में यह परंपरा रही है कि नाभि को हमेशा पवित्र और स्वच्छ रखा जाए और इसे मर्यादा के साथ ही स्पर्श किया जाए.

निष्कर्ष यही है कि स्त्री की नाभि शरीर का वह केंद्र है जहां प्राण, अग्नि और लक्ष्मी ऊर्जा का वास है. इसका अपमान या अशुद्ध स्पर्श न केवल शारीरिक हानि पहुँचाता है बल्कि लक्ष्मी रुष्ट होकर घर-परिवार से सौभाग्य छीन लेती हैं.

शास्त्र, आयुर्वेद और पुराण सभी यह कहते हैं कि नाभि का सम्मान और पवित्रता बनाए रखना ही सुख, शांति और समृद्धि का आधार है. स्त्री का सम्मान ही लक्ष्मी का सम्मान है, और यह वही मार्ग है जिससे जीवन में स्थायी समृद्धि आती है.

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