कल शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि है. इसके बाद 2 अक्टूबर को दशमी तिथि पर मां दुर्गा भक्तों से विदा ले लेंगी. इस दिन को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है. दशमी को मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है. इस बार मां दुर्गा का आगमन गज हाथी पर सवार होकर हुआ था, जो शक्ति, समृद्धि और साहस का प्रतीक है. वहीं, दशमी तिथि को मां दुर्गा डोली में बैठकर प्रस्थान करेंगी. धार्मिक मान्यता के अनुसार, नवरात्र में देवी का डोली या पालकी पर सवार होकर प्रस्थान होना शुभ संकेत माना जाता है. इससे जीवन में सुख-शांति में वृद्धि होती है.
मां की विदाई पर श्लोक
माता दुर्गा के आगमन और प्रस्थान का वाहन केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उनके प्रभाव और हमारे जीवन पर पड़ने वाले फल का संकेत भी देता है. देवी पुराण में भी एक श्लोक के माध्यम से इसका वर्णन किया गया है.
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा।
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
इस श्लोक का अर्थ है-
शशि और सूर्य दिन- यदि माता दुर्गा नवरात्र के अंतिम दिन रविवार या सोमवार को महिष (भैंसे) की सवारी पर प्रस्थान करती हैं, तो यह शोक और रोगों की वृद्धि का संकेत देता है. इसका अर्थ है कि इस दिन उनके वाहन का चुनाव हमारे समाज और वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.
शनिवार और मंगलवार- यदि देवी दुर्गा इन दिनों मोर पर सवार होकर जाती हैं, तो ये दुख, कष्ट और बाधाओं में वृद्धि का कारक बनता है. यह दिन विशेष रूप से सावधान रहने का होता है.
बुध और शुक्रवार- इन दिनों मां दुर्गा गजवाहन यानी हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं. हाथी शक्ति, समृद्धि और कृषि के लिए अनुकूलता का प्रतीक है. ऐसे दिन मां के प्रस्थान से अधिक बारिश, समृद्धि और प्राकृतिक संतुलन बढ़ता है.
गुरुवार (सुरराजगुरौ)- यदि माता दुर्गा गुरुवार को मनुष्य के वाहन (नरवाहन) पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं. देवी जब डोली या पालकी में प्रस्थान करती हैं तो इसे नरवाहन कहा जाता है. देवी का यह वाहन सबसे शुभ माना जाता है. इसका अर्थ है कि देश और समाज में सुख, शांति, समृद्धि और कल्याण बढ़ता है. इसे “शुभ सौख्य” कहा गया है, यानी जीवन और समाज के लिए अत्यंत लाभकारी होता है.
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