Devutthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को सिंघाड़ा इसलिए चढ़ाया जाता है क्योंकि यह जल में उत्पन्न फल है, जो क्षीरसागर से उठने वाले विष्णु के जल-तत्व और जीवन पुनर्जागरण का प्रतीक है. सिंघाड़ा शरीर में ऊर्जा, ठंडक और संतुलन बनाए रखता है, इसलिए इसे देव जागरण का जलफल कहा गया है.
देवउठनी एकादशी का अर्थ
कार्तिक शुक्ल एकादशी वह दिन है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं. इस दिन शुभ कार्यों, विवाह, और दान-पुण्य की शुरुआत होती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार क्षीरसागर में शयन करते विष्णु जब जागते हैं, तो उन्हें जल से जुड़े तत्वों का भोग लगाया जाता है जिनमें सबसे प्रमुख है सिंघाड़ा, एक ऐसा फल जो पूर्णतः जल में जन्म लेता है.
साल 2025 में देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को पड़ रही है. भविष्य पुराण में उल्लेख है कि जलाद् उत्पन्नं फलं विष्णवे प्रीत्यर्थं समर्पयेत्. यानी जल से उत्पन्न फल भगवान विष्णु को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं.
सिंघाड़ा जल में पनपकर ऊपर उठता है, जैसे विष्णु जल से सृष्टि को जन्म देते हैं. इसलिए इसे विष्णु के जलावतारी स्वरूप मत्स्य और कच्छप का प्रतीक भी माना जाता है. इसे चढ़ाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि सृष्टि-चक्र के पुनः आरंभ का प्रतीक है.
जल तत्व और शरीर का संतुलन बनाता है सिंघाड़ा
कार्तिक मास में मौसम बदलता है, शरीर में जल-ऊर्जा घटने लगती है. सिंघाड़ा प्राकृतिक रूप से शरीर को ठंडक, मिनरल्स और ऊर्जा प्रदान करता है.
इसमें पोटैशियम, फॉस्फोरस और विटामिन B6 प्रचुर मात्रा में होते हैं. यह उपवास के दौरान जल-तत्व का संतुलन बनाए रखता है. इसकी शीतल प्रवृत्ति शरीर की गर्मी और अम्लता को कम करती है. इस प्रकार जो फल विष्णु को जल का प्रतीक बनाकर अर्पित किया जाता है, वही मनुष्य में संतुलन और स्थिरता का वैज्ञानिक माध्यम बनता है.
तुलसी विवाह और सिंघाड़ा
देवउठनी एकादशी को ही तुलसी-शालिग्राम विवाह होता है. तुलसी पृथ्वी की प्राण-ऊर्जा का, और सिंघाड़ा जल-ऊर्जा का प्रतीक है. जब ये दोनों भगवान विष्णु को अर्पित किए जाते हैं, तो यह पृथ्वी और जल के मिलन का दैवी संदेश देता है कि अब सृष्टि पुनः सक्रिय हो चुकी है.
आध्यात्मिक संदेश, भीतर की चेतना का जागरण
देवउठनी का मतलब केवल भगवान का जागना नहीं, बल्कि हमारी चेतना का जागरण भी है. सिंघाड़ा जल की गहराई में पनपता है लेकिन सतह पर आकर जीवन देता है यह मनुष्य की अंतरचेतना के उदय का प्रतीक है. जब विष्णु जागते हैं, तो सृष्टि का हर अंश बोल उठता है अब जीवन फिर से बहने लगा है.
क्या सीखें इस परंपरा से?
सिंघाड़ा हमें यह सिखाता है कि जीवन का संतुलन तभी संभव है जब भीतर का जल यानी शांति और भावनाएं शुद्ध रहें. जल की तरह प्रवाहशील रहना ही विष्णु-तत्व है: शांत, संयमित और पोषक.
सिंघाड़ा भगवान विष्णु को अर्पित करना केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि जल, चेतना और संतुलन की पूजा है. यह हमें याद दिलाता है कि जैसे विष्णु क्षीरसागर से उठते हैं, वैसे ही हर मनुष्य को भी अपनी गहराई से उठकर जीवन का नया आरंभ करना चाहिए.
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