Sharad Purnima 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास में आती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा भी कहते हैं. इस वर्ष शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा 6 अक्टूबर 2025 को है.
शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है.
चंद्रमा होगा पृथ्वी के निकट
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि, शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं.
पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाती है. जिसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा.
अमृत की होती है वर्षा
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि, शरद पूर्णिमा की रात कई मायने में महत्वपूर्ण है. जहां इसे शरद ऋतु की शुरुआत माना जाता है, वहीं यह भी माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा संपूर्ण 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और अपनी चांदनी में अमृत बरसाता है.
पूर्णिमा की रात हमेशा ही बहुत सुंदर होती है लेकिन शरद पूर्णिमा की रात को सबसे सुंदर रात कहा जाता है. पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि इसकी सुंदरता को निहारने के लिए स्वयं देवता भी धरती पर आते हैं.
धार्मिक आस्था है कि शरद पूर्णिमा की रात में आसमान से अमृत की वर्षा होती है. चांदनी के साथ झरते हुए इस अमृत रस को समेटने के लिए ही आज की रात खीर बनाकर चंद्रमा की चांदनी में रखा जाता है, ताकि सुबह स्नान के बाद उसे प्रसाद के रूप में खाने के बाद निरोग हो सके.
इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर करती हैं भ्रमण
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि, पौराणिक मान्यता है कि इस खीर में अमृत का अंश होता है, जो आरोग्य सुख प्रदान करता है. इसलिए स्वास्थ्य रूपी धन की प्राप्ति के लिए शरद पूर्णिमा के दिन खीर जरूर बनानी चाहिए और रात में इस खीर को खुले आसमान के नीचे जरूर रखना चाहिए.
इसी के साथ आर्थिक संपदा के लिए शास्त्रों में शरद पूर्णिमा की रात्रि को जागरण का विधान बताया गया है. यही कारण है कि इस रात को, को-जागृति यानी कोजागरा की रात भी कहा गया है. को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है.
मां लक्ष्मी करती हैं भ्रमण
कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रगट हुईं थी. इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. इसलिए जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन पर देवी की असीम कृपा होती है.
इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है. जो लोग धन एवं सुख-शांति की कामना रखते हैं वह इस अवसर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन भी कर सकते हैं.
मां करती है घर-घर विचरण
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के निशा में माता लक्ष्मी घर-घर विचरण करती हैं. इस निशा में माता लक्ष्मी के आठ में से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है.
देवी के आठ स्वरूप धन लक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है. इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं.
इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है. चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है.
भगवान विष्णु की भी करें पूजा
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में जो लोग भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागने की परंपरा भी है.
यह पूर्णिमा जागृति पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है. भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं.
इस दिन लड़कियां सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं.
श्वांस के रोगियों को फायदा
नेचुरोपैथी और आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है. इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है.
इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है. रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है. ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करने और शरीर के रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है.
यह पेट को ठंडक पहुंचाती है. श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है, साथ ही आंखों की रोशनी भी बेहतर होती है.
रोग प्रतिरोधकता बढ़ती है
मान्यतों के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए. चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है. इससे विषाणु दूर रहते हैं. हल्दी का उपयोग निषिद्ध है. प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए.
रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है. दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होते हैं. यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करते हैं. चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है.
इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है.
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