चुनाव आयोग द्वारा सोमवार को बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला तय हो गया है.
जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA जहां एक और कार्यकाल की उम्मीद कर रहा है, वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से मिलकर बने इंडिया गठबंधन का लक्ष्य सत्ता से NDA को बेदखल करना है.
यहां नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA के लिए एक एसडब्ल्यूओटी (ताकत, कमजोरियां, अवसर, खतरे) विश्लेषण किया गया है.
बिहार में क्या है NDA की ताकत?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार NDA के सबसे मजबूत स्तंभ हैं और उनके नेतृत्व में गठबंधन को कई स्तरों पर बढ़त हासिल है. राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार ने लगभग दो दशकों के शासन में प्रशासनिक स्थिरता और कल्याणकारी योजनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है. इनमें घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, ग्रामीण इलाकों में पेयजल की आपूर्ति और अगले पांच वर्षों में एक करोड़ रोजगार सृजन का वादा प्रमुख हैं.
राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि नीतीश कुमार की ‘सुशासन’ की छवि, BJP और जदयू का संगठित कैडर नेटवर्क और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राज्य में शुरू की गई आधारभूत ढांचा परियोजनाएं NDA की प्रमुख ताकत हैं. सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि और 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपए की आर्थिक सहायता जैसी योजनाएं भी मतदाताओं के बीच लोकप्रिय मानी जा रही हैं.
NDA की ये कमजोरियां करेंगी परेशान?
हालांकि, लगभग दो दशकों (2005-2010) से सत्ता में रहने के कारण नीतीश कुमार के शुरुआती कार्यकाल की ताजगी अब कम हो गई है. सत्ता विरोधी लहर इस बार एक प्रमुख चुनौती बन सकती है.
इसके अलावा, BJP के सामाजिक आधार को लेकर यह धारणा बनी हुई है कि वह अभी भी अगड़ी जातियों की पार्टी है, जिनकी आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का केवल करीब 10 प्रतिशत है.
NDA के लिए हैं ये अवसर
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि नीतीश कुमार के राजनीतिक चरम काल के बाद जदयू में द्वितीय पंक्ति के नेतृत्व का अभाव BJP के लिए संगठनात्मक विस्तार और नेतृत्व में जगह बनाने का अवसर पैदा करता है.
साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ भी NDA को मिल सकता है.
NDA को ये हैं खतरे?
BJP के भीतर अन्य दलों से आए नेताओं को लेकर असंतोष बढ़ रहा है, जिसे पार्टी के लिए ‘प्रदूषणकारी प्रभाव’ के रूप में देखा जा रहा है. वहीं, ‘हाई कमांड संस्कृति’, जो पहले कांग्रेस से जोड़ी जाती थी, अब BJP में भी महसूस की जा रही है.
इसके अलावा, ‘हिंदुत्व’ विचारधारा पर अत्यधिक निर्भरता मुस्लिम मतदाताओं, विशेष रूप से पासमांदा समुदाय को दूर कर सकती है जिन्हें नीतीश कुमार के सामाजिक संतुलन की राजनीति ने अब तक जोड़े रखा था.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में जहां विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता को मुद्दा बना रहा है, वहीं NDA ‘विकास और स्थिर शासन’ की अपनी थीम पर जनता से समर्थन मांगने की रणनीति पर काम कर रहा है.