
करवा चौथ का व्रत हर शादीशुदा महिला के लिए बेहद खास होता है. यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी खाकर दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और चांद निकलने के बाद अपने पति के हाथों से जल ग्रहण कर उपवास तोड़ती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि द्रौपदी और सीता भी करती थीं करवा चौथ, जानिए क्या कहा गया है शास्त्रों में..

शास्त्रों में द्रौपदी या सीता द्वारा करवा चौथ का व्रत रखने का कोई उल्लेख नहीं है, हालांकि महाभारत की कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में द्रौपदी को करवा चौथ से जुड़ी एक कथा सुनाई थी, जिसमें एक ब्राह्मण की बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था. यह कथा शिव-पार्वती को सुनाए गए एक प्रसंग से जुड़ी है, जो इस व्रत के पारंपरिक संदर्भ को दर्शाती है.

महाभारत काल के अनुसार, द्रौपदी ने पांडवों की विजय के लिए करवा चौथ का व्रत किया था, जिसमें उन्होंने चंद्रमा के उदय होने तक उपवास किया और चंद्रमा के बाद अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोला. शास्त्रों में इस व्रत का वर्णन मिलता है, जिसमें महिलाएं अपने पति की विजय, कल्याण और प्रेम के लिए भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करती हैं.

द्रौपदी ने अर्जुन की तपस्या के बाद पांडवों पर आए संकटों से मुक्ति के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर करवा चौथ का व्रत रखा था, जिससे पांडवों के कष्ट दूर हुए और अर्जुन सुरक्षित वापस लौट आए. यह पौराणिक कथा महाभारत काल से जुड़ी है और इसमें द्रौपदी की चिंता को दूर करने के लिए कृष्ण ने उन्हें इस व्रत का महत्व बताया था. द्रौपदी ने इस व्रत को विधि-विधान से किया, जिसके परिणामस्वरूप अर्जुन तपस्या से सुरक्षित लौट आए और पांडवों के सभी कष्ट समाप्त हो गए.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि मां सीता ने भी भगवान श्रीराम के लिए करवा चौथ जैसा व्रत रखा था, जब वह अशोक वाटिका में थीं और उनसे अलग थीं. उन्होंने अन्न-जल त्यागकर लंबा उपवास किया था और चंद्र देव की पूजा कर अपने पति के साथ आजीवन रहने की कामना की थी, जिससे यह व्रत करवा चौथ की परंपरा से जुड़ गया है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान राम रावण से युद्ध करके सीता को अशोक वाटिका से मुक्त कराने के बाद घर लौटे, तब भी सीता ने भगवान राम के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था. कुछ मान्यताओं के अनुसार, सीता ने रावण के द्वारा हरण के बाद अशोक वाटिका में रहते हुए ही भगवान राम के लिए यह व्रत किया था.
Published at : 09 Oct 2025 04:57 PM (IST)