भागवत कथा: ययाति का शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से विवाह और शर्मिष्ठा प्रसंग

भागवत कथा: ययाति का शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से विवाह और शर्मिष्ठा प्रसंग



श्रीमद्भागवत महापुराण में ययाति की कथा एक ऐसा प्रसंग है, जिसमें प्रेम, त्याग, शाप और मोह के साथ-साथ मानवीय दुर्बलताओं का भी वर्णन मिलता है। यह प्रसंग न केवल राजा ययाति के जीवन का परिचायक है, बल्कि देवयानी, शर्मिष्ठा और शुक्राचार्य जैसे महान पात्रों के माध्यम से धर्म और अधर्म के सूक्ष्म भेद को भी स्पष्ट करता है।

वन में देवयानी और शर्मिष्ठा का विवाद

एक बार असुरों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और दानवराज वृषपर्वा की राजकुमारी शर्मिष्ठा सखियों सहित वन में जलविहार के लिए गईं। सभी ने सरोवर में स्नान के लिए वस्त्र उतारे ही थे कि भगवान शिव वहां से गुजरे। भयवश सभी कन्याएं शीघ्रता में वस्त्र पहनने लगीं।

इस हड़बड़ी में शर्मिष्ठा ने भूलवश देवयानी के वस्त्र पहन लिए। जब देवयानी ने यह देखा, तो क्रोध से भर उठी। उसने शर्मिष्ठा को अपमानजनक शब्द कहे। राजकुमारी होने के अहंकार में शर्मिष्ठा ने देवयानी को धक्का देकर कुएं में फेंक दिया और उसके वस्त्र भी छीन लिए।

ययाति का आगमन और देवयानी का प्रस्ताव

संयोगवश उसी मार्ग से चंद्रवंशी राजा ययाति का आगमन हुआ। कुएं से आती आवाज सुनकर उन्होंने देवयानी को बाहर निकाला और वस्त्र दिए। तब देवयानी ने कहा, “राजन, आपने मेरा हाथ पकड़कर मेरी रक्षा की है। अब मैं किसी और को अपना पति नहीं मान सकती।”

राजा ययाति यह सुनकर चकित रह गए। देवयानी ने आगे कहा, “मैं शुक्राचार्य की पुत्री हूं। पूर्व में देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच मेरे पिता से मृत-संजीवनी विद्या सीखने आए थे। मैं उनसे प्रेम करने लगी, पर उन्होंने मुझे अस्वीकार कर दिया। क्रोध में मैंने उन्हें शाप दिया और उन्होंने मुझे शाप दे दिया कि किसी ब्राह्मण से मेरा विवाह नहीं होगा। इसलिए, आप क्षत्रिय हैं — आप ही मेरे योग्य वर हैं।”

ययाति का विवाह देवयानी से

ययाति ने यह सुनकर देवयानी को सम्मानपूर्वक शुक्राचार्य के पास भिजवाया। देवयानी ने पिता को सारी घटना बताई और शर्मिष्ठा के व्यवहार की शिकायत की। क्रोधित शुक्राचार्य असुरलोक छोड़ने को तत्पर हो गए।

यह समाचार जब दानवराज वृषपर्वा को मिला, तो वे भयभीत हो उठे। उन्होंने शुक्राचार्य को मनाने का प्रयास किया। तब शुक्राचार्य ने कहा, “मुझे तुमसे नहीं, पर मेरी पुत्री से संतोष प्राप्त कराओ।” वृषपर्वा ने देवयानी से क्षमा मांगी और शर्मिष्ठा को दंडित करने का प्रस्ताव रखा।

देवयानी ने कहा, “शर्मिष्ठा अब मेरे पति की दासी बनकर रहेगी।” शर्मिष्ठा ने अपने कुल की रक्षा हेतु यह दंड स्वीकार कर लिया। ययाति और देवयानी का विवाह संपन्न हुआ।

ययाति और शर्मिष्ठा का गुप्त प्रेम

विवाह के उपरांत देवयानी ययाति के साथ राजमहल लौट आई और शर्मिष्ठा दासी बनकर उनके साथ आई। यद्यपि ययाति ने शुक्राचार्य को वचन दिया था कि वे शर्मिष्ठा के साथ कोई संबंध नहीं बनाएंगे, किंतु नियति को कुछ और ही स्वीकार्य था।

समय बीता, और ययाति और शर्मिष्ठा का संपर्क हुआ। धीरे-धीरे दोनों में प्रेम उत्पन्न हुआ और फिर गुप्त मिलन। उनके तीन पुत्र भी हुए। उधर देवयानी ययाति के प्रति समर्पित थीं और उनके भी दो पुत्र हो चुके थे।

देवयानी का क्रोध और ययाति को शाप

किंतु सत्य अधिक दिन छिप नहीं सकता। देवयानी को जब यथार्थ का भान हुआ, तो वे अपमानित और क्रोधित होकर पिता शुक्राचार्य के पास गईं और ययाति की विश्वासघात की कथा सुनाई।

शुक्राचार्य ने ययाति को बुलाकर क्रोधित स्वर में कहा, “तुमने अपने वचन का उल्लंघन किया है। तुम विषयभोग में अंधे हो गए हो। इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं — तुम तत्काल वृद्ध और शक्तिहीन हो जाओगे।”

निष्कर्ष

ययाति, देवयानी और शर्मिष्ठा की यह कथा केवल पौराणिक आख्यान नहीं है, बल्कि यह शक्ति, भावनाओं, प्रतिशोध, मोह और शापों से जुड़ी एक ऐसी कहानी है जो आज भी मानवीय मन को गहराई से झकझोर देती है।

यह प्रसंग यह भी दर्शाता है कि संयम, वचनपालन और इच्छाओं पर नियंत्रण ही एक राजा और पुरुषार्थी जीवन की मूल कसौटियाँ हैं। किंतु जब ये टूटती हैं, तो परिणाम चाहे कितना ही प्रतापी क्यों न हो — शाप और पतन निश्चित होते हैं।



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