Ahoi ashtami 2025: अहोई अष्टमी पर क्यों किया जाता है राधा कुंड में स्नान? जानें धार्मिक महत्व

Ahoi ashtami 2025: अहोई अष्टमी पर क्यों किया जाता है राधा कुंड में स्नान? जानें धार्मिक महत्व


अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ की ही तरह कठिन और महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए निर्जल व्रत रखती हैं. शाम के समय विधिवत पूजा के बाद चंद्र दर्शन और अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है. अहोई अष्टमी की पूजा प्रदोष काल में की जाती है.

अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ की ही तरह कठिन और महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए निर्जल व्रत रखती हैं. शाम के समय विधिवत पूजा के बाद चंद्र दर्शन और अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है. अहोई अष्टमी की पूजा प्रदोष काल में की जाती है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब भगवान श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर नामक राक्षस का वध किया था, तो उन पर गौ हत्या का पाप लग गया था. इस पाप से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया. इसके बाद राधा रानी ने अपने कंगन से एक और कुंड खोदा और उसमें स्नान किया, जिसे कंगन कुंड भी कहते हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब भगवान श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर नामक राक्षस का वध किया था, तो उन पर गौ हत्या का पाप लग गया था. इस पाप से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया. इसके बाद राधा रानी ने अपने कंगन से एक और कुंड खोदा और उसमें स्नान किया, जिसे कंगन कुंड भी कहते हैं.

अहोई अष्टमी का व्रत और पूजा माता अहोई या देवी अहोई को समर्पित है. माताएं अपनी संतान की भलाई और दीर्घायु के लिए उनकी पूजा करती हैं. इस दिन को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि अहोई अष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि के दौरान किया जाता है, जो चंद्र मास का आठवां दिन होता है. अहोई माता कोई और नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी हैं.

अहोई अष्टमी का व्रत और पूजा माता अहोई या देवी अहोई को समर्पित है. माताएं अपनी संतान की भलाई और दीर्घायु के लिए उनकी पूजा करती हैं. इस दिन को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि अहोई अष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि के दौरान किया जाता है, जो चंद्र मास का आठवां दिन होता है. अहोई माता कोई और नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी हैं.

राधा कुंड में स्नान का सबसे बड़ा महत्व संतान प्राप्ति से जुड़ा है, खासकर अहोई अष्टमी के दिन मध्यरात्रि में स्नान करने से निसंतान दंपतियों की गोद भर जाती है. इसके अतिरिक्त, राधा कुंड में स्नान करने से साधक को राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा मिलती है, सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.

राधा कुंड में स्नान का सबसे बड़ा महत्व संतान प्राप्ति से जुड़ा है, खासकर अहोई अष्टमी के दिन मध्यरात्रि में स्नान करने से निसंतान दंपतियों की गोद भर जाती है. इसके अतिरिक्त, राधा कुंड में स्नान करने से साधक को राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा मिलती है, सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.

धार्मिक मान्यता है कि अहोई अष्टमी राधा कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है. इस शुभ अवसर पर आधी रात को राधा कुंड के पवित्र जल में डुबकी लगाने से भक्तों को राधा-कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है और निःसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.

धार्मिक मान्यता है कि अहोई अष्टमी राधा कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है. इस शुभ अवसर पर आधी रात को राधा कुंड के पवित्र जल में डुबकी लगाने से भक्तों को राधा-कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है और निःसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.

अहोई अष्टमी पर राधा कुंड स्नान एक पवित्र प्रथा है जिसमें संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है. इस दिन, आधी रात को राधा कुंड के पवित्र जल में डुबकी लगाने से भक्तों को राधा-कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है और निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है. स्नान के बाद, संतान सुख प्राप्त होने पर भक्त राधा रानी को धन्यवाद देने के लिए वापस स्नान करते हैं.

अहोई अष्टमी पर राधा कुंड स्नान एक पवित्र प्रथा है जिसमें संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है. इस दिन, आधी रात को राधा कुंड के पवित्र जल में डुबकी लगाने से भक्तों को राधा-कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है और निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है. स्नान के बाद, संतान सुख प्राप्त होने पर भक्त राधा रानी को धन्यवाद देने के लिए वापस स्नान करते हैं.

Published at : 12 Oct 2025 02:30 PM (IST)



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