देश में मौत की सजा पाए कैदियों को फांसी की सजा दी जाती है. फांसी की प्रक्रिया में काफी समय लगता है और ये ज्यादा दर्दनाक भी है. इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मृत्युदंड की सजा के तरीके को बदलने की गुहार लगाई गई. लेकिन केंद्र सरकार फिलहाल इसे बदलने को राजी नहीं. कोर्ट ने इसपर नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार को वक्त के साथ बदलना चाहिए.
इस बीच ये सवाल उठ रहा है कि अमेरिका समेत ज्यादातर देशों में जहरीला इंजेक्शन देकर मौत की सजा को ज्यादा आसान और मानवीय तरीका माना जाता है तो हमारे यहां क्या समस्या है?
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर के पुराने रवैए पर नाराजगी जताई. दरअसल इन दिनों एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है, जिसमें मौत की सजा पाए कैदियों को मरने का विकल्प देने का सुझाव है. कैदी को फांसी या जहरबुझे इंजेक्शन में से एक ऑप्शन चुनने का अधिकार हो. याचिका पेश कर रहे वकील की दलील थी कि घातक इंजेक्शन बहुत तेजी से असर करते हैं, और कुछ मिनटों के भीतर मौत हो सकती है. ये ज्यादा सम्मानजनक और मानवीय तरीका है.
दूसरी तरफ, फांसी के साथ कई समस्याएं हैं. अव्वल तो ये कि फांसी देने के लिए ट्रेन्ड लोग काफी कम हैं. कम प्रशिक्षित हाथों में यह काम नहीं सौंपा जा सकता क्योंकि एक बार अगर फांसी फेल हो जाए तो कैदी को दूसरी बात सजा नहीं दी जा सकती, चाहे उसने कितना ही क्रूर अपराध क्यों न किया हो. कानून की भाषा में इसे दोहरे दंड की मनाही कहते हैं. कोशिश नाकामयाब होने पर कैदी को रिहा ही करना होगा, जो कि समाज के लिए बड़ा खतरा है.
अब आते हैं, मानवीय एंगल पर. फांसी की सजा सुना तो जाती है, लेकिन इसके लिए काफी तैयारियां होती हैं. तब तक कैदी जेल में रहते हुए रोज मौत का इंतजार करता है. यह डेथ वॉरंट अपने-आप में अमानवीय है.

रही प्रोसेस की बात, तो यही वो चीज है, जिसे देखते हुए कई देशों ने अपने यहां से फांसी की सजा खत्म कर दी. जब किसी को फांसी दी जाती है, तो रस्सी उसकी गर्दन के चारों ओर डाली जाती है और नीचे का तख्ता गिरा दिया जाता है. इसका मकसद होता है कि गर्दन की हड्डी तुरंत टूट जाए ताकि मौत झटके में आ जाए. लेकिन कई बार हड्डी पूरी तरह से नहीं टूट पाती. ऐसे में अपराधी धीरे-धीरे काफी दर्दनाक मौत मरता है. कई बार तो इसमें दस मिनट से लेकर आधा घंटा तक लग जाता है. उतनी देर कैदी छटपटाता रहता है.
बहुत से देशों में फांसी की सजा के विकल्प के तौर पर लीथल इंजेक्शन आ गया और धीरे-धीरे वही रह गया. इस प्रोसेस में मौत की सजा पाए कैदी को आमतौर पर तीन दवाएं दी जाती हैं.
पहले इंजेक्शन से बेहोशी आती है.
दूसरी से मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं.
तीसरे और आखिरी डोज से दिल की धड़कन रुक जाती है.
इस दौरान कैदी कुर्सी पर आरामदेह तरीके से बिठाया जाता है. उसकी काउंसलिंग होती है और हर तरह से उसे शांत रखने की कोशिश की जाती है. चूंकि मौत दो से तीन मिनट के भीतर हो जाती है तो इसमें कैदी को वैसा कष्ट नहीं झेलना होता.
लेकिन इसमें भी खामियां हैं
इंजेक्शन देने के लिए ट्रेन्ड मेडिकल प्रोफेशनल ही चाहिए. अगर सुई लगाने वाला जरा भी कमजोर या कम प्रशिक्षित हुआ तो गलत नस में भी इंजेक्शन लग सकता है. दवा अगर सही मात्रा में न हो तो कैदी को अंदर ही अंदर जलन और घुटन महसूस होती है, पर वो बोल नहीं पाता क्योंकि शरीर सुन्न पड़ा होता है. ऐसी गलतियां वैसे तो कम होती हैं लेकिन अगर हों तो ये मौत भी फांसी जितनी ही तकलीफ देने वाली बन जाती है.

इन्हीं सब वजहों से ज्यादातर देशों ने जहरीले इंजेक्शन को अपनाया क्योंकि ये जल्दी होने वाली प्रोसेस है और दिखने में साफ-सुथरी और कम क्रूर लगती है.
बहुत से देश मौत की सजा को ही खत्म कर चुके, लेकिन अमेरिका समेत जहां भी मृत्युदंड वैध है, वहां घातक इंजेक्शन ने फांसी को रिप्लेस कर दिया.
हमारे यहां चल रही जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 में सम्मानजनक मौत का अधिकार दिया गया है. यह कहता है कि अव्वल तो किसी का जीवन नहीं लिया जा सकता. सिर्फ कानून ही इसपर फैसला ले सकता है. और अगर मौत की सजा या फिर दया मृत्यु देनी ही हो तो ये अधिकतम गैर-हिंसात्मक तरीके से हो.
सरकारी दलील क्या है
बुधवार को हुई सुनवाई में सेंटर की तरफ से कहा गया कि यह नीतिगत मामला है. यानी ये बात कोर्ट की तरफ से तय नहीं हो सकती, बल्कि इसपर सरकार सोचेगी. मतलब अगर कोई नया तरीका अपनाना है तो संसद इसे तय करेगी.
अब इस मामले पर अगली सुनवाई नवंबर में होगी. इसके बाद ही पता लगेगा कि क्या कैदियों को विकल्प दिया जाएगा, या मौजूदा तरीका बरकरार रहेगा.
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