9 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी/वीरेंद्र मिश्र
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रमेश सिप्पी वो निर्माता-निर्देशक हैं जिन्होंने सपनों को परदे पर हकीकत का रूप दिया और भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
रमेश सिप्पी भारतीय सिनेमा के उन दिग्गज निर्देशकों में से हैं जिन्होंने कराची से मुंबई तक का सफर तय करते हुए फिल्म जगत की विरासत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। रमेश सिप्पी फिल्म निर्माता जी.पी. सिप्पी के बेटे हैं, जिनकी फिल्म इंडस्ट्री में गहरी पकड़ थी। बचपन से ही फिल्म सेट पर जाते-जाते रमेश ने निर्देशन की बारीकियां सीखीं और मात्र 19 साल की उम्र में ‘मेरे महबूब’ से सातवें असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर करियर की शुरुआत की।
1971 में रिलीज हुई ‘अंदाज’ रमेश सिप्पी के निर्देशन की पहली फिल्म थी, जिसने हेमा मालिनी और राजेश खन्ना दोनों को सुपरस्टार बना दिया। इसके बाद ‘सीता और गीता’ ने उनकी सफलता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, और फिर ‘शोले’ ने इतिहास रच दिया।
भारतीय सिनेमा के स्वर्ण अध्याय में दर्ज ‘शोले’ ने न केवल एक उत्कृष्ट रचना के रूप में पहचान बनाई, बल्कि रमेश सिप्पी को एक दिग्गज फिल्मकार के रूप में अमर कर दिया। हालांकि आगे चलकर इसी फिल्म की अपार सफलता उनके लिए एक बोझ भी बन गई। कई बार उनका हौसला टूटा, लेकिन उन्होंने हर बार नई ऊर्जा के साथ सफलता की एक नई कहानी लिखी।
आज के सक्सेस स्टोरी में जानेंगे कि कैसे रमेश सिप्पी ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया..

रमेश सिप्पी, क्लासिक फिल्मों के जादूगर।
कराची से मुंबई तक का सफर: पिता की विरासत से फिल्मी दुनिया में ढले
रमेश सिप्पी का जन्म 23 जनवरी 1944 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उनके जन्म के समय यह इलाका भारत का हिस्सा था, लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आकर मुंबई (तत्कालीन बंबई) में बस गया। रमेश सिप्पी का पूरा नाम रमेश सिफियामलानी सिप्पी है और वे एक सिंधी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता जी. पी. सिप्पी (गोपालदास परमानंद सिप्पी) स्वयं एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और वितरक थे, जो भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रतिष्ठित हस्ताक्षर माने जाते थे। पिता की फिल्म इंडस्ट्री में मजबूत पकड़ और अनुभव ने रमेश सिप्पी के करियर को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रमेश सिप्पी ने बहुत कम उम्र में ही फिल्मों से जुड़ना शुरू कर दिया था। मात्र छह वर्ष की आयु में वे अपने पिता की फिल्मों की शूटिंग देखने जाने लगे थे और वहीं से उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियां सीखनी शुरू कर दीं।
‘मेरे महबूब’ से सातवें असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में करियर की शुरुआत
रमेश सिप्पी ने करियर की शुरुआत असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में डायरेक्टर एच.एस. रवैल की फिल्म ‘मेरे महबूब’ (1963) से की थी। इस फिल्म में रमेश सिप्पी सातवें और आखिरी असिस्टेंट थे। इसके बाद आई एस जौहर की फिल्म ‘जौहर महमूद इन गोवा’ और डायरेक्टर अमर कुमार की फिल्म ‘मेरे सनम’(1965) जैसी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया। इस फिल्म को रमेश सिप्पी के पिता जे पी सिप्पी ने खुद प्रोड्यूस की थी। जिसमें आशा पारेख और बिस्वजीत जैसे सितारों ने काम किया था। रमेश सिप्पी कहते हैं- ‘मेरी महबूब’ में कुछ दिनों तक काम किया। वहां मैं साधना जी की चप्पल उठाता था, यानी एक छोटा असिस्टेंट था। धीरे-धीरे मैं सातवें असिस्टेंट तक पहुंचा। इन छोटे-छोटे कामों से मुझे काफी अनुभव मिला।
हेमा के ‘अंदाज’ से शुरू हुआ सफर, ‘शोले’ से इतिहास बना
रमेश सिप्पी ने अपने डायरेक्शन करियर की शुरुआत फिल्म ‘अंदाज’ (1971) से की। इस फिल्म को रमेश सिप्पी के पिता जे पी सिप्पी ने प्रोड्यूस की थी। इस फिल्म में शम्मी कपूर, हेमा मालिनी और राजेश खन्ना जैसे सितारों ने काम किया था। इसी फिल्म के राजेश खन्ना सुपर स्टार बन गए। ‘अंदाज’ के बाद रमेश सिप्पी ने ‘सीता और गीता’ बनाई जिसमें हेमा मालिनी ने दोहरी भूमिका निभाई थी। यह फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई, इसके बाद तो ‘शोले’ ने इतिहास रच दिया। रमेश सिप्पी कहते हैं- ‘सीता और गीता’ बनाने का विचार आया तो पहले मुमताज को लेने की बात चली, लेकिन उनके डेट्स नहीं मिले। इसके बाद मैंने हेमा जी से बात की और वो फिल्म में काम करने के लिए राजी हो गईं।
शोले.. भारतीय सिनेमा का पर्व
रमेश सिप्पी ने ‘सीता और गीता’ जैसी सफल फिल्म बनाने के बाद एक्शन जॉनर की ओर रुख किया और हॉलीवुड वेस्टर्न फिल्मों जैसा एक्शन पर आधारित फिल्म बनाने की इच्छा जताई। इसी दौरान उन्हें सलीम-जावेद की एक छोटी सी कहानी मिली, जिसमें उन्हें बहुत संभावनाएं नजर आईं। रमेश सिप्पी ने इस कहानी को विकसित कर एक बड़ी फिल्म बनाने का फैसला किया, जो अंततः ‘शोले’ बनी। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं,बल्कि भारतीय सिनेमा का वो पर्व है, जिसकी चमक आज भी हर दिल में जलती है।
रमेश सिप्पी कहते हैं- सलीम-जावेद ने पहले ‘शोले’ की कहानी मनमोहन देसाई को सुनाई थी, लेकिन उन्हें लगा कि यह उनकी टाइप की फिल्म नहीं है। उस समय उनकी लॉस्ट एंड फाउंड जैसी फिल्मों की अलग शैली थी।
फिल्म शोले के ट्रायल शो का जिक्र करते हुए रमेश सिप्पी कहते हैं- दिलीप कुमार ने ट्रेन लूट वाले सीन पर कहा कि ये तो किसी फिल्म का क्लाइमेक्स लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि सीन बहुत भयानक और शानदार है। फिल्म रिलीज के शुरुआती दिनों में ट्रेड पेपर्स ने इसे फ्लॉप बताया और हेडलाइंस छपीं – डिजास्टर। उस समय इंडस्ट्री तो ट्रेड पेपर के हिसाब से चलती थी। बाद में जब फिल्म हिट हुई, तो उन सबने अपनी गलती मानी।

‘शोले’ का नए वर्जन या सीक्वल क्यों नहीं बन सकत है?
रमेश सिप्पी ने ‘शोले’ जैसी दूसरी फिल्म बनाने में इसलिए दिलचस्पी या योजना नहीं बनाई क्योंकि उन्हें लगता है कि ‘शोले’ अपनी जगह एक ऐसी ऐतिहासिक फिल्म बन चुकी है जिसकी सफलता और जादू को फिर दोबारा प्राप्त करना मुश्किल है। रमेश सिप्पी कहते हैं- कई बार पार्ट 2 या प्रीक्वल बनाने का प्रयास होता है, लेकिन ‘शोले’ जैसी अमर फिल्म की कहानी में फिर छेड़छाड़ करने से वह जादू और प्रभाव कम हो सकता है। इसलिए ‘शोले’ को उसी रूप में रहने देने का फैसला किया है ताकि उसकी विरासत और लोकप्रियता बनी रहे। कुछ कहानियां पूरी हो जाती हैं और उन्हें वैसी ही रहने देना चाहिए, बजाय नए वर्जन या सीक्वल बनाने के।
पांच साल के ब्रेक के बाद ‘शोले’ से भी महंगी फिल्म बनाई
‘शोले’ के बाद रमेश सिप्पी ने करीब पांच साल का ब्रेक लिया और फिर 1980 में फिल्म ‘शान’ बनाई। इस फिल्म का बजट ‘शोले’ से बहुत ज्यादा था। ‘शान’ को उस समय की सबसे महंगी फिल्मों में से एक माना जाता था, जिसका बजट लगभग ₹6 करोड़ था, जबकि ‘शोले’ का बजट ₹3 करोड़ था। ‘शान’ को बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप माना जाता है। हालांकि यह फिल्म बाद में टीवी पर देखने के बाद एक कल्ट क्लासिक बन गई थी।
रमेश सिप्पी से जब पूछा गया कि अगर ‘शोले’ से पहले ‘शान’ पहले आती तो क्या नतीजा अलग होता? रमेश सिप्पी ने कहा- हो सकता है, अगर ‘शान’ पहले रिलीज होती तो वो भी हिट रहती। लेकिन ‘शोले’ जैसी फिल्म को कोई नहीं रोक सकता था। ‘शोले’ की जबरदस्त सफलता के कारण बाकी फिल्में उसके बोझ तले दब गईं। हर फिल्म की अपनी किस्मत होती है।
रमेश सिप्पी ‘शान’, ‘शक्ति’ और ‘सागर’ का जिक्र करते हुए कहते हैं- ‘शान’ और ‘शक्ति’ बनाने में उतना ही मजा आया था जितना की ‘शोले’ बनाने में। मेरी फिल्म ‘सागर’ राज कपूर की फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के साथ लगभग एक ही समय रिलीज हुई थी। ‘राम तेरी गंगा मैली’ ज्यादा हिट हुई, जबकि ‘सागर’ से उम्मीदें थीं। क्रिटिक्स ने कहा कि दर्शकों की पसंद समझना आसान नहीं, फिल्म तो अच्छी थी। ‘सागर’ में कमल हासन, ऋषि कपूर और सभी कलाकारों ने बढ़िया काम किया।

‘शोले’ के बाद फीकी पड़ गई चमक: 25 साल बाद ‘शिमला मिर्ची’ से लौटे फिर भी मिली नाकामी
फिल्म ‘शान’ के बाद रमेश सिप्पी की फिल्म ‘शक्ति’ हिट रही थी। यह फिल्म उस साल की आठवीं सबसे सफल फिल्म थी, लगभग ढाई करोड़ रुपए के बजट में बनी और 4 करोड़ रुपए की नेट कमाई की। इसमें दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े सितारों ने काम किया था। इसके बाद फिल्म ‘सागर’ को औसत सफलता मिली, जो रमेश सिप्पी के लिए संतोषजनक नहीं थी। बाद में ‘भ्रष्टाचार’, ‘अकेला’ और ‘जमाना दीवाना’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें ‘शोले’, ‘सीता और गीता’ जैसी हिट फिल्मों जैसा प्रभाव नहीं दिखा। ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं। ‘जमाना दीवाना’ के बाद रमेश सिप्पी लंबे समय तक फिल्म डायरेक्शन से दूर हो गए। 25 साल के बाद जब ‘शिमला मिर्ची’ से वापसी की तो एक बार फिर असफलता हाथ लगी। रमेश सिप्पी कहते हैं- मैंने जब भी कोई फिल्म बनाई है, पूरी मेहनत और दिल से बनाई है। जैसे बनानी चाहिए थी, वैसे ही बनाई है।
‘शोले’ की छाया से निकलकर ‘बुनियाद’ तक, टीवी के जरिए पाई नई पहचान
रमेश सिप्पी के लिए उनकी फिल्म ‘शोले’ इतनी बड़ी सफलता थी कि हर उनकी नई फिल्म की तुलना इसी से होने लगी। ‘शोले’ की सफलता की छाया उनके लिए एक बड़ा बोझ बन गई थी, क्योंकि लोग लगातार उनसे अपेक्षा करते थे कि वे फिर से वैसी ही हिट फिल्म बनाएंगे। हालांकि उनके बाद की कई फिल्में उस स्तर की सफलता हासिल नहीं कर पाईं, जिससे उन्हें मानसिक तौर पर गहरा आघात पहुंचा। इस निराशाजनक दौर में, रमेश सिप्पी ने फिल्मों से कुछ समय के लिए दूरी बना ली और टीवी की दुनिया में कदम रखा।
1986 में वे टीवी सीरियल ‘बुनियाद’ लेकर आए, जो दर्शकों को नई दिशा और पहचान देने में सफल रहा। इस टीवी सीरियल ने उन्हें एक बार फिर से मान्यता दिलाई और उन्होंने अपने करियर को नए सिरे से स्थापित किया। यह उनके लिए सिर्फ एक कार्यक्षेत्र का बदलाव नहीं था, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति में सुधार लाने वाला एक मोड़ था। इस प्रकार ‘शोले’ की भारी छाया और बाद की असफलताओं के बीच रमेश सिप्पी ने अपने लिए टीवी सीरियल ‘बुनियाद’ में नई उम्मीद जगाई और फिल्मी दुनिया में लौटने का नया रास्ता बनाया।

‘बुनियाद’ का प्रसारण 1986 में दूरदर्शन पर शुरू हुआ था।
‘बुनियाद’ भारत-पाकिस्तान विभाजन पर आधारित एक बेहद लोकप्रिय और संवेदनशील धारावाहिक था। इसकी कहानी 1915 से 1970 के कालखंड में स्वतंत्रता संग्राम, विभाजन और इसके बाद आए विस्थापन की कठिनाइयों को दर्शाती है। यह सीरियल इसलिए भी यादगार है क्योंकि इसने विभाजन की पीड़ा को एक पारिवारिक दृष्टिकोण से गहराई से पेश किया। यह सीरियल रमेश सिप्पी के दिल के बहुत करीब था, क्योंकि उन्होंने विभाजन की पीड़ा को बहुत करीब से देखा था। रमेश सिप्पी कहते हैं- यह बात उस जमाने की है जब टीवी लोगों के घरों में नया-नया आया था। धीरे-धीरे सब इसके दीवाने हो गए। ऐसा वक्त आया जब दिल्ली की सड़कों पर रात 8 बजे सन्नाटा छा जाता था, क्योंकि सब लोग अपने घरों में बैठकर टीवी देखते थे।
पहली पत्नी से तीन बच्चे, दूसरी शादी अभिनेत्री किरण जुनेजा से
रमेश सिप्पी ने दो शादियां की हैं। उनकी पहली पत्नी गीता सिप्पी थीं और उनसे उनके तीन बच्चे हैं. बेटे रोहन सिप्पी, जो फिल्म निर्देशक हैं, और दो बेटियां शीना सिप्पी और सोनया सिप्पी हैं।
रमेश सिप्पी की दूसरी पत्नी अभिनेत्री किरण जुनेजा हैं, जिससे उनकी शादी 1991 में हुई थी। किरण जुनेजा उनसे 17 साल छोटी हैं। रमेश सिप्पी की बेटी शीना सिप्पी की शादी शशि कपूर के बेटे कुणाल कपूर से हुई थी, लेकिन 2004 में उनका तलाक हो गया।

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