स्पोर्ट्स डेस्क10 मिनट पहले
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क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया सिर्फ गेंद और बल्ले से नहीं जीतता, वो दिमाग से भी खेलता है। मैदान पर उनके शब्द तलवार की तरह चलते हैं, और यही है उनका सबसे पुराना हथियार… स्लेजिंग।
ये सिर्फ गाली-गलौज या बदजुबानी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है जिससे वे विरोधी को मानसिक रूप से तोड़ देते हैं।
स्टीव वॉ ने इसे नाम दिया ‘मेंटल डिसइंटिग्रेशन’, यानी प्रतिद्वंद्वी की हिम्मत तोड़कर जीतना।
ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट संस्कृति में ये हथियार स्कूल के मैदान से ही गढ़ा जाने लगता है, जहां बहस करना कमजोरी नहीं, खेल का हिस्सा माना जाता है।
तो आखिर कैसे बनी स्लेजिंग ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की पहचान? क्यों बाकी दुनिया इसे गलत कहती रही, पर ऑस्ट्रेलिया ने इसी को अपनी ताकत बना लिया?
क्रिकेट में क्या होती है स्लेजिंग?
क्रिकेट में स्लेजिंग का मतलब अपोजिशन टीम और उनके प्लेयर्स के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना, जिनसे उनका फोकस टूटे। वे मेंटली ब्रेक हों, खेल पर फोकस नहीं कर सके और मैदान पर अपना 100% नहीं दे पाए।
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी टीमें अक्सर इस स्ट्रैटजी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते आई हैं। टीम इंडिया जब विराट कोहली और सौरव गांगुली की कप्तानी में खेलती थी, तब भारत की ओर से भी बहुत ज्यादा स्लेजिंग देखने को मिलती थी। साउथ अफ्रीका और न्यूजीलैंड जैसी टीमें अक्सर स्लेजिंग करने से दूर ही रहती है।
1900 से पहले शुरू हो गई थी स्लेजिंग
इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरुआत 1844 में हुई। 1877 में टेस्ट फॉर्मेट शुरू हुआ। इसी दौरान स्लेजिंग भी शुरू हो गई। हालांकि, घरेलू क्रिकेट में स्लेजिंग के किस्से 1765 से ही सामने आ गए थे। 1900 से पहले तक ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के प्लेयर्स अक्सर मैदान पर बहस करते पाए जाते थे।
1900 के दौरान इंग्लैंड के विलियम गिलबर्ट ग्रैस स्लेजिंग के लिए मशहूर हुए। भारत के रणजीत सिंह तो इंग्लैंड में ही ग्रैस से बहस में भिड़ गए थे, जिसके बाद उनपर मैच फीस का 50% जुर्माना भी लगा था। 1960 के ऑस्ट्रेलिया के रिची बैनोड और ईयन चैपल जैसे कप्तान अपने खिलाड़ियों को मेंटल गेम्स खेलने के लिए उकसाते थे।

इंग्लैंड के WG ग्रैस ने इंटरनेशनल क्रिकेट में स्लेजिंग की शुरुआत की थी।
ऑस्ट्रेलिया के बच्चों में स्लेजिंग की आदत
1970 के बाद ऑस्ट्रेलिया के जूनियर क्रिकेट में स्लेजिंग का चलन बढ़ने लगा। स्कूल, कॉलेज और क्लब लेवल पर भी प्लेयर्स फील्ड पर विवाद करने से कतराते नहीं थे। यहां तक कि 1980 के बाद वहां की क्रिकेट एकेडमी में स्लेजिंग और मेंटल प्रेशर से निपटना कैसे हैं? इस पर कोचिंग तक दी जाने लगी। भारत जूनियर क्रिकेट में इस तरह की कोचिंग अब तक शुरू भी नहीं कर सका है।
वेस्टइंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को इंटरनेशनल स्लेजिंग सिखाई
1975 और 1979 का वर्ल्ड कप वेस्टइंडीज ने अपने एग्रेसिव अप्रोच और तेज गेंदबाजी के दम पर जीता। 1979 में ही टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में टेस्ट सीरीज हराई। फास्ट बॉलर्स और उनकी स्लेजिंग ही टीम का हथियार थी। कैरेबियन पेसर्स का डर कंगारू बैटर्स में इस कदर बैठा कि टीम ने 1992 तक अपने ही घर में वेस्टइंडीज के खिलाफ लगातार 3 और टेस्ट सीरीज गंवा दीं।
वेस्टइंडीज की इस स्ट्रैटजी को ऑस्ट्रेलिया ने भी इंटरनेशनल स्टेज पर अपनाना शुरू किया। 1987 में कंगारू कप्तान एलन बॉर्डर ने वर्ल्ड कप में इस प्लानिंग से टीम को पहली बार चैंपियन बनाया। अगले कप्तान स्टीव वॉ ने तो इसे स्ट्रैटजी का हिस्सा बना लिया, उन्होंने स्लेजिंग को मेंटल डिसइंटिग्रेशन नाम दिया। जिससे अपोजिशन प्लेयर्स का फोकस खेल से हटकर बातों पर आ जाता था। उनकी कप्तानी में टीम ने 1999 का वर्ल्ड कप जीता और वेस्टइंडीज के खिलाफ घर में टेस्ट सीरीज हारने का सिलसिला भी तोड़ा।

पोंटिंग ने स्लेजर्स की टीम ही तैयार कर दी
वॉ के बाद रिकी पोंटिंग ऑस्ट्रेलिया के कप्तान बने, जिन्होंने टीम को 2003 और 2007 का वनडे वर्ल्ड कप जिताया। टीम ने इस दौरान 2006 और 2009 की चैंपियंस ट्रॉफी भी जीती। पोंटिंग की टीम ने 2000 से 2010 तक क्रिकेट पर राज किया।
एंड्रूय सायमंड्स, शेन वॉर्न, ग्लेन मैक्ग्रा, ब्रेट ली और खुद पोंटिंग तक अपोजिशन प्लेयर्स को स्लेजिंग से तोड़ने की हरसंभव कोशिश करते थे। अपोजिशन टीमें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच शुरू होने से पहले ही घबरा जाती थी। 1999, 2003 और 2007 में कुछ ऐसा ही हुआ और पाकिस्तान, भारत और श्रीलंका को वर्ल्ड कप फाइनल में भारी दबाव के कारण बड़ी हार का सामना करना पड़ा।
भारत ने गांगुली की कप्तानी में दिया स्लेजिंग का जवाब
मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी तक टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया में खेलने और स्लेजिंग का सामना करने से घबराती थी। टीम जब ऑस्ट्रेलिया में हारती थी तो कप्तान अजहर प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया का सामना तक नहीं कर पाते थे। उनके बाद सौरव गांगुली ने कप्तानी संभाली, जिन्होंने टीम को एग्रेसिव अप्रोच और स्लेजिंग का जवाब देना सिखाया।
गांगुली की कप्तानी में हरभजन सिंह, श्रीसंथ, ईशांत शर्मा, युवराज सिंह और गौतम गंभीर जैसे प्लेयर्स सामने आए। जो स्लेजिंग का जवाब देने से पीछे नहीं हटते थे। 2008 में तो भज्जी का एंड्र्यू सायमंड्स के साथ स्लेजिंग का किस्सा कुछ ज्यादा ही मशहूर हुआ। जब भज्जी ने हिंदी में सायमंड्स को कुछ अपशब्द कहे थे, जिसे कंगारू प्लेयर ने मंकी समझ लिया था। जो आगे चलकर मंकीगेट कांड बना।
कोहली ने ऑस्ट्रेलियन स्लेजिंग को बिखेरा
गांगुली के रिटायरमेंट के बाद धोनी की कप्तानी में भी टीम ऑस्ट्रेलिया में दब-दब कर खेलने लगी। टीम वहां 8 में से एक भी टेस्ट नहीं जीत सकी। फिर विराट कोहली ने कप्तानी संभाली। जिन्होंने न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में टेस्ट सीरीज हराई, बल्कि कंगारू प्लेयर्स को उन्हीं की भाषा में जवाब भी दिया।

BGT 2024-25 में भी दिखी थी स्लेजिंग
पिछले साल बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी (BGT) में पहले टेस्ट के दौरान हर्षित राणा और मिचेल स्टार्क के बीच स्लेजिंग हुई थी। तब स्टार्क ने बैटिंग करते हुए कहा था कि मैं तुमसे तेज बॉलिंग करता हूं। इसके बाद दूसरी पारी में भारतीय ओपनर यशस्वी जायसवाल ने स्टार्क से कहा था, तुम बहुत धीरे बॉलिंग कर रहे हो। जायसवाल ने उस पारी में 161 रन बनाए थे।
स्टार्क ने दूसरे टेस्ट में हिसाब बराबर किया और डे-नाइट टेस्ट की पहली ही गेंद पर यशस्वी को LBW कर दिया। इसी मुकाबले में ट्रैविस हेड और मोहम्मद सिराज के बीच भी बहस हुई। हेड ने सिराज ने खिलाफ सिक्स लगाया, अगली गेंद पर सिराज ने उन्हें बोल्ड कर दिया। विकेट लेते ही सिराज ने एग्रेसिव सेलिब्रेशन किया, जिसके बाद हेड ने भी उनसे कुछ अपशब्द कहे। मैच के बाद दोनों ही खिलाड़ियों को ICC ने कोड ऑफ कंडक्ट का दोषी पाया और दोनों पर जुर्माना लगा दिया।
मेलबर्न टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के युवा ओपनर सैम कोंस्टास और विराट कोहली भी बहस करते नजर आए थे। ओवर खत्म होने के बाद बैटर कोंस्टास अपने साथी प्लेयर से बात करने जा रहे थे। तभी कोहली आए और कोंस्टास से कंधा टकरा दिया। दोनों में कहासुनी भी हुई। इसी मुकाबले में कोंस्टास और बुमराह की बहस भी हो गई। बुमराह ने कोंस्टास का गुस्सा बैटर उस्मान ख्वाजा पर निकाला और उन्हें पवेलियन भेज दिया। जिसके बाद पूरी टीम इंडिया कोंस्टास की ओर दौड़ते हुए सेलिब्रेट करने लगी।

IPL आने के बाद कम हुई स्लेजिंग
भारत में IPL शुरू होने के बाद ऑस्ट्रेलियन प्लेयर्स की स्लेजिंग भारतीय खिलाड़ियों के सामने कम हो गई। IPL 2008 में शुरू हुआ, उससे पहले तक कंगारू प्लेयर्स लगभग हर मैच और सीरीज में स्लेजिंग करते थे। IPL के बाद भाईचारे का व्यवहार बढ़ने लगा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि IPL में सभी प्लेयर्स एक साथ खेलते हैं, जिससे एक-दूसरे को अच्छे से समझने का बेहतर समय मिल पाता है। साथ ही कंगारू प्लेयर्स IPL जितना पैसा अपने देश की लीग से भी नहीं कमा पाते हैं।