
दिवाली की रात जब घर-आंगन दीपों से जगमगाते हैं, तो अगली सुबह एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है,सूप बजाने या पीटने की रस्म. विशेषकर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड के गांवों में यह लोक-परंपरा आज भी जीवित है.

भोर होते ही महिलाएं हाथ में बांस का सूप या झाड़ू लेकर घर के हर कोने में उसे हल्के से बजाती हैं. माना जाता है कि इस क्रिया से दरिद्रता और अलक्ष्मी घर से बाहर जाती हैं, और माता लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है.

इस समय पारंपरिक वाक्य कहा जाता है,’अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रता बाहर जाए.’ सूप या झाड़ू को बाद में गली या चौराहे पर छोड़ दिया जाता है, जो नकारात्मक ऊर्जा को त्यागने का प्रतीक है.

इस लोकाचार के पीछे गहरा प्रतीकवाद है,सूप, जो अनाज को भूसे से अलग करता है, उसे जीवन की शुद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना गया. जैसे सूप अन्न से अशुद्धि अलग करता है, वैसे ही यह क्रिया जीवन से दुर्भाग्य दूर करने का संकेत देती है.

भले ही शहरी जीवन में यह प्रथा अब विरल हो गई हो, लेकिन ग्रामीण संस्कृति में यह आज भी आस्था और परंपरा का हिस्सा है. यह याद दिलाती है कि दिवाली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं, बल्कि नकारात्मकता को बाहर निकालने और नए शुभारंभ का उत्सव है.
Published at : 21 Oct 2025 11:11 AM (IST)
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