Darshan Kumar Birthday Interesting Facts; Salman Khan | Priyanka Chopra Mary Kom | स्ट्रगल के दिनों में भूखे पेट सोए दर्शन कुमार: सालों तक रिजेक्शन झेला, एक्टिंग छोड़ने का फैसला किया: फिर कश्मीर फाइल्स ने कमाए 341 करोड़

Darshan Kumar Birthday Interesting Facts; Salman Khan | Priyanka Chopra Mary Kom | स्ट्रगल के दिनों में भूखे पेट सोए दर्शन कुमार: सालों तक रिजेक्शन झेला, एक्टिंग छोड़ने का फैसला किया: फिर कश्मीर फाइल्स ने कमाए 341 करोड़


7 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी/भारती द्विवेदी

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‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द बंगाल फाइल्स’ फिल्म के एक्टर दर्शन कुमार आज इंडस्ट्री का सफल नाम हैं। एक्टिंग इतनी दमदार कि दिग्गज डायरेक्टर सतीश कौशिक दर्शन को वन टेक आर्टिस्ट बुलाते थे। परदे पर पहली ही फिल्म में सलमान खान के दोस्त के रूप में दिखे। फिल्म हिट हुई तो लगा आगे की राह आसान होगी, लेकिन उसके बाद ऐसा दौर देखा कि ऑडिशन में जूता फटा तो नंगे पैर पैदल घर आना पड़ा।

ये ऐसे संघर्ष की शुरुआत जो एक दशक चला और इन्होंने एक्टिंग छोड़ने का मन बना लिया। पिता ने दाल-रोटी का खर्च देने का वादा किया तो फिर संघर्ष की दूसरी दास्तान शुरू हुई जिसके बाद इंडस्ट्री की दो टॉप एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा और अनुष्का शर्मा के साथ सफल फिल्में कीं।

आज की सक्सेस स्टोरी में दर्शन कुमार बता रहे हैं, महरौली से मुंबई तक वह कितने संघर्षों के पहाड़ पार करके पहुंचे हैं…

दर्शन ने फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' में 13 पेज का मोनोलॉग वन टेक में शूट किया था।

दर्शन ने फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में 13 पेज का मोनोलॉग वन टेक में शूट किया था।

बचपन से पढ़ाई-खेल सब में ऑलराउंडर

मैं दिल्ली के महरौली का रहने वाला हूं। हमारे इलाके की पहचान कुतुबमीनार से है। मेरा बचपन महरौली की गलियों में बीता है। मैंने पढ़ाई भी यहीं से की है। स्कूल में मैंने पीटी में एक दिन ड्रम प्ले किया और वो पता नहीं कैसे इतना अच्छा प्ले हुआ कि टीचर ने मुझसे कहा कि अब हर दिन तुम्हीं ये काम करोगे।

स्टेज पर रहने की आदत मुझे वहां से लगी। मैं शुरुआत से स्कॉलर रहा। बचपन से ही कॉम्पिटिशन में रहना मुझे पसंद था। मैं केवल क्लास में टॉप करने की कोशिश नहीं करता, बल्कि स्कूल में भी सबसे ज्यादा मार्क्स लाने की कोशिश करता था। कई बार मैंने ऐसा किया भी, जिसकी वजह से मुझे ट्रॉफी मिली।

इस दौरान पढ़ाई ही नहीं, जूडो, पहलवानी, बॉक्सिंग और बाकी खेलों में भी हाथ आजमाए और सब कुछ सीखा। इसका सारा श्रेय मेरी मां को जाता है। बॉक्सिंग में अपने स्कूल और कॉलेज के लिए नेशनल लेवल तक खेला और ट्रॉफी जीती।

स्कूल के समय में ही थिएटर ग्रुप से जुड़ गया

आमतौर पर लोग कविता पढ़ते हैं। मैं स्टेज पर कविताएं परफॉर्म करता था। इस वजह से मुझे कई लोगों ने कहा था कि तुम अच्छे एक्टर हो। तुम्हें एक्टिंग के लिए ट्राई करना चाहिए। मेरे अंदर एक्टिंग का कीड़ा तो था ही, ऐसे में मैंने एक्टिंग के लिए दिल्ली के मंडी हाउस में ही एक छोटा सा ग्रुप जॉइन कर लिया। वहां पर मैं पीयूष मिश्रा जी से मिला।

मैं भाग्यशाली रहा कि उनके साथ मुझे ‘गैलीलियो’ नाम के एक प्ले में काम करने का मौका मिला। उसके बाद एक-दो और प्ले में भी उनसे जुड़ा। ये कॉलेज से पहले की बात है। दो-तीन प्ले के बाद एक दिन पीयूष मिश्रा जी ने कहा कि वो अब मुंबई जा रहे हैं।

ऐसे में मैंने उनसे कहा कि प्लीज मुझे गाइड कीजिए। मुझे एक्टिंग करनी है। इसके आगे अब क्या करूं। उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ भी करके एनके शर्मा ग्रुप को जॉइन कर लो। मैंने वो ग्रुप जॉइन किया और एक महीने के अंदर मैं प्ले में लीड बन गया।

जब मैं एनके शर्मा ग्रुप से जुड़ा तो मुझे और बोलने में दिक्कत होती थी। हरियाणवी में औ की मात्रा नहीं होती है। इस वजह से मैं औ वाले सारे शब्द को गलत बोलता था। एनके शर्मा जी मुझे कहते पेट से बोलो। मैंने धीरे-धीरे अपनी भाषा पर काम किया और एक समय ऐसा आया कि मैं लोगों के लिए डबिंग कर रहा था।

दर्शन लंबे समय तक डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर भी काम कर चुके हैं।

दर्शन लंबे समय तक डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर भी काम कर चुके हैं।

पहली मीटिंग में सतीश कौशिक ने कहा- हीरो मटेरियल

मैं दिल्ली में एक्ट वन थिएटर का हिस्सा भी रहा हूं। मैंने उस थिएटर को जॉइन ही किया था, तभी मुझे पता चला कि फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ का ऑडिशन होने वाला है। मेरे दोस्त ने कहा कि ऑडिशन पर चलना है तो मैं थोड़ा डर गया। उस वक्त भी मैं स्कूल में था। ऑडिशन क्या होता है, मुझे पता तक नहीं था।

मेरा दोस्त मुझे खींचकर ले गया था। वहां पहुंचने पर हमें लाइन दी गई। जब मैं वो लाइन पढ़ रहा था, तब मेरे दिमाग में चल रहा था कि मैं इसमें इम्प्रोवाइज कर सकता हूं। ऑडिशन हुआ और मेरा कोई भी दोस्त सिलेक्ट नहीं हुआ। सिर्फ मेरा सिलेक्शन हुआ था। यहीं पर पहली बार मैं सतीश कौशिक जी से मिला था। उन्होंने मुझे पहली मीटिंग में ही कहा कि बहुत दूर तक जाओगे।

मैं उन्हें लेकर बहुत इमोशनल हो जाता हूं क्योंकि उनका प्यार मेरे लिए अलग था। मुझे याद है, शूटिंग के दौरान जब मेरी परफॉर्मेंस होती थी, तब वो बहुत खुश होते थे। कहते थे कि तुम वन टेक आर्टिस्ट हो। एक टेक में सीन कर लेते हो। कितनी बार तो ऐसा हुआ कि मैं किसी इवेंट या शो में गया हूं। उन्होंने स्क्रीन पर देख मुझे फोन किया और कहा कि तू हीरो है।

दर्शन कुमार को फिल्मों में पहला ब्रेक सतीश कौशिक ने ही दिया था।

दर्शन कुमार को फिल्मों में पहला ब्रेक सतीश कौशिक ने ही दिया था।

वो मेरी एक-एक परफॉर्मेंस देखते थे। ‘मुझे कुछ कहना है’ के बाद उन्होंने मुझे ‘तेरे नाम’ में काम करने का मौका दिया। वो मुझे लीड में लेकर दो-तीन प्रोजेक्ट करना चाहते थे, लेकिन प्रोड्यूसर के साथ बात नहीं बन पा रही थी। आखिरी समय में जब वो दिल्ली में थे, तब उनका कॉल भी आया था कि मैं तुम्हें लीड लेकर फिल्म बनाने वाला हूं। दिल्ली से वापस आकर वो कॉल करूंगा, नैरेशन सुन लेना, लेकिन चीजें हो नहीं पाईं।

‘तेरे नाम’ में सलमान खान का दोस्त बना

स्पोर्ट्स से जुड़ने की वजह से फिटनेस में दिलचस्पी हमेशा से रही। सलमान भाई और संजय दत्त इंडस्ट्री में बॉडी बनाने का चलन लेकर आए। सलमान भाई ने हमेशा मुझे किसी न किसी तरह से इंस्पायर किया है। जब मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला तो मैं पहले यकीन नहीं कर पा रहा था।

जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो मुझे यकीन नहीं हुआ कि कोई इतना हैंडसम भी हो सकता है। उनका अपना एक औरा है। सेट पर कितनी बार हुआ कि जब कोई इमोशनल सीन करना पड़ा तो वो मेरी खिंचाई करते थे। कहते थे कि तुम अपनी गर्लफ्रेंड को इमोशनल करके खूब बेवकूफ बनाते होगे।

मुझे सलमान भाई से बहुत प्यार मिला। कभी नहीं लगा कि मैं सलमान खान के साथ काम कर रहा हूं। कई बार तो एक ही जिम में साथ में वर्कआउट करते थे। उनसे सेट पर काफी बातें भी होती थीं। वो पर्सनैलिटी और बिहेवियर दोनों में बहुत अच्छे हैं।

जब आप इतने बड़े स्टार के साथ काम करते हैं फिर उनकी अच्छाई आपके साथ जिंदगी भर रह जाती है। आप इंस्पायर होते हैं। ‘तेरे नाम’ में काम करना मेरे लिए फैनबॉय मोमेंट था।

मेन लीड बनने में 11 साल का लंबा समय लगा

साल 2001 में ‘मुझे कुछ कहना है’ और 2003 में ‘तेरे नाम’ फिल्म आई थी। ये दोनों ही सुपरहिट फिल्में थीं और मैं दोनों ही फिल्मों का हिस्सा था, लेकिन मेन लीड तक पहुंचने में बहुत लंबा समय लगा। मेरा संघर्ष 11 सालों का था। उस वक्त इतने कास्टिंग डायरेक्टर नहीं होते थे। डिजिटल का दौर भी नहीं आया था।

उस वक्त फोटो की फिजिकल कॉपी ऑफिस जाकर देनी होती थी। एक फोटो की कीमत 7-8 रुपए होती थी। मुझे याद है कि मैंने एक कास्टिंग डायरेक्टर को फोटो दी और कहा कि मैं थिएटर से हूं। मैंने ‘तेरे नाम’ और ‘मुझे कुछ कहना है’ फिल्में की हैं। उसने मुझे पलटकर कहा कि ऐसा काम करो कि एक फिल्म से नाम बन जाए।

मैं मुंबई में किसी को जानता नहीं था। मेरी हालत हर रोज खुद कुआं खोदो और रोज पानी निकालने वाली थी। मैं पृथ्वी थिएटर जाता था ताकि लोगों के बारे में पता चल सके। वहां, मुझे एक शख्स मिले, जिन्होंने मुझसे कहा कि चाय पिलाओ और कुछ खिलाओ। मैंने उन्हें खिलाया-पिलाया।

हमारे बीच फिल्म और थिएटर को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बातें हुईं। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या आप बता सकते हैं कि ऑडिशन कहां होते हैं? उन्होंने मुझे तल्खी के साथ कहा कि खुद से मेहनत करो। ये चाय पिलाकर तुम सोच रहे हो कि मैं सब बता दूंगा? मैं तो बस जान-पहचान और दोस्त बनाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सामने वाले ने गलत तरीके से लिया।

संघर्ष के दिनों में बिस्किट खाकर समय निकाला

जब कोई लिंक नहीं मिला, तब मैंने थिएटर जॉइन करने का सोचा। मैं अपना समय खराब नहीं करना चाहता था। मैंने कैसे भी करके नीना जी और राजेंद्र गुप्ता जी का ग्रुप जॉइन किया। फिर वहां से नसीरुद्दीन शाह के ग्रुप का हिस्सा बना। मैं बता नहीं सकता कि मेरे जीवन में उस वक्त कितनी तकलीफ थी।

मैं डबिंग और छोटा-मोटा काम करके अपना गुजारा कर रहा था। मैं 6-7 लड़कों के साथ एक कमरे में रहता था। वो सारे लड़के मस्तीखोर थे। रातभर उनकी मस्ती चलती थी। कमरे में जगह नहीं होती और मुझे समय से सोना होता था। मुझे सुबह उठकर खुद पर काम करना होता था।

मैं सुबह उठकर पार्क में जाकर अपनी आवाज पर काम करता था। ऐसे में मैं कान में रूई डालकर सोता था, लेकिन शेयरिंग ने मुझे बहुत कुछ सिखाया भी। जब हममें से किसी को भी छोटा सा भी काम मिलता तो सब मिलकर सेलिब्रेट करते थे। उस वक्त दूध खरीदना भी हमारे लिए रईसी थी।

हमारी हालत इतनी खराब थी कि ऑटो में बैठना, दूध खरीदना, कॉफी पीने जैसी चीज रईसी थी। संघर्ष के दिनों में मैंने बिस्किट खाकर भी समय निकाला।

दर्शन मुंबई में पांच साल तक साहेज थिएटर ग्रुप से जुड़े रहे। उसके बाद दस साल तक वो नसीरुद्दीन शाह के मोटली थिएटर ग्रुप का हिस्सा रहे।

दर्शन मुंबई में पांच साल तक साहेज थिएटर ग्रुप से जुड़े रहे। उसके बाद दस साल तक वो नसीरुद्दीन शाह के मोटली थिएटर ग्रुप का हिस्सा रहे।

पैसे बचाने के लिए कई-कई किलोमीटर पैदल चला

ऑटो के बारे में सोचना उस वक्त ऐसा लगता था कि मैं लैम्बोर्गिनी में बैठने की बात कर रहा हूं। ऑडिशन के लिए हर दिन बस में जाना भी मैं अफोर्ड नहीं कर सकता था। हर दिन बैग में अपनी फोटो डालकर ऑडिशन के लिए दरवाजे-दरवाजे जाता था। लोगों से पूछता था कि क्या मेरे लिए कोई रोल है और मेरे मुंह पर ना बोलकर दरवाजा बंद कर दिया जाता।

पूरा दिन इस तरह काम मांगने में निकल जाता था। पैसे बहुत सीमित होते थे। ऐसे में पैसे फोटो पर खर्च कर सकते थे या हर दिन के ट्रैवल में। या फिर कुछ दिनों में टीशर्ट खरीदनी पड़ती थी क्योंकि अच्छा भी दिखना होता था।

मुझे याद है कि मैं अंधेरी स्टेशन से सबसे सस्ती और अच्छी दिखने वाली टी शर्ट और जूते लेता था। ऑडिशन के लिए हर दिन जाना होता था। अब ऐसे में हर रोज बस भी अफोर्ड नहीं कर सकता था। मैं वर्सोवा गांव में रहता था। वहां से हर रोज लोखंडवाला, जुहू और बांद्रा तक मैं पैदल चलता था। लिफ्ट मांगता था तो लिफ्ट मिलती नहीं थी।

चप्पल खरीदने के पैसे नहीं थे तो नंगे पैर चला

एक बार की बात है कि मैं ऑडिशन देने गया था। मैं फॉर्मल कपड़ों में था। पैदल चलकर जब मैं ऑडिशन के लिए पहुंचा, तो मेरे जूते का सोल निकल गया। जैसे-तैसे करके मैंने ऑडिशन दिया। जब ऑडिशन खत्म हुआ रात के 9 बज चुके थे।

मेरे पास पैसे भी नहीं थे कि मैं जूते या चप्पल खरीद सकूं। रात होने की वजह से कहीं मोची भी नहीं मिला। जूते को हाथ में टांगे मैं नंगे पैर रूम वापस लौटा था, लेकिन भगवान ने भी मेरी मेहनत को देखा। जिस ऑडिशन से मैं नंगे पैर लौटा था, उसी ऑडिशन से मुझे मेरा पहला टेलीविजन शो ’बाबा ऐसो वर ढूंढो’ में काम मिला।

इस शो में मैं और विक्रांत मैसी साथ में थे। हमारा ये शो एक छोटे से प्लेटफॉर्म पर था, लेकिन पॉपुलैरिटी के मामले में कलर्स जैसे बड़े चैनल के शो को टक्कर दे रहा था। फिर मैंने ’छोटी बहू’ में काम किया और इसमें मेरा निभाया गया रोल खूब फेमस हुआ था।

एक एक्टर ने मेरे कमरे की तुलना नरक से की

मैं नाम नहीं बोलना चाहूंगा, लेकिन वो कमाल के एक्टर हैं। हमने साथ में काम किया है। वो मुझे लंबे समय से कह रहे थे कि तुम मुझे कुछ बनाकर खिलाओ या चाय पिलाओ। एक दिन मैंने उन्हें वर्सोवा गांव के अपने कमरे पर डिनर के लिए इनवाइट किया। उस एरिया में मछली बहुत सुखाई जाती है।

बहुत गलियां और पतले रास्ते थे। जब वो आए, तब मैं उन्हें लेने बाहर तक गया। मुझे देखते ही उन्होंने कहा कि तू जब मरेगा तो स्वर्ग में जाएगा। मुझे लगा कि मैं इन्हें खाना खिला रहा हूं, इस वजह से ये ऐसा बोल रहे हैं।

मैंने उनसे कहा पहले मेरे हाथ का खाना खा तो लीजिए। फिर ये कहिएगा। उन्होंने मुझे पलटकर कहा- पूछ तो सही मैंने ये क्यों बोला? मैंने पूछा तो उन्होंने कहा नरक में तो तू अभी रह रहा है। मैंने उनकी बातों को दिल से नहीं लिया क्योंकि वो जगह मेरे लिए बहुत जरूरी थी। मुझे वो जगह पसंद थी। आज मैं जो भी हूं, उसी जगह की वजह से हूं।

फिल्म बंद हुई तो एक्टिंग छोड़ने का सोचा

काफी मेहनत के बाद भी मुझे कोई काम नहीं मिल रहा था। लगातार रिजेक्शन झेल रहा था। फिर मुझे एक फिल्म में काम मिला, जिसके लिए मैंने एक साल तक बहुत तैयारी की थी। उस फिल्म के लिए मैंने वजन, बाल सब बढ़ाया था। उस फिल्म में मुझे एक साथ तीन-चार रोल निभाने थे। सारी तैयारियों के बाद भी वो फिल्म नहीं बनीं। इस बात से मैं हताश हो गया था। मुझे लगा कि शायद एक्टिंग में किस्मत मेरा साथ नहीं दे रही है।

मैंने अपने पापा को कॉल किया और कहा कि मैं सोच रहा हूं कि दीदी के पास ऑस्ट्रेलिया चला जाता हूं। वहीं, मेहनत करूंगा। पापा ने कहा- क्या प्रॉब्लम है? मैंने कहा कि पापा इतने सालों से मेहनत कर रहा हूं, मुझे काम नहीं मिल रहा है। पैसों की सख्त जरूरत होती है। पापा ने कहा कि तुम्हें दाल-रोटी की टेंशन है, तो वो मैं तुम्हें दूंगा। एक वो दिन था और आज का दिन है। पापा के साहस की वजह से आज मैं सफल हूं।

प्रियंका चोपड़ा के अपोजिट मैरी कॉम से किस्मत बदली

‘मैरी कॉम’ में मेरी कास्टिंग की स्टोरी बहुत कमाल है। मुझे याद है कि मैं दिल्ली में था और मुझे फेमस कास्टिंग डायरेक्टर श्रुति महाजन का ऑडिशन के लिए कॉल आया। मैं दिल्ली से अपनी पूरी तैयारी करके आया था। मेरा ऑडिशन फिल्म के डायरेक्टर उमंग कुमार सर को बहुत पसंद आया।

उन्होंने दो मिनट के अंदर बोल दिया था कि तुम मेरे ओनलर (किरदार का नाम) हो। मैं बहुत खुश था कि चलो मेरा सिलेक्शन हो गया। अब मैं प्रियंका चोपड़ा का हीरो बनूंगा। फिर मुझे कहा गया कि तुम्हें संजय लीला भंसाली सर से मिलना है, उसके बाद तुम्हारी कास्टिंग का फाइनल होगा।

मैं संजय सर से यशराज के ऑफिस में मिलने गया। उन्होंने मुझसे 10 मिनट बात की और बस ठीक है कहा। बाद में मुझे बताया गया कि मैं संजय सर को भी बहुत पसंद आया। मुझे लगा, चलो अब मेरा नाम फाइनल हो गया। मुझे फिर से कहा गया कि अभी फाइनल नहीं हुआ है। अभी प्रियंका चोपड़ा के साथ तुम्हारा फोटोशूट होगा। उसमें देखा जाएगा कि तुम दोनों पति-पत्नी लगते हो या नहीं।

एक हफ्ते बाद मैं प्रियंका चोपड़ा से मिला। मैं उनसे पहली बार जिम में मिलने गया था। हमारे बीच हाय-हैलो हुई। मैं प्रियंका चोपड़ा से पहली बार मिल रहा था। वो इतनी बड़ी सुपरस्टार हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे बिहेव करूं कि उनका हसबैंड लगूं।

वो जिम से बाहर आईं और कहा कि चलो फोटो क्लिक करवाते हैं। मैंने खुद को नॉर्मल करने की कोशिश की। मैं बहुत शर्मीला टाइप का इंसान हूं। लोगों से जल्दी खुलता नहीं हूं, लेकिन उस वक्त मेरी लाइफ का सवाल था।

मैंने प्रियंका से झिझकते हुए पूछा कि हमें पति-पत्नी दिखना है। क्या मैं तुम्हें पकड़ सकता हूं? प्रियंका ने कहा हां बिल्कुल…और क्या। नहीं तो हम पति-पत्नी दिखेंगे कैसे। उनकी बातों से मेरे अंदर आत्मविश्वास आया। मैंने जो भी तैयारी की थी, प्रियंका को दिमाग में रखकर ही की थी। फिर मैंने उन्हें होल्ड किया, साथ में फोटो खिंचवाई और मैं फिल्म के लिए फाइनल हो गया।

आज विदेशों तक लोग मेरे किरदार के नाम से बुलाते हैं

‘मैरी कॉम’ के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेरे लंबे संघर्ष का फल मुझे दिखने लगा था। वैसे तो मैंने पहली फिल्म ‘NH10’ साइन की थी, लेकिन ‘मैरी कॉम’ पहले रिलीज हो गई। अनुष्का शर्मा स्टारर फिल्म ‘NH10’ में विलेन के तौर पर दिखा। इस रोल की न सिर्फ हर जगह तारीफ हुई बल्कि विलेन के रोल के लिए मुझे आईफा में बेस्ट निगेटिव रोल का अवॉर्ड भी मिला।

इसके बाद मैंने करियर में सरबजीत, मिर्जा-जूलियट, ए जेंटलमैन, बागी-2, पीएम नरेंद्र मोदी, तूफान, द कश्मीर फाइल्स और द बंगाल फाइल्स जैसी फिल्में कीं। द कश्मीर फाइल्स के लिए भी मुझे फिल्मफेयर में बेस्ट सपोर्टिंग का नॉमिनेशन मिला।

मैंने ओटीटी पर भी काम किया। ओटीटी की हिट सीरीज ‘फैमिली मैन’ और ‘आश्रम’ का हिस्सा भी रहा हूं। मेरे काम को लोगों ने इतना पसंद किया है, इस बात का अंदाज मुझे विदेशों में जाकर पता चला।

मैं लंदन में ‘फैमिली मैन’ सीरीज की शूटिंग कर रहा था। ब्रेक हुआ तो मैं एक कॉफी शॉप में चला गया। मैं अपनी यूनिट के साथ गया था। बिल देने के लिए जब मैंने अपना कार्ड बढ़ाया तो मुझे कहा गया कि मेजर समीर हम उजागर सिंह से पैसे कैसे ले सकते हैं। ये दोनों ही नाम मेरे सीरीज के किरदारों के हैं। मैं हैरान रह गया। जब इस तरह का प्यार मिलता है, शब्द खत्म हो जाते हैं। ये किसी भी अवॉर्ड से बढ़कर हैं।

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