ABVP को एक के बाद एक मिलती प्रचंड जीत, कॉलेज जाने वाले gen-z का मूड क्‍या है? – ABVP historic win in DU HCU Gen Z mood Modi government opns2

ABVP को एक के बाद एक मिलती प्रचंड जीत, कॉलेज जाने वाले gen-z का मूड क्‍या है? – ABVP historic win in DU HCU Gen Z mood Modi government opns2


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने सात साल बाद हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों में बाजी मार ली है. यह लगातार दूसरी बड़ी जीत है जहां ABVP ने जीत हासिल की है. इसके ठीक एक दिन पहले ही 19 सितंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) पर भी एबीवीपी ने कब्ज़ा किया था. हालांकि इस साल पंजाब और पटना यूनिवर्सिटी में भी एबीवीपी ने परचम लहराया है. दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी की जीत कोई सामान्य जीत नहीं है बल्कि यहां इस छात्र संगठन ने अपने प्रतिद्वंद्वी संगठन एनएसयूआई पर लैंडस्लाइड विक्ट्री हासिल की है.

जिन्हें एबीवीपी के बारे में नहीं पता है, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि यह छात्र संगठन आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़ी छात्र इकाई है. मतलब कि केंद्र में 11 साल से चल रही नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों में इस छात्र संगठन का भरोसा है. जाहिर है कि इस संगठन के जीतने का मतलब है कि देश का युवा विशेषकर जेन-Z को अपने देश और देश के नेताओं पर न केवल भरोसा बरकरार है बल्कि वे बहुत मजबूती से उनके साथ जुड़े हुए हैं.

1-DUSU और हैदराबाद विश्‍वविद्यालय में ABVP की जीत कितनी बड़ी?

डूसू चुनाव में 18 सितंबर को 52 कॉलेजों में हुए मतदान में 2.75 लाख पात्र वोटरों में से 1.08 लाख (39.45% टर्नआउट) ने हिस्सा लिया. 19 सितंबर की मतगणना में एबीवीपी को तीन प्रमुख पद अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव हासिल हुए. अध्यक्ष पद पर आर्यन मान ने 28,841 वोट हासिल कर एनएसयूआई की जोस्लिन नंदिता चौधरी (12,645 वोट) को 16,196 वोटों (लगभग 56% मार्जिन) से हराया. सचिव पद पर कुणाल चौधरी ने 23,779 वोटों से जीत दर्ज की, जबकि संयुक्त सचिव दीपिका झा ने 21,825 वोटों से 4,445 वोटों (लगभग 20% मार्जिन) की बढ़त ली. उपाध्यक्ष पद एनएसयूआई के राहुल झांसला (29,339 वोट) के पास गया. यह जीत एबीवीपी के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि 2024 में एनएसयूआई ने सात साल बाद अध्यक्ष पद जीता था. प्रमुख पदों पर 70% से अधिक वोट शेयर ने एबीवीपी की राष्ट्रवादी अपील को मजबूत किया. महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे मेट्रो पास छूट, फीस वृद्धि विरोध और कैंपस सुरक्षा पर फोकस ने छात्रों को आकर्षित किया. 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे राष्ट्र प्रथम की जीत बताया, जबकि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने युवाओं के राष्ट्रवाद को सराहा. एनएसयूआई ने संस्थागत हस्तक्षेप का आरोप लगाया. कुल मिलाकर, डूसू में एबीवीपी की जीत एक क्लीन स्वीप के करीब है, जो विपक्ष को झकझोर गई. 

दूसरी तरफ हैदराबाद विश्‍वविद्यालय में भी सभी छह पदों पर पूर्ण कंट्रोल करके एबीवीपी ने यह साबित कर दिया कि देश के युवा भारत सरकार को पूरी तरह सपोर्ट कर रहे हैं. 19 सितंबर को 29 पोलिंग स्टेशनों पर 81% टर्नआउट (कुल वोटरों का 80% से अधिक) के साथ चुनाव हुए. 169 उम्मीदवारों में एबीवीपी-एसएलवीडी गठबंधन ने सभी छह पद जीते.यह सात साल बाद एबीवीपी की पूर्ण जीत है (पिछली 2018 में), जो लेफ्ट (एसएफआई, एआईएसए), दलित संगठनों (बीएसएफ) और एनएसयूआई के दबदबे को तोड़ती है. 
 

2- डूसू में एबीवीपी के जीत के कारण

डूसू में एबीवीपी की जीत के कारणदिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव 2025 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की तीन प्रमुख पदों अध्यक्ष, सचिव, और संयुक्त सचिव पर जीत इस संगठन की छात्रों के बीच लोकप्रियता का सबूत देती है. इस जीत के पीछे कई कारण हैं: एबीवीपी ने राष्ट्र प्रथम के नारे को कैंपेन का केंद्र बनाया, जो जेन- Z के बीच लोकप्रिय है. मोदी सरकार की नीतियां, जैसे राम मंदिर और आर्टिकल 370, युवाओं को राष्ट्रवाद से जोड़ती हैं. अमित मालवीय ने कहा, यह राहुल गांधी की विचारधारा का खारिज होना है. 70% वोट शेयर इसकी पुष्टि करता है.

एबीवीपी ने मेट्रो पास छूट, फीस वृद्धि विरोध, और कैंपस सुरक्षा जैसे मुद्दों को उठाया. नवनिर्वाचित अध्यक्ष आर्यन मान का मेट्रो पास वादा छात्रों को आकर्षित किया. इसके साथ ही एनएसयूआई का कैंपेन कमजोर रहा. उनके संस्थागत हस्तक्षेप के आरोप को कोर्ट ने खारिज किया. राहुल गांधी का जेन-Z क्रांति नैरेटिव असफल रहा.

एबीवीपी ने इंस्टाग्राम रील्स और एक्स के जरिए विश्‍वविद्यालय जाने वाले छात्रों को प्रभावित किया. जेन -Z मोदी के साथ जैसे ट्रेंड ने माहौल बनाया. एबीवीपी की जमीनी उपस्थिति और कॉलेज-स्तरीय नेटवर्क ने मतदाताओं को जुटाया. 39.45% टर्नआउट में 16,196 वोटों का मार्जिन उनकी रणनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है.

3-हैदराबाद में जीत के कारण

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव 2025 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी)-एसएलवीडी गठबंधन ने सभी छह प्रमुख पदों अध्यक्ष शिवा पलेपु, उपाध्यक्ष देवेंद्र, महासचिव श्रुति प्रिया, संयुक्त सचिव सौरभ शुक्ला, सांस्कृतिक सचिव वीनस, और खेल सचिव ज्वाला ने मिलकर पूर्ण कब्जा कर लिया. इस जीत के पीछे प्रमुख कारण एबीवीपी ने कैंपस में हिंसा रोकने, भूमि संरक्षण (एचसीयू की 2,300 एकड़ जमीन के विवाद) और छात्र चिंताओं (हॉस्टल, फीस, सुविधाएं) पर निरंतर आंदोलन चलाना रहा.

रोहित वेमुला मामले के बाद के राजनीतिक तनावों के बीच एबीवीपी ने शांति और एकता का नैरेटिव गढ़ा, जो छात्रों को आकर्षित किया. एबीवीपी ने विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ एकजुटता पर जोर दिया, जो लेफ्ट (एसएफआई, एआईएसए), दलित संगठनों (बीएसएफ) और एनएसयूआई के दबदबे को तोड़ने में सफल रहा.

4-यह जीत भारत में अशांति चाहने वालों के मुंह पर तमाचा है

नेपाल में अशांति के बाद लगातार भारत में विपक्ष इस तरह का ट्वीट और बयान दे रहा था जिससे ऐसा लगा कि देश में ये लोग अशांति चाहते हैं. विशेषकर राहुल गांधी का जेन-Z को संबोधित करते हुए ट्वीट, शिवसेना नेता संजय राउत की बातें हों या तेजस्वी आदि की बातों ने ऐसा माहौल बना दिया जिससे लोगों को लगा कि विपक्ष की इ्च्छा है कि भारत में भी नेपाल , श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह अशांति फैल जाए. 

पर जिस तरह डूसू, पंजाब और हैदराबाद में एबीवीपी को वोट मिले हैं उससे विपक्ष खुद हतप्रभ नजर आ रहा है. सामान्य तौर पर विपक्ष को उम्मीद थी कि विश्वविद्यालयों का वोट बढती बेरोजगारी और महंगाई आदि के लिए जाएगा. पर ऐसा नहीं हुआ . शायद विपक्ष के दुष्प्रचार को जेन-Z भली भांति समझ रहा है. 

एबीवीपी ने राष्ट्र प्रथम के नारे को केंद्र में रखा, जो जेन-Z की आकांक्षाओं से मेल खाता है. डूसू में 70% वोट शेयर और एचसीयू में 81% टर्नआउट दर्शाता है कि छात्र विभाजनकारी ताकतों को खारिज कर रहे हैं. एचसीयू में रोहित वेमुला मामले और भूमि विवाद जैसे मुद्दों पर एबीवीपी की शांति और एकता की अपील ने लेफ्ट और अन्य संगठनों के विघटनकारी नैरेटिव को ध्वस्त किया. 

एनएसयूआई और लेफ्ट (एसएफआई, एआईएसए) का संस्थागत हस्तक्षेप और वोट चोरी का नैरेटिव जेन-Z को प्रभावित नहीं कर सका. अमित मालवीय ने कहा, यह राहुल गांधी की विचारधारा का खारिज होना है. एबीवीपी ने सोशल मीडिया (इंस्टाग्राम, एक्स) के जरिए राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया, जिसने अशांति के नैरेटिव को कमजोर किया.

5-क्या मोदी सरकार पर जेन-Z का भरोसा बरकरार है?

जेन-Z (1997-2012 के बीच जन्मे युवा) भारत की आबादी का लगभग 20% हिस्सा (27 करोड़) है और एक महत्वपूर्ण मतदाता समूह हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय (डूसू) और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (एचसीयू) जैसे कैंपसों में 2025 के छात्र संघ चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की जीत से संकेत मिलता है कि जेन-Z का मोदी सरकार पर भरोसा काफी हद तक बरकरार है. 

जेन-Z अयोध्या राम मंदिर, आर्टिकल 370 हटाने और आत्मनिर्भर भारत जैसे कदमों से प्रभावित हैं. प्यू रिसर्च के अनुसार, 53% जेन-Z भाजपा का समर्थन करता है, जो राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान को महत्व देता है. डूसू और एचसीयू में एबीवीपी की जीत, जो राष्ट्र प्रथम पर जोर देती है, इस रुझान को दर्शाती है.

स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाएं जेन-Z को रोजगार और तकनीकी अवसर प्रदान कर रही हैं. एक मीडिया हाउस की रिपोर्ट द 2 ट्रिलियन ऑपर्च्यूनिटी के मुताबिक, जेन-Z आर्थिक स्थिरता और डिजिटल प्रगति को प्राथमिकता देता है, जो मोदी सरकार के विकसित भारत 2047 विजन से मेल खाता है.

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