
प्रत्येक धर्म में अंतिम संस्कार करने का तरीका काफी अलग होता है. हिंदू धर्म में जहां शव को जलाया जाता है, तो वही अन्य धर्मों में दफनाया जाता है. लेकिन कुछ धर्मों या जनजाति समूह में अंतिम क्रिया करने का तरीका काफी अलग है, जो आपको हैरात में डाल सकता है.

भारत के अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति में जब किसी की मौत हो जाती है, तो उसके शव को 108 टुकड़ों में काटकर मछलियों को दे दिया जाता है. ऐसा करने के पीछे जनजातियों की मान्यता है कि मरने के बाद भी शव उपयोगी रहे.

दक्षिण भारत स्थित तमिलनाडु में कुछ दलित समुदाय में जब किसी की मौत हो जाती है, तो उसकी शव यात्रा संगीत, नृत्य और आतिशबाजी के साथ निकाली जाती है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मृत व्यक्ति के सुखद जीवन का जश्न मनाने के साथ उसे सम्मानपूर्वक विदा किया जा सके.

पारसी धर्म एकेश्वरवादी धर्म है. इस धर्म में मरने वाले लोगों के शवों को जलाने या दफनाने की जगह उसे टावर ऑफ साइलेंस (दखमा) पर गिद्धों के खाने के लिए छोड़ देते हैं. अंतिम संस्कार की इस विधि को दोखमेनाशिनी कहा जाता है.

कुछ समय पहले तक राजस्थान की ऊंची जाति की महिलाओं को सार्वजनिक रूप से शोक मनाने और अपना चेहरा दिखाने की अनुमति नहीं होती थी. इसलिए उनकी जगह शोक व्यक्त करने के लिए रुदाली नामक पेशेवर महिलाओं को बुलाया जाता था. यह महिलाएं उनकी जगह रोती और दुख व्यक्त करती थी.

ईस्ट अफ्रीका का देश मेडागास्कर के मलागासी में लोग अपने पूर्वजों के मृत शरीर को कब्र से बाहर निकालकर उसे साफ कपड़े पहनाकर डांस करते हैं. यह प्रथा पूर्वजों की याद में की जाती है. शव को गांव का चक्कर लगवाकर उसे फिर से दफना दिया जाता है.

तिब्बती बौद्ध परंपरा के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके शव के छोटे-छोटे टुकड़े करके उसे पहाड़ों पर रख दिया जाता है. जिसके बाद जंगली जानवर और गिद्ध मृत व्यक्ति के शव को खा जाते हैं. इस प्रथा का पालन तिब्बत, किंघई और मंगोलिया के कुछ हिस्सों में देखने को मिलता है.
Published at : 27 Sep 2025 02:08 PM (IST)