Jhajjar Bahadurgarh Yogesh Kathuniya para athlete missing gold several consecutive bouts aims gold Medal Asian Games October 2026| Haryana news | बहादुरगढ़ के योगेश कथुनिया कई मुकाबलों में गोल्ड से चूके: बड़े इवेंट का प्रेशर, अब अक्टूबर 2026 के एशियाई खेलों में स्वर्ण का लक्ष्य – bahadurgarh (jhajjar) News

Jhajjar Bahadurgarh Yogesh Kathuniya para athlete missing gold several consecutive bouts aims gold Medal Asian Games October 2026| Haryana news | बहादुरगढ़ के योगेश कथुनिया कई मुकाबलों में गोल्ड से चूके: बड़े इवेंट का प्रेशर, अब अक्टूबर 2026 के एशियाई खेलों में स्वर्ण का लक्ष्य – bahadurgarh (jhajjar) News


दिल्ली में रजत पदक जीतने के बाद अपने माता-पिता के साथ योगेश कथुनिया।

झज्जर जिले के बहादुरगढ़ के गांव मांडौठी से देश के जाने-माने पैरा एथलीट योगेश कथुनिया ने दिल्ली में चल रही विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया। लगातार अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में पदक जीतने वाले योगेश का लक्ष्य हमेशा स्वर्ण पदक रहा है,

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योगेश ने कहा कि पिछले मुकाबलों में अक्सर स्वर्ण से चूकने के पीछे तकनीकी और मानसिक कारण रहे। उन्होंने बताया कि इस बार थ्रो पूरी तरह से सही नहीं गया। बेल्ट टाइट नहीं थी, अंगुलियों से डिस्कस पकड़ पूरी तरह मजबूत नहीं बनी और बड़े इवेंट का प्रेशर उन्हें थोड़ी नर्वस नेस दे गया।

दिल्ली में रजत पदक जीतने के बाद परिवार के साथ योगेश कथुनिया।

दिल्ली में रजत पदक जीतने के बाद परिवार के साथ योगेश कथुनिया।

गोल्ड जीतने के लिए थ्रो पर होगा पूरा फोकस

उन्होंने अपनी रणनीति साझा करते हुए कहा कि, अब ट्रेनिंग में सुधार और अभ्यास की मात्रा बढ़ाना उनकी प्राथमिकता है। पहले वे रोजाना 6-7 घंटे अभ्यास करते थे, अब उन्हें थ्रो की संख्या 30-40 से बढ़ाकर 60-70 करना होगा। साथ ही बड़े मुकाबलों में नियमित भागीदारी से उन्हें प्रेशर का अनुभव मिलेगा और आत्मविश्वास बढ़ेगा।

बड़े इवेंट में प्रेशर से दूर रहने की कोशिश करूंगा

योगेश ने कहा, “पिछले मुकाबलों से सीख लेकर मैं अपनी तकनीक और मानसिक तैयारी पर फोकस कर रहा हूं। अब हर थ्रो को सही ढंग से करना, बड़े इवेंट का अनुभव लेना और प्रेशर से न डरना मेरी रणनीति है। यही मुझे अक्टूबर 2026 में एशियन गेम्स में स्वर्ण दिलाएगा।”उन्होंने यह भी बताया कि इस सीजन की शुरुआत में उन्होंने यूएसए में हुई प्रतियोगिता में 44 मीटर तक चक्का फेंका था, जो उनके प्रदर्शन की क्षमता को दर्शाता है।

दिल्ली में रजत पदक जीतने के बाद योगेश कथुनिया।

दिल्ली में रजत पदक जीतने के बाद योगेश कथुनिया।

9 साल की उम्र में गिलियन-बैरे सिंड्रोम की वजह से पैरालाइज हुए

कथुनिया का जन्म एक गृहिणी मीना देवी और उनके पति ज्ञानचंद कथुनिया ( भारतीय सेना में एक सैनिक) के घर हुआ था । 2006 में जब योगेश पार्क में खेलने गया था, जहां अचानक गिर गया। बाद में पता चला वह पैरालाइज हो गया। अस्पताल लेकर गए तो जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि उसे गिलियन बैरे सिंड्रोम हो गया है। मीना देवी ने बताया कि जिंदगी का यह वक्त परिवार के लिए सबसे कठिन था। तीन साल खूब मेहनत की। इस दौरान खुद ही फिजियोथैरेपी सीखी। फिर जब योगेश पैरों पर खड़ा हुआ, तब कुछ उम्मीद जगी।

कालेज के सहपाठी की मदद से फेंकने लगे थे चक्का

योगेश ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला लिया था, जहां उन्होंने वाणिज्य में स्नातक की डिग्री हासिल की। कालेज में वर्ष 2017 में एक सहपाठी सचिन यादव की मदद से चक्का फेंक स्पर्धा में खेलने लगा। इस तरह योगेश ने पैरालिंपिक तक का सफर तय किया है। उन्होंने चंडीगढ़ के इंडियन आर्मी पब्लिक स्कूल में पढ़ाई की, जहां उनके पिता चंडी मंदिर छावनी में सेना में कार्यरत थे।

दिल्ली में परिवार के साथ योगेश कथुनिया।

दिल्ली में परिवार के साथ योगेश कथुनिया।



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