
महर्षि पिप्लाद को शिव का अवतार माना जाता है, जिनका जन्म ऋषि दधिचि के घर हुआ था. पिप्लाद ने अपने पिता की मृत्यु के लिए शनिदेव को श्राप दिया था. उन्होंने शनि से 16 साल से कम उम्र के बच्चों को कभी भी कष्ट न पहुंचाने का वचन लिया था. पिप्लाद की पूजा करने से शनिदेव के बुरे प्रभावों से छुटकारा मिलता है.

शिव के वफादार बैल और द्वारपाल, ऋषि शिलाद के अमर पुत्र के रूप में जन्मे नंदी शिव के परम भक्तों में से एक हैं. वे एक शक्तिशाली बैल के रूप में कैलाश पर्वत की रक्षा करते हैं. भगवान शिव तक पहुंचने के लिए नंदी की कानों में मनोकामनाएं बोली जाती हैं.

वीरभद्र शिवजी के क्रोध से उत्पन्न हुए थे. दक्ष के यज्ञ में सती के प्राण त्यागने के बाद शिव ने वीरभद्र को अपने केशों से उत्पन्न किया था. शिवजी के इस प्रचंड अवतार ने यज्ञ को पूरी तरह से नष्ट कर, राजा दक्ष का वध किया था. शिवजी का यह अवतार सबसे क्रोधी माना जाता है.

शिवजी का भैरव अवतार झूठ और बुराई का नाश करता है. ब्रह्मा के द्वारा शिव से झूठ बोलने पर भैरव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था. शिवजी का भैरव अवतार भारत के 52 पवित्र शक्ति मंदिरों की रक्षा करते हैं. भैरव की पूजा करने से शत्रुआ का नाश होता है और जीवन में सफलता मिलती है.

शरभ अवतार जिसने नरसिंह को वश में किया था. शरभ आधा सिंह और आधा पक्षी, जिसकी 30 भुजाएं और 8 पैर हैं. भगवान शिव ने यह अवतार विष्णु के नरसिंह अवतार को शांत करने के लिए धारण किया था. शरभ की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

अश्वत्थामा उन 8 लोगों में शामिल हैं, जिन्हें कलयुग के अंत समय तक अमर होने का वरदान मिला है. अश्वत्थामा का जन्म समुद्र मंथन के दौरान शिव के विषपान के समय हुआ था. अश्वत्थामा विष पुरुष के नाम से प्रसिद्ध एक शक्तिशाली योद्धा हैं, जो दुष्ट शास्कों से लड़ते हैं.

गृहपति जिसे सभी दिशाओं का स्वामी भी कहा जाता है. जन्म लेने के बाद गृहपति को ग्रहों की खराब स्थिति के कारण अकाल मृत्यु का भय था. काशी में तपस्या करने के बाद उन्हें मृत्यु से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था. गृहपति आठों दिशाओं के स्वामी हैं.

दुर्वासा ऋषि, अत्रि के पुत्र थे, जो अपने क्रोधी स्वभाव के लिए काफी प्रसिद्ध थे. मनुष्य और देवता दोनों ही उनका सम्मान करते थे. दुर्वासा ऋषि अपने उग्र स्वभाव के कारण पृथ्वी पर अनुशासन बनाए रखते थे. उनका आशीर्वाद और श्राप दोनों ही समान रूप से शक्तिशाली था.

हनुमान जी भी शिव के अवतार हैं. शिव की दिव्य उर्जा से अंजनी माता के गर्भ से जन्मे वानर देवता वीर हनुमान सदैव अपने भक्तों को साहस और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. हनुमान जी की आराधना करने से रोग, दोष, भय और दुख दूर होता है.

भगवान शिव ने श्री विष्णु के दुष्ट पुत्रों को हराने के लिए पवित्र बैल ऋषभ का अवतार लिया था. मान्यता है कि शिव के इस शक्तिशाली रूप ने सभी नकारात्मक शक्तियों का समूल नाश करके विश्व में शांति और संतुलन स्थापित किया था.

यतिनाथ शिव का एक ऐसा रूप जिसमें शिव ने बेघर भिखारी का रूप धारण करके आदिवासी जोड़े के आतिथ्य की परीक्षा ली थी. जब उन्होंने उनके लिए अपना सब कुछ त्याग दिया, तो उन्होंने उन्हें प्रसिद्ध प्रेमी नल और दमयंती के रूप में पुनर्जन्म का आशीर्वाद दिया.

कृष्ण दर्शन शिव का एक ऐसा अवतार जो अपनी अध्यात्म शक्ति के लिए जाने जाते हैं. शिव के इस अवतार ने राजकुमार नाभग को मोक्ष और आत्मज्ञान की प्राप्ति कराई थी. कृष्ण दर्शन ने त्याग, सांसारिक इच्छाओं से मोह त्याग कर लोगों को आध्यात्मिक जागृत करने का महत्व सिखाया.

विक्षुवर्यवा शिव के इस अवतार को अनाथों का रक्षक भी कहा जाता है. जब राजा सत्यरथ की मृत्यु हो गई थी, तब उनके बालकों की रक्षा के लिए शिव ने यह रूप धारण किया था. इस धन्य बालक का पालन-पोषण दयालु गरीब महिला ने किया था. शिव का यह अवतार सभी असहाय बालकों की देखरेख को दर्शाता है.

किरातेश्वर अवतार में भगवान शिव ने एक आदिवासी शिकारी के रूप में प्रकट होकर अर्जुन की शक्ति और साहस का परीक्षण किया. योद्धा के कौशल से प्रभावित होकर, उन्होंने अर्जुन को पाशुपतास्त्र नामक शक्तिशाली दिव्य हथियार उपहार में दिया.

सुनंतरका दिव्य नर्तक शिव ने पार्वती से विवाह करने के लिए राजा हिमालय के दरबार में अपने डमरू के साथ नृत्य किया था. इस सुंदर अवतार ने पर्वतराज की पुत्री से विवाह की अनुमति मांगते हुए अपना कलात्मक पक्ष प्रदर्शित किया था.

ब्रह्मचारी भी शिव का ही अवतार माना जाता है. पार्वती से विवाह करने से पहले शिव उनकी भक्ति और प्रेम की परीक्षा लेने के लिए एक युवा विद्यार्थी के रूप में प्रकट हुए. इस अवतार से यह पता लगाया गया कि क्या पार्वती वास्तव में शिव से प्रेम करती थीं या उनकी दैवीय शक्तियों और रूप से आकर्षित थीं.

भगवान सुरेश्वर शिवजी के ही अवतार हैं. एक बार भगवान इंद्र का वेश धारण कर शिव ने युवा उपमन्यु की भक्ति की परीक्षा ली. जब बालक सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो गया, तो शिव ने पार्वती के साथ उसके आश्रम के पास रहने का वचन दिया. यह रूप सच्ची भक्ति का मूल्य सिखाता है.

यक्षेश्वर भी भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है. समुद्र मंथन के दौरान देवताओं को काफी ज्यादा अभिमान हो गया था. शिव दिव्य घास लेकर प्रकट हुए और उन्हें उसे काटने की चुनौती दी. जब कोई भी सफल नहीं हुआ, तो उनका मिथ्या अभिमान नष्ट हो गया और उन्हें सच्ची विनम्रता का पाठ पढ़ाया.

अवधूत भी भगवान शंकर का ही अवतार है. यह अंतिम अवतार भगवान इंद्र के अत्यधिक अहंकार और घमंड को नष्ट करने के लिए प्रकट हुआ था. एक भटकते हुए संत के रूप में, शिव ने सिखाया कि सच्ची शक्ति विनम्रता से आती है, समाज में पद या प्रतिष्ठा से नहीं.
Published at : 03 Oct 2025 06:35 PM (IST)
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