PoK, बलूचिस्तान, गिलगित, सिंध… कंगाल होते पाक और सेना के जुल्म से लड़ते इलाकों की कहानी – asim munir shehbaz sharif pakistan economic crisis inflation unemployment protests pok balochistan gilgit baltistan sindh ntcpk

PoK, बलूचिस्तान, गिलगित, सिंध… कंगाल होते पाक और सेना के जुल्म से लड़ते इलाकों की कहानी – asim munir shehbaz sharif pakistan economic crisis inflation unemployment protests pok balochistan gilgit baltistan sindh ntcpk


पाकिस्तान सालों से आर्थिक मंदी और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है और अब महंगाई और बेरोजगारी से परेशान जनता ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा भूख, बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रहा है और जनता आसिम मुनीर की सेना और शहबाज शरीफ सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ उठ खड़ी हुई है.

पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (PoK), बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान और सिंध, ये चारों इलाके सरकार की नीतियों और मुनीर ब्रिगेड के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं.

पीओके में बीते कुछ दिनों में जो कुछ हुआ, उसने पूरे देश को झकझोर दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की भारी बेइज्जती हुई है. पीओके में शहबाज शरीफ की नीतियों और महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई. सितंबर में शुरू हुए आंदोलनों में सेना की गोली से 12 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हुए. पीओके के प्रदर्शन अवामी एक्शन कमेटी (AAC) की अगुवाई में हो रहे हैं जो कि व्यापारियों, वकीलों, छात्रों और सिविल सोसायटी ग्रुप्स से मिलकर बना है. 

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें हैं- विधानसभा की 12 रिजर्व्ड सीटों को खत्म करना जिन्हें पाकिस्तान में बसे कश्मीरी शरणार्थियों के लिए रखा गया है. बिजली की दरों में कटौती, गेहूं और अन्य जरूरी सामानों पर सब्सिडी और लोकल राजस्व पर नियंत्रण. लोग स्थानीय शासन में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार और फंड की लूट को खत्म करने की मांग कर रहे हैं.

प्रदर्शनों को दबाने की कोशिश

पाकिस्तान की सेना ने भीड़ पर गोलियां चलाईं, इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं और इलाके में कर्फ्यू जैसा माहौल बना दिया. पाकिस्तान की सेना और सरकार ने भरपूर कोशिश की कि पीओके की खबरें बाहर न जाए, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए खबरें बाहर आईं और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने पीओके की खबरों को काफी तवज्जो दी.

अवैध कब्जे वाले इलाके को लेकर हो रही अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती को देखते हुए पाकिस्तान की सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा और उसने प्रदर्शनकारियों के साथ समझौता कर लिया है. हालांकि, स्थानीय लोग समझौते से खुश नहीं हैं और उनका कहना है कि ये ‘झूठा समझौता’ था और असल सुधार अब तक नहीं हुए हैं.

स्थानीय नागरिकों की शिकायत है कि पाकिस्तान की सरकार पीओके से टैक्स वसूलती है लेकिन यहां की सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों पर कोई ध्यान नहीं देती.

पाकिस्तान से आजादी की मांग करते बलूचिस्तान के लोग

पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे संसाधन-संपन्न प्रांत बलूचिस्तान सबसे गरीब और सबसे अशांत प्रांत रहा है. बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहे संगठन बलोच नेशनल मूवमेंट के मानवाधिकार विभाग Paank की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ पहले छह महीनों में 785 लोग जबरन गायब किए गए और 121 की हत्याएं हुई हैं.

कई मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि सुरक्षा बल और खुफिया एजेंसियां राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बलोच एक्टिविस्ट्स को निशाना बनाती हैं.

2024 की BASC (The Balochistan Advocacy and Studies Centre) रिपोर्ट में बताया गया कि उस साल पाकिस्तान की सरकार ने 674 लोगों को गायब किया, जिनमें 466 अब भी लापता हैं, और 187 छात्र उनमें शामिल थे.

यहां की जनता प्राकृतिक गैस, कोयला और खनिज संपदा के शोषण से भी नाराज है. बलूच आंदोलनकारी कहते हैं कि पाकिस्तान सरकार और सेना ने प्रांत के संसाधन लूट लिए, लेकिन स्थानीय जनता को न शिक्षा मिली, न स्वास्थ्य, न रोजगार.

बलूचिस्तान की महिला एक्टिविस्ट रहीं करीमा बलोच का पुराना बयान आज भी क्षेत्र में आंदोलन का प्रतीक है जिसमें उन्होंने कहा था, ‘हमारे बच्चों को उठाया जाता है, हमारे संसाधन छीने जाते हैं, और फिर हमें ही आतंकवादी कहा जाता है.’

करीमा बलोच दिसंबर 2020 में कनाडा के टोरंटो शहर में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गई थीं. उनकी मौत के लिए पाकिस्तान सरकार को जिम्मेदार बताया गया था.

विरोध की आग में जलता गिलगित-बाल्टिस्तान

गिलगित-बाल्टिस्तान (GB) पाकिस्तान का वह इलाका है जो संवैधानिक रूप से देश का प्रांत ही नहीं है. यहां के लोगों को न संसद में प्रतिनिधित्व है, न अपने संसाधनों पर नियंत्रण हासिल है.

क्षेत्र में आए दिन सरकार और आसिम मुनीर की सेना के खिलाफ प्रदर्शन होते रहते हैं. पाकिस्तान स्थित ARY News ने बताया है कि रविवार को ही गिलगित बाल्टिस्तान में एक महीने के लिए धारा 144 लगा दी गई. क्षेत्र के डिप्टी कमिश्नर (DC) ने एक नोटिफिकेशन जारी कर बताया कि एक महीने तक पब्लिक मीटिंग्स और रैलियों पर पाबंदी रहेगी.

इससे पहले अप्रैल 2025 में शिगर जिले में खनिज बिल और बिजली संकट के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन हुए.

स्थानीय ट्रेड यूनियनों ने भी, चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) के खिलाफ भी प्रदर्शन किया. लोगों का कहना है कि ‘हमारी जमीनें चीन और सेना के हवाले की जा रही हैं.’

HRCP की 2024 की रिपोर्ट में कहा गया कि क्षेत्र में बेरोजगारी दर पाकिस्तान के राष्ट्रीय औसत से 12% ज्यादा है, और कई सरकारी अस्पतालों में जरूरी उपकरण नहीं हैं.

गिलगित-बाल्टिस्तान के युवा ‘Gilgit is not Pakistan’ जैसे नारे सोशल मीडिया पर ट्रेंड करा रहे हैं. उनका कहना है कि मुनीर की सेना ने पाकिस्तान को सैन्य कॉलोनी बना दिया है जहां लोगों की आवाज दबा दी जाती है.

सिंध में भी शहबाज की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन

पाकिस्तान का आर्थिक केंद्र माने जाने वाले सिंध में भी सरकार और सेना के खिलाफ लोगों का असंतोष बढ़ रहा है. अप्रैल 2025 में ‘Indus Canal Project’ के खिलाफ लरकाना, नवाबशाह, घोटकी और जमशोरो जिलों में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया.

स्थानीय किसानों का कहना है कि यह नहर प्रोजेक्ट सिंध के हिस्से का पानी पंजाब की ओर मोड़ देगा, जिससे उनकी जमीनें बंजर हो जाएंगी.

Goods Transporters Alliance के अनुसार, इन विरोधों से पाकिस्तान को करीब PKR 2,800 करोड़ (लगभग 8 अरब 88 करोड़, 15 लाख रुपये) का आर्थिक नुकसान हुआ.

सिंधी राष्ट्रवादी संगठन आरोप लगाते हैं कि सेना ‘एक भाषा, एक पहचान’ की नीति थोप रही है और स्थानीय संस्कृति, शिक्षा और रोजगार में भेदभाव कर रही है.

पाकिस्तान के इन चारों इलाकों की कहानी लगभग एक जैसी है जिसमें लोग आर्थिक बदहाली और बेरोजगारी झेल रहे हैं, सेना के बढ़ते दमन और संसाधनों की लूट से परेशान हैं. IMF के कर्ज पर चलने वाला पाकिस्तान अब अपने ही लोगों का भरोसा खो चुका है. विश्लेषकों का कहना है कि ये विरोध सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए खतरे की घंटी हैं. 

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