देव उतरते हैं पेड़ों में ‘कांतारा’ जैसी घटनाएं आज भी होती हैं केरल के ‘कावु’ जंगलों में?

देव उतरते हैं पेड़ों में ‘कांतारा’ जैसी घटनाएं आज भी होती हैं केरल के ‘कावु’ जंगलों में?



Kantara Kavu: कर्नाटक और केरल की सीमाओं पर फैले तटीय इलाकों में ऐसी आस्था आज भी जीवित है कि देवता केवल मंदिरों में नहीं, पेड़ों और जंगलों में भी वास करते हैं. कांतारा-जैसी लोककथाओं का यही मूल है, जब जंगल-देव भूमि, प्रकृति और न्याय की रक्षा के लिए स्वयं अवतरित होते हैं.

केरल के  कावु नामक पवित्र उपवनों में रात के समय आज भी थेय्यम और नाग-पूजा के जरिए यह दैवी परंपरा निभाई जाती है जहां माना जाता है कि देव आत्मा किसी साधक के शरीर में उतरकर बोलती है, आशीर्वाद देती है और अन्याय का न्याय करती है.

कांतारा कोई कहानी नहीं, एक जीवित धर्म है?

फिल्म Kantara में दिखाया गया भूत-कोला (Bhoota Kola) केवल सिनेमाई कल्पना नहीं, बल्कि तटीय कर्नाटक की जीवंत धार्मिक परंपरा है. यह परंपरा शिव और पार्वती के गणों या स्थानीय दैवों (Divine Spirits) को समर्पित है, जो जंगल, भूमि और गांव की रक्षा करते हैं.
इन देवताओं के नाम हैं-
1-पंजुरली
2-गुलिगा
3- जुमादी आदि.

इनके भक्तगण आग और नृत्य के बीच जब देव-अवेश में आते हैं, तो उन्हें भूत नहीं, बल्कि संरक्षक देव कहा जाता है. कांतारा का दर्शन है 
जब मानव न्याय खो देता है, तब देवता स्वयं उतरते हैं.

कावु…केरल के पवित्र उपवन जहां देवता अब भी बसते हैं

केरल में कावु (Kavu) को देवों का वन कहा जाता है. हर गांव के पास कभी न कभी एक ऐसा पवित्र उपवन होता था जहां कोई देवता, खासकर नाग देवता, भद्रकाली या यक्षी वास करते हैं. इन स्थानों पर मूर्तियां नहीं होतीं, बल्कि पेड़, बेल और झीलें ही देवता का रूप मानी जाती हैं. आज भी कई परिवार सुबह कावु में दीया जलाते हैं और सरप्पट्टू (सर्पनृत्य) जैसी पूजा विधि निभाते हैं.
मान्यता है कि कावु में पेड़ काटना या ज़मीन खोदना देव-अपमान माना जाता है.

जब देव उतरते हैं शरीर में

कावु और भूत-कोला दोनों में एक समान रहस्यमय घटना होती है दैवी अवेश. यह माना जाता है कि विशेष मंत्र, ढोल और अग्नि की ऊर्जा से देवता साधक के शरीर में प्रवेश करते हैं.

उसके बाद साधक की वाणी बदल जाती है, आंखों से तेज प्रकाश जैसा आभास होता है, और वह देव के रूप में लोगों से संवाद करता है. कभी वह आशीर्वाद देता है, कभी दोष बताता है, तो कभी न्याय सुनाता है. यह प्रक्रिया पूर्ण संयम, मंत्र और परंपरा से होती है. इसे कैमरे में कैद नहीं किया जा सकता.

जब इंसान नहीं, दैवी शक्ति करती है फैसला

कांतारा और कावु दोनों जगहों की मूल आत्मा दैवी न्याय है. अगर कोई व्यक्ति भूमि या जंगल का अपमान करता है, या निर्दोष पर अन्याय करता है तो यह माना जाता है कि देवता स्वयं दंड देते हैं. केरल के कई गांवों में अब भी ऐसी घटनाओं की चर्चा होती है जहां कावु में रात को दीपक अपने-आप जलते हैं या किसी पापी को दैवी चेतावनी मिलती है.

प्रकृति ही परमात्मा यही है कांतारा-कावु का दर्शन है

इन परंपराओं का संदेश सरल है, प्रकृति और धर्म अलग नहीं हैं. जंगल, जल, भूमि और जीव यही देवता हैं. इनकी रक्षा करना ही पूजा है, और इनका अपमान करना अधर्म. कांतारा-कावु दोनों हमें याद दिलाते हैं कि जब हम प्रकृति को भूलते हैं, तो देवता हमें याद दिलाने लौट आते हैं.

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