बिहार विधानसभा चुनाव में हार-जीत तय करेंगे ये 7 फैक्टर, आखिर किसकी किस्मत खुलेगी? – Bihar elections winning factor Jungle Raj Freebies Modi opns2

बिहार विधानसभा चुनाव में हार-जीत तय करेंगे ये 7 फैक्टर, आखिर किसकी किस्मत खुलेगी? – Bihar elections winning factor Jungle Raj Freebies Modi opns2


बिहार में ठीक एक महीने बाद दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान होगा. मतलब साफ है कि अब सोचने का समय नहीं है. परिणाम चाहे जो भी आए मुख्य रूप से 7 फैक्टर्स की भूमिका कहीं न कहीं से रहेगी ही. 19 साल से ज्यादा समय से राज्य के मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की अग्निपरीक्षा तो है ही. लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के साथ राहुल गांधी को उनके मुद्दों पर जनता का कितना साथ मिलता है यह भी पता चल जाएगा. 

1-नीतीश कुमार की सेहत

74 वर्षीय मुख्यमंत्री की तबीयत अब पहले जैसी नहीं रही है, और यही विपक्षी महागठबंधन का मुख्य हथियार बन गया है. विपक्ष का आरोप है कि अब नीतीश प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं, और राज्य एक सात-आठ सदस्यीय राजनीतिज्ञों और अफसरों का समूह चला रहा है. तेजस्वी यादव, जो नेता प्रतिपक्ष हैं, अक्सर नीतीश कुमार के समारोहों के वीडियो साझा करते हैं ताकि यह दिखा सकें कि सीएम अब उतने सक्रिय नहीं हैं. रविवार को पटना के एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार के बार-बार हाथ जोड़ने का का वीडियो इसका ताज़ा उदाहरण है.

हालांकि जेडीयू ने लगातार इन आरोपों का खंडन किया है. जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने सोमवार को कहा, वह (नीतीश) सभी फैसले खुद ले रहे हैं.. उनकी सेहत सिर्फ विपक्ष का मुद्दा है. सहयोगी भाजपा भी बार-बार यह कह रही है कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़े जा रहे हैं. लेकिन बीजेपी यह बताने से बच रही है कि चुनाव के बाद क्या होगा.जाहिर है कि नीतीश के प्रति बिहार में अब भी जो सम्मान है उसके चलते बीजेपी इस मुद्दे पर फूंक फूक कर कदम रख रही है. दरअसल डर यह है कि अगर नीतीश कुमार स्वस्थ नहीं हैं, यह बात आम लोगों तक पहुंच गया तो एनडीए के लिए स्थितियां माकूल नहीं रह सकेंगी.

2-चुनावों के ठीक पहले सुविधाओं की बरसात

एनडीए ने विरोधी लहर (anti-incumbency) को रोकने के लिए नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनों से लगातार आम जनता की भलाई के लिए कोई न कोई फैसले ले रहे हैं. उन्होंने मतदाताओं के लिए कई योजनाओं की झड़ी लगा दी है. अब तक 1.21 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये जा चुके हैं ताकि वे कोई छोटा व्यवसाय शुरू कर सकें. यह वितरण मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत जारी रहेगा क्योंकि आचार संहिता चल रही योजनाओं पर लागू नहीं होती.

राज्य सरकार 1.89 करोड़ परिवारों को 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा पहले ही कर चुकी है. सामाजिक सुरक्षा पेंशन को 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये प्रति माह किया गया है. जीविका, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया गया है. साथ ही 18 से 25 वर्ष के बेरोजगार युवाओं को दो वर्षों तक प्रति माह 1,000 रुपये भत्ता देने की घोषणा की गई है.

3-वोट चोरी का मुद्दा कितना काम करेगा?

बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष सघन जांच अभियान को राहुल गांधी ने मुद्दा बना दिया. उनका साथ देने के लिए पूरा इंडिया गुट आधे अधूरे मन से लग गया. बिहार में 17 अगस्त से लेकर एक सितंबर तक की राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने मिलकर यात्रा भी निकाली. दोनों नेताओं को देखने और सुनने के लिए भारी भीड़ भी जुटी पर जिस तरह तेजस्वी ने दुबारा यात्रा निकाली है और वोट चोरी के मुद्दे पर अब उनका उतना फोकस नहीं है, उससे तो यही लगता है कि महागठबंधन यह समझ चुका है कि यह मुद्दा फुस्स हो चुका है.

मोदी सरकार पर वोट चोरी का आरोप कितना काम किया इसका नतीजा 14 नवंबर को बिहार चुनाव परिणामों के साथ ही आ जाएंगे. दूसरी तरफ एनडीए ने एसआईआर के विरोध को घुसपैठियों को प्रोत्साहन देने वाला बताया है. चुनाव परिणाम ये साबित करेगा आम लोगों को अपनी बात समझाने में कौन अधिक सफल रहा.

4-NDA का चेहरा मोदी/नीतीश

एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की  बात बार-बार कहता रहा है. पर चुनाव परिणाम आने के बाद उनके सीएम बनाने की बात पर बीजेपी और जेडीयू दोनों ही ओर से एक तरह की चुप्पी ही है. दरअसल नीतीश की बिगड़ती सेहत को देखते हुए एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही अपनी मुख्य चेहरा बनाया हुआ है. जबकि हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में मोदी ने स्थानीय नेतृत्व के भरोसे ही चुनाव अभियान को छोड़ रखा था. पर बिहार में ऐसा नहीं है.

दरअसल महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह पूरे प्रदेश में प्रभाव दिखाने वाला भाजपा का कोई स्थानीय नेता बिहार में नहीं है. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और राज्य अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के पास राज्यव्यापी जनअपील में वह प्रभाव नहीं है जो एनडीए को चाहिए. इसी तरह जनता दल यू में भी नीतीश कुमार ने कभी भी किसी को अपने डिप्टी के रूप में उभरने ही नहीं दिया.

नीतीश कुमार जिस तरह बीमार दिख रहे हैं उसके चलते मोदी की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है . क्योंकि जेडीयू के किसी भी नेता में राज्यव्यापी अपील नहीं है. जाहिर है कि सारा दारोमदर नरेंद्र मोदी पर ही है.

5-पीके फैक्टर कितना उलटफेर कर सकता है?

पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा रखी है.जन सुराज पार्टी (JSP) के बारे में कहा जा रहा है कि एनडीए के लिए यह पार्टी बहुत घातक साबित होने वाली है. पिछले कुछ दिनों में भाजपा के शीर्ष नेताओं पर उनके आरोपों ने सत्तारूढ़ दल को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है. डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के बारे में तो उन्होंने ऐसे आरोप लगाएं हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को मुंह छुपाना पड़ रहा है.

 इतना ही नहीं बिहार की जातिगत राजनीति से ऊबे बहुत से लोगों के लिए किशोर का यह संदेश कि उनकी सरकार प्रवास, बेरोजगारी और सुशासन जैसे मुद्दों पर ध्यान देगी. जाहिर है कि बहुत से लोगों के लिए वो उम्मीद की किरण बन रहे हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नीतीश कुमार  ने अंतिम मौकों पर फ्रीबीज की घोषणाएं की हैं उसके पीछे कहीं न कहीं प्रशांत किशोर ही हैं. जाहिर है कि अगर महागठबंधन को कई सीटों पर माइलेज मिलती है तो उसमें कहीं न कहीं प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जनसुराज का भी हाथ होगा.

6-भ्रष्टाचार के आरोप 

प्रशांत किशोर ने हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए के प्रमुख नेताओं जैसे उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री अशोक चौधरी, मंगल पांडेय, दिलीप जायसवाल और संजय जायसवाल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने दस्तावेजों के साथ दावा किया कि ये नेता करोड़ों की संपत्ति हड़प रहे हैं, जैसे अशोक चौधरी पर 200 करोड़ की जमीन खरीद का आरोप और सम्राट चौधरी पर हत्या के मामले में आयु प्रमाणपत्र में फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाया है. 

 किशोर ने नीतीश कुमार को ईमानदार बताया लेकिन उनकी सरकार को आजादी के बाद सबसे भ्रष्ट कहा, जो मंत्रियों और अधिकारियों की लूट से हो रही है.  ये आरोप एनडीए को रक्षात्मक बना रहे हैं, क्योंकि नेताओं को बार-बार सफाई देनी पड़ रही है, जो उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रहा है.

दूसरी तरफ BJP ने किशोर पर ही फंडिंग अनियमितताओं का आरोप लगाकर काउंटर किया है. अब देखना यह है कि प्रशांत किशोर NDA की स्थिति कितनी कमजोर कर पाएंगे. हालांकि उन्हें एक बात का श्रेय देना पड़ेगा कि उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार को भी मुद्दा बना दिया है. 

7- लालू यादव का जंगलराज

एनडीए के लिए लालू प्रसाद यादव के जंगलराज का नैरेटिव बिहार विधानसभा चुनावों में क्या इस बार भी काम करेगा? दरअसल RJD की छवि को अपराध, भ्रष्टाचार और अराजकता से जोड़कर मतदाताओं में भय पैदा कराना ही एनडीए के लिए एक बार फिर फायदेमंद साबित हो सकता है. 1990-2005 के लालू-राबड़ी काल को जंगलराज बताकर NDA ने 2005, 2010, 2020 चुनावों में सफलता हासिल की, जहां अपहरण, हत्या और लूट की घटनाओं का जिक्र कर जनता को नीतीश कुमार के सुशासन से जोड़ा जाता रहा है.  

पिछले कुछ समय से बिहार में अपराध बढ़ने से NDA पर सवाल उठे हैं. इसके साथ ही इस बार ऐसे युवाओं की मात्रा इस बार वोट देने वालों की अधिक है जिन्होंने जंगलराज के बारे में केवल सुना है. जाहिर है कि उनके लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. हो सकता है कि उनके लिए जंगलराज का नैरेटिव कमजोर हो जाए.

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