Hindu Tradition: भारतीय संस्कृति और परंपरा में हर पेड़-पौधों का अपना महत्व है. पेड़ों और फलों की पूजा धार्मिक अनुष्ठानों और भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है. बांस के पेड़ और उससे बनने वाली कई तरह की सामग्रियों को लेकर भी पुराणों और धर्म शास्त्रों में अलग-अलग व्याख्या मिलती है. आइए जानते हैं इसके कुछ अहम पहलुओं को.
हिंदू धर्म में पेड़ों का महत्व
हिंदू धर्म में तुलसी को देवी का रूप माना जाता है. पीपल को भगवान विष्णु का वास समझा जाता है. नीम को औषधीय गुणों के कारण पूजनीय माना गया है. आम के पेड़ के पत्तों को धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है.
इसी तरह बांस के पेड़ का भी काफी महत्व होता है. हिंदू धर्म में बांस के पेड़ को जलाना निषेध माना जाता है. इसके पीछे न केवल धार्मिक मान्यताएं हैं, बल्कि पौराणिक कथाएं और वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं.
वंश परंपरा का प्रतीक
संस्कृत में बांस को वंश कहा जाता है. वंश का अर्थ है, परिवार, कुल या पीढ़ी. धार्मिक अनुष्ठानों में अग्नि को शुभ माना जाता है, लेकिन कभी उस अग्नि में बांस से बनी किसी सामग्री को समर्पित नहीं किया जाता है.
मान्यता के अनुसार बांस को जलाना अपने वंश को समाप्त करने जैसा माना जाता है. यही वजह है कि घरों में या धार्मिक अनुष्ठानों में बांस जलाने से लोग बचते हैं.
पौराणिक संदर्भ और धर्मशास्त्र
गरुड़ पुराण और कई धर्मशास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि, बांस जलाने से पितरों यानी पूर्वजों की आत्माओं को कष्ट होता है. ऐसा विश्वास है कि, बांस का धुआं पितृलोक तक पहुंचता है. इससे अशांति फैलती है.
मृत्यु के बाद दाह संस्कारों में भी बांस का अलग तरह से उपयोग किया जाता है. बांस से बनी चचरी पर शव को रख कर श्मशान तक ले जाते हैं, लेकिन कभी उस चचरी या खप्पचियों को वहां जलाया नहीं जाता है. उसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है.
वैज्ञानिक कारण भी दिलचस्प
धार्मिक मान्यताओं के अलावा बांस को नहीं जलाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. बांस के अंदर खोखलापन और गांठों में हवा भरी होती है. बांस में आग लगने पर यह तेज आवाज के साथ फटता है. इससे आसपास में भी आग लगने की आशंका बनी रहती है.
शुभता और समृद्धि का प्रतीक
बांस का एक गुण ये भी है कि, इसका पेड़ साल भर हरा-भरा बना रहता है. किसी मौसम का इस पर अधिक असर नहीं होता है. इस पेड़ को हिंदू परंपरा में दीर्घायु, उन्नति और समृद्धि से जोड़ कर देखा जाता है. इसमें आग लगाने का मतलब अपनी समृद्धि को नष्ट करने जैसा होता है.
इसके अलावा बांस से कई तरह के सजावट के सामान भी बनते हैं. यही कारण है कि, विवाह, गृहप्रवेश, मंडप बनाने, पूजा में बांस का प्रयोग तो किया जाता है, लेकिन अग्नि को अर्पित नहीं किया जाता है.
बांस को न जलाने की परंपरा केवल अंधविश्वास नहीं बल्कि आस्था का भी प्रतीक है. यही भारतीय संस्कृति की खूबसूरती है जिसमें कई संदेश छीपे रहते हैं जिससे हमें प्रेरणा मिलती है.
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