2030 तक आ जाएगी ऐसी टेक्नोलॉजी जो इंसानों के नसों में जाकर एक झटके में मिटा देगी याददाश्त, जानिए पूरी जानकारी

2030 तक आ जाएगी ऐसी टेक्नोलॉजी जो इंसानों के नसों में जाकर एक झटके में मिटा देगी याददाश्त, जानिए पूरी जानकारी



What is Nanobots: टेक्नोलॉजी और साइंस आज उस मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां इंसान के शरीर के भीतर जाकर काम करने वाली मशीनें अब कल्पना नहीं रहीं बल्कि हकीकत बनती जा रही हैं. इन्हीं में से एक बेहद रोचक और रहस्यमय तकनीक है नैनोबॉट्स (Nanobots). ये सूक्ष्म रोबोट इतने छोटे होते हैं कि ये इंसान की नसों, खून और दिमाग की Cells के अंदर तक पहुंच सकते हैं. हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ऐसे नैनोबॉट्स भविष्य में इंसान की याददाश्त मिटाने या उसे बदलने तक की क्षमता रख सकते हैं.

नैनोबॉट्स आखिर होते क्या हैं?

नैनोबॉट्स असल में बेहद छोटे माइक्रो-रोबोट्स होते हैं जिनका आकार एक नैनोमीटर (यानि मीटर का एक अरबवां हिस्सा) जितना छोटा होता है. इन्हें नैनो-टेक्नोलॉजी के तहत तैयार किया जाता है और इनका काम शरीर के भीतर जाकर सेल्स, नसों और अंगों के स्तर पर इलाज या जांच करना होता है.

इन नन्हीं मशीनों को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि ये इंसान के शरीर में इंजेक्शन या दवा के रूप में पहुंचाई जा सकती हैं. एक बार जब ये शरीर में प्रवेश कर जाती हैं तो ये अपने प्रोग्राम के अनुसार काम करती हैं जैसे कैंसर सेल्स को खत्म करना, ब्लड क्लॉट्स हटाना या ब्रेन सिग्नल्स को मॉनिटर करना.

क्या नैनोबॉट्स याददाश्त मिटा सकते हैं?

वैज्ञानिकों का मानना है कि दिमाग की याददाश्त न्यूरॉन्स और सिनैप्स कनेक्शन्स के जरिए बनी रहती है. अगर किसी तकनीक से इन कनेक्शनों में बदलाव किया जाए तो याददाश्त को प्रभावित किया जा सकता है.

यहीं पर नैनोबॉट्स की भूमिका सामने आती है भविष्य में इन्हें इस तरह प्रोग्राम किया जा सकता है कि ये ब्रेन के खास हिस्सों तक पहुंचकर न्यूरल सिग्नल्स को रोक या मिटा सकें.

यानी, यह तकनीक किसी व्यक्ति की खास यादों को मिटाने या अस्थायी रूप से ब्लॉक करने में सक्षम हो सकती है. हालांकि यह सुनने में किसी साइंस-फिक्शन फिल्म की कहानी जैसी लगती है लेकिन कई वैज्ञानिक प्रयोग ऐसे चल रहे हैं जिनसे यह साबित होता है कि नैनोबॉट्स से दिमागी जानकारी को मॉडिफाई करना संभव है.

फायदे और खतरे दोनों मौजूद

नैनोबॉट्स का उपयोग मेडिकल साइंस के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है. इससे ब्रेन ट्यूमर, अल्जाइमर, पार्किंसन और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स जैसी बीमारियों का इलाज आसान हो सकता है.

लेकिन दूसरी ओर, यह तकनीक प्राइवेसी और मानसिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा भी बन सकती है. अगर किसी गलत इरादे से इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया तो कोई भी व्यक्ति किसी की याददाश्त, सोच या भावना को नियंत्रित कर सकता है जो इंसान की स्वतंत्रता के लिए बेहद खतरनाक है.

भविष्य में क्या संभव है?

अभी तक नैनोबॉट्स को इंसान के दिमाग में प्रयोगात्मक रूप से ही टेस्ट किया गया है. वैज्ञानिकों का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में इन्हें मेडिकल सर्जरी, दवा वितरण और न्यूरल थेरेपी के लिए उपयोग किया जा सके.

लेकिन याददाश्त मिटाने जैसी क्षमताएं फिलहाल सैद्धांतिक स्तर पर ही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक को सुरक्षित और नैतिक दिशा में आगे बढ़ाना जरूरी है वरना इसका दुरुपयोग मानव सभ्यता के लिए बड़ा खतरा बन सकता है.

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