डोनाल्ड ट्रंप का गाजा शांति प्रस्ताव फिलहाल के लिए कामयाब दिख रहा है. हमास ने सारे जीवित बंधक छोड़ दिए. गाजा पट्टी में आतंकियों की कैद में 737 दिन बिता चुके बंधक कई शारीरिक-मानसिक बीमारियां झेल रहे होंगे, जिनकी जांच होगी. लेकिन इतना तय है कि दो सालों में उन्होंने शायद ही कभी भरपेट भोजन किया हो. ऐसे में वापसी के बाद उनमें रीफीडिंग सिंड्रोम का खतरा है. होमकमिंग यूनिट में उन्हें नए सिरे से खाना खाने की ट्रेनिंग मिलेगी.
अक्तूबर 2023 में हमास ने इजरायल के एक संगीत फेस्टिवल पर हमला करते हुए हजारों नागरिकों को मार दिया और 251 लोगों को अगवा कर लिया. इसके बाद से ही इजरायल और हमास में युद्ध चल रहा था, जो हाल-हाल में डोनाल्ड ट्रंप के दखल के बाद रुका. ट्रंप के 20 पॉइंट्स के शांति प्रस्ताव में बंधकों और कैदियों की अदला-बदली शामिल है. पहले चरण में हमास से सारे जीवित बंधकों को इजरायल को सौंप दिया.
क्यों है लौटे हुए बंधकों पर जोखिम
पूरे दो साल सुरंगों, जर्जर इमारतों और तहखानों में हिंसा के बीच गुजार चुके इन बंधकों की हालत जाहिर तौर पर सामान्य नहीं होगी. कई लोग जख्मी भी होंगे तो कई नए बीमारियां लेकर आए होंगे. वे पूरी तरह से रिकवर हो सकें, इसके लिए इजरायल उन्हें अस्पताल में ही रखेगा. हालांकि उनके कमरों को होमकमिंग यूनिट कहा जा रहा है. ये अस्पताल के रूम तो हैं, लेकिन घरों का टच लिए हुए. तेल अवीव के पास पेताह तिक्वा शहर के एक अस्पताल को इसके लिए तैयार किया गया है.

किस तरह के होंगे अस्पताल के यूनिट
कई मीडिया रिपोर्ट्स में इन कमरों की झलकियां हैं. स्काई न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक हवादार और धूप वाले साफ-सुथरे कमरों में सॉफ्ट टॉय रखे हुए हैं. साथ ही फ्रिज है, जिसमें पानी की बोतलें हैं. हरेक को प्राइवेट रूम मिलेगा, जहां काफी सारे गिफ्ट आइटम भी रखे होंगे. इनमें खाने-पीने की चीजों से लेकर कंबल, चादरें, फोन चार्जर और चप्पलें भी होंगी. सेना की तरफ से उन्हें फोन भी दिया जाएगा ताकि वे घरवालों या दोस्तों से कनेक्ट कर सकें. साथ ही सटा हुआ एक और कमरा होगा, जहां मुलाकाती आ-जा सकें.
इलाज के लिए सारी चीजें होंगी लेकिन अलग कमरे में ताकि छूटे हुए बंधकों के कमरों को ज्यादा मानवीय और गर्माहट-भरा बनाया जा सके.
रीफीडिंग सिंड्रोम के लिए भी तैयारी
माना जा रहा है कि सारे पुरुष बंधकों को अलग-अलग समस्याएं हो रही हैं. लेकिन एक दिक्कत सबके लिए कॉमन है. वे दो साल तक न्यूनतम खाने पर जिंदा रहे होंगे, जिनमें पोषण भी शायद ही हो. ऐसे में उन्हें रीफीडिंग सिंड्रोम का जोखिम रहेगा. यही वो चीज है, जिसे लेकर खास एहतियात बरती जानी है.
रीफीडिंग सिंड्रोम वो मेडिकल स्थिति है जो आती होती है जब कोई शख्स लंबे समय तक भूखा रहा हो या बहुत कम खाना खा रहा हो. ऐसे में अचानक उसे पर्याप्त खाना मिल जाए तो पोषक तत्व शरीर में जाकर तेजी से काम करने लगते हैं. इससे बॉडी रिपेयर कम होती है और नुकसान ज्यादा होता है.
यहां तक कि लंबे समय तक अनाहार के बाद एकाएक भरपेट खाने पर दिल की धड़कन बढ़ जाती है, कमजोरी लगने लगती है. कई लोगों को उल्टियां होने लगती हैं. कईयों को समय और जगह का होश नहीं रहता. गंभीर मामलों में मौत तक हो सकती है. इसलिए डॉक्टर इसे बहुत सीरियल मानते हैं और धीरे-धीरे कंट्रोल्ड तरीके से खाना खाने की सलाह देते हैं.

इतिहास में ऐसे कई उदाहरण रहे. जैसे दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद कैदियों और सैनिकों को भारी भोजन मिला तो वे ज्यादा खाने लगे. कई लोग रीफीडिंग सिंड्रोम के कारण बीमार हो गए या उनकी मौत हो गई. नाजी कॉन्संट्रेशन कैंप में रह रहे यहूदियों के साथ ऐसा काफी देखने को मिला.
किस तरह से मिलती है खाने की ट्रेनिंग
– रीफीडिंग सिंड्रोम से बचने के लिए पहले धीरे-धीरे, हल्की और कंट्रोल्ड डायट दी जाती है.
– कमजोर लोगों को शुरुआत में सामान्य से बहुत कम कैलोरी दी जाती है.
– बहुत ज्यादा शुगर या स्टार्च से तुरंत नहीं शुरू किया जाता क्योंकि यह इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन ला सकता है.
– सप्लीमेंट्स को सपोर्ट में दिया जाता है लेकिन काफी नाप-तौलकर. इसमें उम्र और सेहत का ध्यान रखते हैं.
– पहले दिन सिर्फ लिक्विड दिया जाता है, इसके बाद सेमी-सॉलिड डायट से शुरुआत होती है.
इसके बाद क्या होता है
जब शुरुआती डायट सुरक्षित तरीके से मिल जाएं तो धीरे-धीरे खाने की मात्रा और कैलोरी बढ़ाई जाती है. इसे रीफीडिंग ट्रेनिंग कहते हैं. एक साथ भारी खाना नहीं, बल्कि पूरे दिन में 5 से 6 छोटे-छोटे हिस्से दिए जाते हैं. इस दौरान लगातार मॉनिटरिंग की जाती है. दो से तीन हफ्ते में शरीर नॉर्मल खाना लेने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है.
—- समाप्त —-