5 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी
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एक समय बॉलीवुड की एलीगेंट अभिनेत्री के रूप में पहचानी जाने वाली प्रीति झंगियानी आज भारतीय आर्म रेसलिंग की सबसे मजबूत आवाज हैं। पीपुल्स आर्म रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (PAFI) की प्रेसिडेंट और एशियन आर्म रेसलिंग फेडरेशन की पहली महिला वाइस प्रेसिडेंट बनकर उन्होंने इतिहास रच दिया है। ‘पंजा’ को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का उनका सपना प्रो पंजा लीग की सफलता के साथ साकार हो रहा है।
प्रीति मानती हैं कि यह खेल भारत की मिट्टी से जुड़ा है। कम खर्च वाला, सबके लिए और दिल से खेला जाने वाला। अब उनका लक्ष्य है, आर्म रेसलिंग को एशियन और ओलिंपिक गेम्स तक पहुंचाना। हाल ही प्रीति झंगियानी ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। पेश है कुछ प्रमुख अंश..

सवाल- भारत में आर्म रेसलिंग का फेडरेशन कौन-सा है?
जवाब- पीपुल्स आर्म रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (PAFI) है। इस फेडरेशन की मैं प्रेसिडेंट हूं।
सवाल- आप एशियन फेडरेशन से भी जुड़ी हैं, इसके बारे में कुछ बताइए?
जवाब- जी हां, मैं एशियन आर्म रेसलिंग फेडरेशन की वाइस प्रेसिडेंट हूं, और यह बहुत गर्व की बात है कि मैं आर्म रेसलिंग के इतिहास में पहली महिला वाइस प्रेसिडेंट बनी हूं।
सवाल- आजकल आर्म रेसलिंग में क्या बदलाव आ रहा है?
जवाब- मुझे लगता है कि आज आर्म रेसलिंग में बड़ा बूम देखने को मिल रहा है। चाहे आप सोशल मीडिया देखें या टीवी ब्रॉडकास्ट, हर जगह इसका नाम बढ़ा है।
सवाल- क्या आपको लगता है कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का नाम बढ़ रहा है?
जवाब- बिल्कुल। अब इंटरनेशनल देश जाग गए हैं कि भारत में आर्म रेसलिंग यानी पंजा में कितना टैलेंट है।
सवाल- आपने पंजा शब्द का जिक्र किया, क्या विदेशों में भी लोग अब इसे पंजा कहते हैं?
जवाब- हां, बिल्कुल। अब विदेशों में भी आर्म रेसलिंग को लोग पंजा कहने लगे हैं। हाल ही में बल्गेरिया में वर्ल्ड चैंपियनशिप हुई थी, जहां 70 देश शामिल हुए थे। सबको प्रो पंजा लीग के बारे में पता था। सब कहते हैं कि आर्म रेसलिंग मतलब पंजा! यानी हमने उन्हें हिंदी का एक शब्द सिखा दिया।
सवाल- पंजा हमारी परंपरा से जुड़ा खेल है, जिसमें खर्चा कम आता है और कोई भी दिल से मजबूत खिलाड़ी खेल सकता है। इस खेल को आगे बढ़ाने में आपका योगदान क्या है?
जवाब– बिल्कुल सही कहा आपने। इस खेल में खर्च बहुत कम होता है, इसलिए हर बच्चा इसे खेल सकता है। हम जहां भी टूर्नामेंट आयोजित करते हैं, वहां एक टेबल छोड़ जाते हैं ताकि वहां खेल की एक कम्युनिटी बन सके। कई बच्चे बुरी आदतें छोड़कर पंजा खेल से जुड़ जाते हैं क्योंकि इसके नियम आसान हैं और हर कोई इसमें भाग ले सकता है, चाहे महिलाएं हों, बच्चे हों या फिर पैरा एथलीट्स। यह सचमुच एक भारतीय खेल है।

सवाल- आपका और प्रवीण का विजन इतना मजबूत है कि आप इसे एशियन गेम्स और फिर ओलिंपिक तक ले जाना चाहती हैं, क्या यह सही है?
जवाब- जी, यही सपना है। ये खेल पहले ही पैरा यूथ एशियन गेम्स, पुलिस गेम्स और यूनिवर्सिटी गेम्स में शामिल हो चुका है। अगला कदम एशियन गेम्स और फिर राष्ट्रीय पहचान है।
सवाल- शुरुआत में सबसे बड़ी चुनौती क्या थी?
जवाब- हमने बिल्कुल जीरो से शुरुआत की। लोग पूछते थे, क्या पंजा प्रोफेशनल तौर पर खेला जाता है? इसे कौन देखेगा? लेकिन ग्वालियर किले के सामने हुए हमारे इवेंट के बाद सोशल मीडिया पर जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला। यही नंबर और पॉपुलैरिटी दिखाकर हमने ब्रॉडकास्टिंग पार्टनर्स को भरोसा दिलाया कि लोग सच में इसे देखना चाहते हैं।
सवाल- सोशल मीडिया पर पॉपुलर होना ही टीवी पर सफलता की गारंटी क्यों नहीं है, और प्रो पंजा लीग के पहले सीजन की सफलता के पीछे आपकी खास रणनीतियां क्या थीं?
जवाब- सिर्फ सोशल मीडिया पर पॉपुलर होना मतलब टीवी पर भी लोग देखेंगे, ये जरूरी नहीं है। हमने पूरे प्लान के साथ एथलीट्स को ट्रेन किया, उनकी कहानियां लोगों तक पहुंचाईं, कमेंट्री टीम को ट्रेन किया और लीग को प्रॉफिटेबल बनाने के तरीके खोजे। पहले से ही हमारे पास भारत और इंटरनेशनल में फैन बेस था। प्रो पंजा लीग के पहले सीजन को 32 मिलियन यूनिक व्यूअर्स मिले और सोशल मीडिया पर 1.2 बिलियन व्यूज पार कर चुके हैं।
सवाल- आपके पति प्रवीण डबास को स्पोर्ट्स का बहुत शौक है, खासकर MMA और एडवेंचर जैसी चीजों का। जब उन्होंने आपको इन सब चीजों के बारे में बताया, तो आपका पहला रिएक्शन क्या था?
जवाब- जब हमने पहली बार एक आर्म रेसलिंग मैच देखा था, हमें वहां इनवाइट किया गया था। उस खेल का जो जोश और रोमांच है, वो वाकई गजब का होता है। जब प्रवीण जी ने मुझे इस खेल से जुड़ा अपना आइडिया बताया, तो मुझे यकीन था कि ये बहुत बढ़िया और पॉपुलर होने वाला स्पोर्ट है।

सवाल- आपने हमेशा एक एलीगेंट इमेज रखी है, फिर ये पॉवर और खेल से जुड़ा काम कैसे जुड़ा? उस वक्त आपका क्या सोचना था?
जवाब- मुझे कॉम्बैट या ब्लड स्पोर्ट्स में कभी दिलचस्पी नहीं थी, न ही देखती थी। मैं बस टेनिस और क्रिकेट देखती हूं। प्रो पंजाब लीग का क्रिएटिव हिस्सा पूरी तरह परवीन संभालते हैं, मैं बिजनेस और मैनेजमेंट देखती हूं। हमारे पास मेल, फीमेल और स्पेशली-एबल एथलीट्स हैं। अब मेरा रोल ज्यादा फेडरेशन में है। जिसमें सारे स्टेट्स, प्रशासन, एथलीट और ऑफिशियल्स की समस्याएं, टीम को वर्ल्ड व एशियन चैंपियनशिप में ले जाना और इंडिया टीम को लीड करना शामिल है। ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और काफी मेहनत लगती है, क्योंकि ये नॉन-प्रॉफिट काम है।
सवाल- जब आपको पता चला कि आप इंडियन प्रो पंजा फेडरेशन की प्रेसिडेंट और एशियन आर्म रेसलिंग फेडरेशन की वाइस प्रेसिडेंट बनी हैं, तो उस वक्त कैसा महसूस हुआ?
जवाब- हमने पहले ही आर्म रेसलिंग में बहुत काम किया था, इसलिए डर नहीं लगा। सब कुछ सोच-समझकर किया गया ताकि लीग और फेडरेशन के बीच बैलेंस बना रहे, क्योंकि अगर दोनों में टकराव हो तो नुकसान खिलाड़ियों और खेल का होता है। हमारा मकसद यही है कि पॉलिटिक्स या ईगो से दूर रहकर सिर्फ स्पोर्ट को आगे बढ़ाया जाए। इसी वजह से हमने अब इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन जैसे एशियन चैंपियनशिप इंडिया में आयोजित किए, जिससे हमारे ज्यादा भारतीय खिलाड़ी शामिल हो पाएं। क्योंकि यहां आना आसान और सस्ता है, और अब ज्यादा खिलाड़ी भाग ले सकते हैं, सिर्फ वही नहीं जो विदेश जा सकते हैं।

सवाल- आपने स्वेन एंटरटेनमेंट नाम का प्रोडक्शन हाउस शुरू किया, जो नए टैलेंट को प्लेटफॉर्म देता है। इसका आइडिया कहां से आया?
जवाब- पहले मैं कहती थी कि कभी प्रोड्यूसर नहीं बनूंगी, क्योंकि ये बहुत थैंक्सलेस काम है। लेकिन प्रवीन की एक दिल से बनाई गांव पर आधारित फिल्म ‘सही धंधे ही गलत बंदे’ से हमारी शुरुआत हुई। वो फिल्म छोटे बजट में बनी और मुझे बहुत प्यारी है। इसके बाद हमने ऐड और विदेशी फिल्में भी बनाईं। अब हमारा ध्यान ज्यादा स्पोर्ट्स पर है, लेकिन जब पंजा स्पोर्ट्स सेट हो जाएगा, हम फिर फिल्मों पर काम करेंगे, क्योंकि वो हमारी पहली मोहब्बत है।
सवाल- आपके फैंस चाहते हैं कि आप और भी काम करें। राजस्थान वाली फिल्म ‘तावड़ो: द सनलाइट’ के लिए आपको अवार्ड भी मिला है। इन सब को क्या कहना चाहेंगे?
जवाब- बिल्कुल, मैं एक एक्टर के रूप में हमेशा अच्छे रोल्स की तलाश में रहती हूं। हर तरह की अलग तरह की भूमिकाएं करना चाहती हूं। खासकर OTT पर मैं और भी एक्सप्लोर करना चाहूंगी।