भागवत कथा: कुबेरपुत्र नलकूबर और मणिग्रीव का श्रीकृष्ण के हाथों उद्धार

भागवत कथा: कुबेरपुत्र नलकूबर और मणिग्रीव का श्रीकृष्ण के हाथों उद्धार



श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में प्रत्येक घटना केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक अर्थ और कर्मफल की शिक्षा देती है। नलकूबर और मणिग्रीव का उद्धार कथा भी यही सिखाती है कि घमंड, विलास और अहंकार से गिरा हुआ भी, जब भगवान की शरण में आता है, तो मोक्ष पा सकता है।

कान्हा का माखन चुराना और माता की ममता

एक दिन माता यशोदा श्रीकृष्ण को दूध पिला रही थीं। तभी उन्हें ध्यान आया कि चूल्हे पर रखा दूध उबल रहा है। वह जल्दी से कान्हा को गोद से उतारकर रसोई की ओर दौड़ पड़ीं। प्रभु जिनका साक्षात रूप हैं, उन्हें छोड़ माता केवल दूध की चिंता में लग गईं। यही माया है।

पीछे से कृष्ण ने क्रोध में आकर मटकी फोड़ दी। सारा दही मिट्टी में मिल गया। फिर पास में पड़े माखन को निकालकर खाने लगे। वानरों को भी बुला लिया और उन्हें माखन खिलाने लगे।

माता यशोदा ने बांधने की कोशिश की

माता जब लौटीं तो यह दृश्य देखकर क्रोधित हो गईं। उन्होंने रस्सी लेकर कृष्ण को ओखली में बांधने का प्रयास किया, लेकिन हर बार रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ती रही। यह देख माता की भावनाएं बदलने लगीं। प्रभु ने उनकी भक्ति को देखकर स्वयं को बंधने की अनुमति दे दी और अंततः ओखली में बंध गए।

उद्धार की लीला: अर्जुन वृक्षों का गिरना

कृष्ण ओखली से बंधे-बंधे रेंगते हुए नंदभवन के बाहर आए, जहाँ दो विशाल अर्जुन वृक्ष खड़े थे। ये वही नलकूबर और मणिग्रीव थे, जिन्हें नारदजी ने शाप दिया था। श्रीकृष्ण ने ओखली को दोनों वृक्षों के बीच फँसा दिया और जोर से खींचा। भयंकर गर्जना के साथ दोनों पेड़ जड़ से उखड़कर गिर पड़े।

जैसे ही पेड़ गिरे, उनके अंदर से दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए। यह नलकूबर और मणिग्रीव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण की स्तुति की, क्षमा मांगी और प्रभु के चरणों में गिरकर आशीर्वाद प्राप्त किया। श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्ति का वरदान देकर अपने लोक को लौटने की अनुमति दी।

नलकूबर और मणिग्रीव को शाप क्यों मिला?

कुबेर के ये दोनों पुत्र अत्यंत रूपवान और धनवान थे। एक बार वह मद्यपान कर अपनी स्त्रियों के साथ जलक्रीड़ा में लगे हुए थे। तभी वहाँ नारद मुनि पहुंचे। स्त्रियाँ तो लज्जा से वस्त्र धारण कर छिप गईं, लेकिन दोनों कुमार अभिमान में चूर होकर नंगे ही खड़े रहे और नारदजी का उपहास करने लगे।

नारदजी ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम दोनों वृक्ष बनकर खड़े रहो, जैसे आज खड़े हो। स्त्रियों के विलाप करने पर नारदजी ने कहा कि जब द्वापर में श्रीकृष्ण अवतार लेंगे, तब उनके स्पर्श से तुम्हारा उद्धार होगा।

निष्कर्ष

इस लीला से यह स्पष्ट होता है कि भगवान अपने भक्तों की मुक्ति के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। घोर पाप और अहंकार में डूबे हुए जीव भी जब उनके चरणों में शरण लेते हैं, तो उनका उद्धार निश्चित होता है।



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