
शोधकर्ता बताते हैं कि इस तकनीक के लिए किसी खास हाई-टेक उपकरण की जरूरत नहीं है घर या कैफे में पड़ी कोई भी सामान्य वाई-फाई इकाई जो बीमफॉर्मिंग फ़ीडबैक इंफॉर्मेशन (BFI) के रूप में सिग्नल भेजती है इसी काम के लिए प्रयोग में लाई जा सकती है.

BFI सिग्नलें डिवाइसों के बीच बिना एन्क्रिप्शन के आदान-प्रदान होती हैं और इन्हें थर्ड-पार्टी द्वारा पढ़ा जा सकता है. शोधकर्ताओं ने कई लोगों पर परीक्षण कर यह पाया कि इन सिग्नलों से पहचान करने की दर बेहद अधिक थी जिससे निजी प्राइवेसी को गंभीर जोखिम हो सकता है.

यह बात और चिंता बढ़ाती है कि पहले ऐसी निगरानी के लिए बहुतेरी बार लिडार या खास तरह के सेंसर्स चाहिए होते थे, पर अब वही काम सामान्य वाई-फाई हार्डवेयर से भी संभव दिख रहा है. इसका मतलब यह है कि जहां-जहां वाई-फाई है घरों, दफ्तरों, पब्लिक प्लेसेस वहां कोई भी अनधिकृत संस्था या व्यक्ति आसानी से लोगों की मौजूदगी का रिकॉर्ड बना सकता है.

उदाहरण के तौर पर, अगर आप रोज किसी रेस्तरां या कैफे के सामने से गुजरते हैं जहां वाई-फाई चालू रहता है तो आपकी मौजूदगी बिना जानकारी के लॉग हो सकती है और बाद में यह डेटा पहचान या ट्रैकिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

यह तकनीक शोधात्मक और तकनीकी उपलब्धि है पर इसके सामाजिक-नैतिक और कानूनी परिणामों पर गंभीर बातचीत जरूरी है. वैज्ञानिक और नियामक दोनों-ओर से यह स्पष्ट होना चाहिए कि किस हद तक ऐसे सिस्टमों का इस्तेमाल सुरक्षित और पारदर्शी होगा.

आम लोगों को भी अपने वाई-फाई सेटअप, पब्लिक नेटवर्क्स पर कनेक्टिंग आदत और डिवाइस सिक्योरिटी के बारे में सावधानी बरतनी होगी वरना इंटरनेट स्पीड की चिंता के साथ-साथ अब यह भी सोचने की जरूरत आ गई है कि हमारा राउटर कब और कैसे हमारी प्राइवेसी उजागर कर सकता है.
Published at : 15 Oct 2025 10:37 AM (IST)