Tahajjud Ki Namaz Ka Tarika: तहजुद की नमाज रात के आखिरी पहर में नींद से जागकर पढ़ी जाने वाली एक वैकल्पिक (नफ्ल) नमाज है, जो कम से कम 2 और ज्यादा से ज्यादा 12 रकात तक हो सकती है.
इसे पढ़ने के लिए वजू करके, शांत जगह पर नियत करें और फिर सूरह फातिहा के बाद कोई भी सूरह पढ़कर दो रकात पूरी करें. यह नमाज अल्लाह से माफी और रहमत पाने के लिए बेहद अहम मानी जाती है.
तहज्जुद की नमाज
तहज्जुद की नमाज रात के आखिरी हिस्से में पढ़ी जाने वाली एक नफ्ल (स्वैच्छिक) नमाज है, जो अनिवार्य नहीं है, लेकिन बहुत फजीलत वाली मानी जाती है. इसे ईशा के बाद और फज्र से पहले, कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा आठ या बारह रकात तक पढ़ा जा सकता है.
यह इबादत मानसिक शांति और अल्लाह से करीबी हासिल करने के लिए की जाती है.
तुहज्जुद की नमाज कैसे पढ़ी जाती है?
तहज्जुद की नमाज सोने के बाद रात के आखिरी पहर में पढ़ी जाती है, जो कम से कम दो रकात होती है और इसे दो-दो रकात के जोड़े में पढ़ा जाता है. सबसे पहले अच्छे से वजू करें, फिर दो रकात की नियत बांधें और हर रकात में सूरह फातिहा और कोई अन्य सूरह पढ़ें.
रुकू, सजदा और कायदे के बाद सलाम फेर कर नमाज पूरी करें और दुआ मांगें.
तहज्जुद की नमाज का महत्व
तहज्जुद की नमाज पढ़ने का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह आध्यात्मिक उत्थान, अल्लाह से नजदीकी, आंतरिक शांति, और दुआओं के कुबूल होने का एक शक्तिशाली जरिया है.
यह नमाज एक स्वैच्छिक इबादत है जो रात के शांत माहौल में अल्लाह के साथ संबंध को मजबूत करती है. धैर्य और अनुशासन सिखाती है.
अल्लाह से नजदीकी और आशीर्वाद
तहज्जुद की नमाज पढ़ने से अल्लाह से निकटता और आशीर्वाद मिलता है, क्योंकि यह एक ऐसी नफिल नमाज है जो रात के सन्नाटे में अल्लाह से जुड़ने का अवसर देती है.
यह नमाज आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद प्रदान करती है और इसे “रात्रि प्रार्थना” भी कहा जाता है.
दुआओं के कुबूल होने का समय
तहज्जुद की नमाज पढ़ने से दुआएं कुबूल होती हैं, क्योंकि यह अल्लाह के सबसे करीब होने और उसकी रहमत मांगने का एक विशेष समय है.
रात का आखिरी तीसरा पहर वह समय होता है जब अल्लाह अपने बंदों के करीब होते हैं और दुआएं सुनते हैं, और इस नमाज को अदा करने वाले की दुआ कुबूल होने की संभावना अधिक होती है.
पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत
तहज्जुद की नमाज पढ़ना पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत है. यह एक स्वैच्छिक और बहुत ही पुण्य की नमाज है, जिसे पैगंबर ने नियमित रूप से पढ़ा है और मुसलमानों को भी इसे करने के लिए प्रोत्साहित किया है.
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