मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल-1 में गुरुवार को अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए सजा-ए-मौत की सजा की मांग की. अंतरिम सरकार के वकील ने आईसीटी-1 में दलील दी कि जुलाई-अगस्त 2024 में छात्र आंदोलन के दौरान हुई 1,400 हत्याओं के लिए हसीना को ‘1,400 बार मौत की सजा’ मिलनी चाहिए.
पिछले साल 5 अगस्त को बांग्लादेश छोड़कर भागने पर मजबूर हुईं शेख हसीना फिलहाल भारत में हैं. ‘ढाका ट्रिब्यून’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल-1 में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे चीफ प्रॉसिक्यूटर मोहम्मद ताजुल इस्लाम ने पांच दिनों की बहस के बाद अपना पक्ष रखा. उन्होंने छात्र आंदोलन के दौरान हुए ‘मानवता के खिलाफ अपराधों’ के पीछे शेख हसीना को मास्टरमाइंड बताया.
‘द डेली स्टार’ की रिपोर्ट के मुताबिक इस्लाम ने कहा, ‘यदि हर हत्या के लिए अलग-अलग सजा दी जाए, तो हसीना को 1,400 बार फांसी होनी चाहिए. चूंकि यह संभव नहीं, इसलिए हम उनके लिए कम से कम एक मौत की सजा की मांग कर रहे हैं, वरना पीड़ितों के साथ अन्याय होगा.’ उन्होंने दावा किया कि शेख हसीना ने कमांड स्ट्रक्चर के शीर्ष से व्यक्तिगत रूप से शूट-एट-साइट का आदेश दिया. फोन कॉल्स और अन्य सबूतों से उनकी बदला लेने वाली मानसिकता उजागर हुई.
चीफ प्रॉसिक्यूटर ने पूर्व गृह मंत्री आसदुज्जमान खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिदेशक (IGP) चौधरी अब्दुल्लाह अल-मामून के लिए भी मौत की सजा मांगी. उन्होंने आरोप लगाया कि तीनों ने अपराधों को ‘पूर्वनियोजित और व्यवस्थित’ तरीके से अंजाम दिया. अल-मामून ने 10 जुलाई को ट्रिब्यूनल में कबूल किया था कि जुलाई-अगस्त आंदोलन के दौरान हत्याओं और सामूहिक नरसंहार के आरोप सही हैं. उन्होंने सरकार विरोधी प्रदर्शन में शामिल कुछ छात्रों को गायब करने की बात भी स्वीकारी थी.
पूर्व गृह मंत्री कमाल के लिए स्पेशल प्रॉसिक्यूटर ने कहा कि ‘उनके आवास पर नरसंहार की योजनाउ बनी. वह खुद अपराध स्थलों पर जाकर हत्याओं को सुनिश्चित करते थे.’ बता दें कि पिछले साल जुलाई-अगस्त में बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कोटा सिस्टम के खिलाफ शुरू हुआ छात्रों का विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे शेख हसीना सरकार के खिलाफ व्यापक आंदोलन में तब्दील हो गया. वर्तमान अंतरिम सरकार ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के निर्देश पर सुरक्षा बलों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की और लाठी चार्ज किया, जिसमें 1,400 मौतें हुईं.
छात्रों के आंदोलन के कारण बांग्लादेश युद्ध क्षेत्र में बदल गया था. सेना प्रमुख वाकर-उज-जमान ने शेख हसीना को देश छोड़ने की सलाह दी. 5 अगस्त 2024 को हसीना ढाका से भारत भाग आईं और तब से निर्वासन में रह रही हैं. बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल-1 ने शेख हसीना के खिलाफ मुकदमें में पिछले एक महीने में 54 गवाहों के बयान दर्ज किए हैं और क्रॉस-एग्जामिनेशन सुना है, जिसमें मुख्य जांच अधिकारी एमद आलमगीर प्रमुख गवाह हैं.
शेख हसीना और आसदुज्जमान खान कमाल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील एमद आमिर हुसैन ने आलमगीर के बयानों को खारिज किया है. उन्होंने तर्क दिया है कि छात्रों के आंदोलन को कट्टरपंथी और राजनीतिक ताकतों ने हथिया लिया. उनके कारण ही हिंसा भड़की. कानून प्रवर्तन अधिकारियों को प्रदर्शनकारियों की हिंसक कार्रवाइयों के जवाब में गोली चलानी पड़ी.
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