
मंदार पर्वत का उल्लेख पुराणों में विशेष रूप से समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए जब समुद्र मंथन किया था, तब मंदराचल पर्वत के रूप में इसी मंदार पर्वत का उपयोग किया गया था. मंथन के दौरान इसी पर्वत से अमृत, हलाहल विष और अन्य 14 रत्नों की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए यह पर्वत भारतीय पौराणिक परंपरा में अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक माना जाता है.

हिंदू धर्म ग्रंथों में समुद्र मंथन की एक प्रसिद्ध कथा मिलती है. कहा जाता है कि एक समय दैत्यराज बलि का शासन तीनों लोकों पर था. उसकी शक्ति से देवता भयभीत हो गए थे. तब भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि वे असुरों से मित्रता करें और उनकी मदद से क्षीर सागर का मंथन करें ताकि उसमें से अमृत प्राप्त किया जा सके.

समुद्र मंथन के लिए मंदार पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया. देवता और असुर दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन शुरू किया. इस मंथन से कालकूट विष के साथ-साथ अमृत, लक्ष्मी, कामधेनु, ऐरावत, चंद्रमा, शंख और अन्य 14 रत्न निकले.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन श्रावण मास में किया गया था. जब उसमें से विष निकला तो भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उसे पी लिया. उन्होंने विष को अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया. और वे नीलकंठ कहलाए. विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया. इसलिए श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई.

पुराणों में इस क्षेत्र को त्रिलिंग प्रदेश कहा गया है. इसमें पहला लिंग मंदार, दूसरा बाबा वैद्यनाथ और तीसरा बासुकीनाथ माना गया है. इस कारण यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है.

मंदार पर्वत के ऊपरी शिखर पर विष्णु मंदिर और उसके पास जैन मंदिर स्थित है. पर्वत के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर है. कहा जाता है कि भगवान शिव का पहला निवास स्थान मंदार ही था, जो हिमालय से भी प्राचीन माना जाता है. किंवदंती है कि धन्वंतरि के पौत्र देवदास ने भगवान शिव को मनाकर काशी में स्थापित किया था.
Published at : 17 Oct 2025 05:57 PM (IST)
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