भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में जहां एक ओर प्रेम और वात्सल्य की गहराई है, वहीं दूसरी ओर धर्म और भक्ति का संदेश भी छिपा है। यह प्रसंग न केवल उनकी पिता भक्ति को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि ईश्वर भी जब अवतार लेते हैं, तो संबंधों की मर्यादा निभाते हैं।
नंदबाबा का व्रत और वरुणलोक की घटना
श्रीकृष्ण की लीलाओं से व्रज भूमि गूंज रही थी, लेकिन लगातार कुछ संकट भी उपस्थित हो रहे थे। कभी पूतना, कभी तृणावर्त, कभी अघासुर जैसे राक्षस आक्रमण करते रहते थे। नंदबाबा चिंतित थे। उन्होंने सोचा कि पुत्र की सुरक्षा के लिए एकादशी व्रत किया जाए।
कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन नंदबाबा ने व्रत रखा और विधिपूर्वक भगवान की पूजा की। परंतु द्वादशी की तिथि रात्रि में लगने से उन्होंने रात्रि के समय ही यमुना स्नान का संकल्प लिया।
उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि यह असुरों की बेला है। जैसे ही वे यमुना में स्नान के लिए उतरे, वरुण के एक असुर सेवक ने उन्हें पकड़ लिया और वरुणलोक में ले गया।
व्रज में हाहाकार और श्रीकृष्ण का हस्तक्षेप
नंदबाबा के अचानक लापता होने से व्रजवासियों में चिंता और भय का माहौल बन गया। चारों ओर हाहाकार मच गया। जब यह समाचार श्रीकृष्ण को मिला, तो वे सब समझ गए और बिना विलंब किए यमुना में प्रवेश कर गए।
श्रीकृष्ण सीधे वरुणलोक पहुंचे।
वरुण की स्तुति और अपराधबोध
जैसे ही लोकपाल वरुण को ज्ञात हुआ कि स्वयं श्रीकृष्ण उनके लोक में पधारे हैं, वे ससम्मान दौड़े-दौड़े आए और वेदों में वर्णित स्तुतियों से उनकी वंदना करने लगे। उन्होंने कहा कि वे इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
श्रीकृष्ण ने गंभीर स्वर में कहा कि तुमने मेरे पिता का हरण किया है, इसलिए तुम्हें दंड मिलना चाहिए।
वरुण भयभीत हो गए और हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए बोले कि यह सब उनके सेवक की मूर्खता थी। उसने अज्ञानतावश नंदबाबा को पकड़ लिया। उन्होंने श्रीकृष्ण से दया और क्षमा की प्रार्थना की।
श्रीकृष्ण की क्षमा और नंदबाबा की वापसी
श्रीकृष्ण ने वरुण को क्षमा कर दिया और अपने पिता को मुक्त करवाया। वरुण स्वयं उनकी स्तुति करते हुए उन्हें यमुना तट तक छोड़ने आए।
नंदबाबा ने देखा कि स्वयं लोकपाल वरुण उनके पुत्र की आराधना कर रहे हैं। यह दृश्य उनके लिए आश्चर्यजनक था। उन्होंने व्रज लौटकर गोप-गोपियों को सारा प्रसंग सुनाया।
व्रजवासियों की जिज्ञासा और ब्रह्मलोक का दर्शन
नंदबाबा की बात सुनकर सभी व्रजवासियों के मन में यह भावना उठी कि जो पुत्र देवताओं द्वारा पूजित है, क्या वह हमें अपने धाम के दर्शन कराएगा?
श्रीकृष्ण मुस्कराए। उन्होंने व्रजवासियों के मन के भाव समझ लिए और योगमाया के प्रभाव से सभी को ब्रह्मलोक का अंतःकरण में दर्शन करा दिया।
इस कथा से मिलने वाले संदेश
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नंदबाबा का व्रत यह सिखाता है कि धर्मपूर्वक किया गया संकल्प कभी व्यर्थ नहीं जाता।
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श्रीकृष्ण की पिता भक्ति यह दर्शाती है कि ईश्वर भी प्रेम और रिश्तों की मर्यादा का पालन करते हैं।
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देवताओं द्वारा श्रीकृष्ण की आराधना यह सिद्ध करती है कि व्रजवासी अत्यंत पुण्यशाली हैं।
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गोपों को ब्रह्मलोक का दर्शन मिलना इस बात का प्रमाण है कि सच्ची भक्ति से भगवान को पाया जा सकता है।