शकुंतला, दुर्वासा का शाप और भरत की जन्म कथा — भागवत कथा का एक मार्मिक प्रसंग

शकुंतला, दुर्वासा का शाप और भरत की जन्म कथा — भागवत कथा का एक मार्मिक प्रसंग



भारतीय पौराणिक साहित्य में शकुंतला और दुष्यंत की कथा एक अत्यंत भावनात्मक, प्रेरक और गौरवपूर्ण प्रसंग है। यह केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह तप, त्याग, क्षमा, श्राप और पुनर्मिलन की अनूठी यात्रा है। इस कथा में जहां ऋषियों की कठोर तपस्या का वर्णन है, वहीं एक स्त्री की असाधारण सहनशक्ति और एक बालक की महानता की भी झलक मिलती है।

मेनका, विश्वामित्र और शकुंतला का जन्म

ऋषि विश्वामित्र अपनी घोर तपस्या में लीन थे। देवताओं के राजा इंद्र को भय हुआ कि कहीं विश्वामित्र उनकी सत्ता को चुनौती न दे दें। उन्होंने स्वर्ग की अप्सरा मेनका को विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा। मेनका ने कामदेव और वसंत की सहायता से विश्वामित्र को मोहित किया। दोनों ने कुछ समय साथ बिताया, और उनके मिलन से एक कन्या का जन्म हुआ।

मेनका धरती पर अधिक समय नहीं ठहर सकती थी। अतः वह अपनी नवजात कन्या को एक रात विश्वामित्र के आश्रम के पास छोड़कर लौट गई। उस कन्या की रक्षा पक्षियों के एक समूह ने की, इसलिए उसका नाम रखा गया — शकुंतला

कण्व ऋषि द्वारा पालन-पोषण

ऋषि कण्व ने जब उस नवजात कन्या को देखा, तो उनके हृदय में वात्सल्य उमड़ पड़ा। वे उसे अपने आश्रम ले आए और उसे अपनी पुत्री की भांति पाला। शकुंतला एक सुशील, सुंदर और गुणवान कन्या के रूप में बड़ी हुई।

दुष्यंत और शकुंतला का मिलन

एक दिन हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत शिकार करते-करते कण्व ऋषि के आश्रम आ पहुंचे। वहाँ कण्व ऋषि तो नहीं थे, लेकिन शकुंतला से उनका परिचय हुआ। दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए। दुष्यंत ने गंधर्व विधि से शकुंतला से विवाह किया और वचन दिया कि शीघ्र ही उन्हें समाजिक रीति से विवाह करके महल ले जाएंगे।

विदा लेते समय राजा ने शकुंतला को एक अंगूठी दी और कहा कि यह मेरे प्रेम और वचन की निशानी है।

दुर्वासा का शाप

एक दिन जब महर्षि दुर्वासा आश्रम आए, तो शकुंतला ध्यानमग्न होकर अपने पति के ख्यालों में खोई हुई थी। ऋषि ने उसे कई बार पुकारा, परंतु उत्तर न मिलने से वे क्रोधित हो गए और उन्होंने शाप दिया — “जिसके ध्यान में तुम लीन हो, वह तुम्हें भूल जाएगा।”

शकुंतला ने विनती की, तब ऋषि ने कहा, “यदि तुम उसे कोई निशानी दिखाओगी, तो वह सब कुछ याद कर लेगा।”

अंगूठी की खो जाना और भूल की त्रासदी

कण्व ऋषि ने जब शकुंतला की स्थिति जानी, तो उन्होंने उसे राजा दुष्यंत के पास भेजा। शकुंतला के पास वही अंगूठी थी, लेकिन रास्ते में नदी पार करते समय वह अंगूठी पानी में गिर गई और एक मछली ने निगल ली।

राजा के दरबार में जब शकुंतला पहुंची, तो शाप के प्रभाव से दुष्यंत ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया। शकुंतला ने अनेक प्रसंग याद दिलाए, पर कोई लाभ न हुआ। अंततः वह व्यथित होकर आश्रय की खोज में वन की ओर चल पड़ी।

भरत का जन्म और अद्भुत शौर्य

जंगल में शकुंतला ने एक वीर बालक को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया भरत। वह बाल्यकाल से ही अद्भुत साहसी था। वह शेर जैसे हिंसक जानवरों के साथ खेलता और उन पर सवारी करता। पशु भी उसकी आज्ञा मानते।

अंगूठी की पुनर्प्राप्ति और पुनर्मिलन

उधर एक दिन एक मछुआरे को एक बड़ी मछली के पेट से वही अंगूठी प्राप्त हुई। जब उसने वह अंगूठी राजा को दी, तो दुष्यंत को सब कुछ याद आ गया। वे व्यथित हो उठे और शकुंतला की खोज का आदेश दिया।

शकुंतला और भरत को जब खोजा गया, तब राजा स्वयं वहां पहुंचे जहां भरत एक शेर के बच्चे के दांत गिन रहा था। यह दृश्य देखकर राजा स्तब्ध रह गए। उन्हें समझ आ गया कि यही उनका पुत्र है।

भारतवर्ष की स्थापना

राजा दुष्यंत शकुंतला और भरत को लेकर वापस राजधानी लौटे। भरत जब बड़े हुए, तो उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट बनकर अपने राज्य को विशाल साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। उन्हीं के नाम पर इस देश को भारतवर्ष कहा जाने लगा।

निष्कर्ष

यह कथा केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का अद्भुत प्रतिबिंब है। इसमें तपस्या है, प्रेम है, संकल्प है, स्त्री की सहनशक्ति है और अंततः धर्म की विजय है। शकुंतला की तपस्या और भरत का तेज हमें यह सिखाता है कि सत्य और प्रेम की शक्ति अंततः विजयी होती है।



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