Diabetes Driving Safety: लो ब्लड प्रेशर से हो सकता है कार का एक्सिडेंट! इस स्टडी में मिला इस प्रॉब्लम का समाधान

Diabetes Driving Safety: लो ब्लड प्रेशर से हो सकता है कार का एक्सिडेंट! इस स्टडी में मिला इस प्रॉब्लम का समाधान



Blood sugar monitoring device: डायबिटीज के मरीजों के लिए गाड़ी चलाना एक अतिरिक्त जिम्मेदारी का काम होता है, अगर वे ऐसा नहीं करते, तो अनहोनी की आशंका होती है. ब्लड शुगर के उतार-चढ़ाव से नजर, रिएक्शन टाइम और ध्यान बनाए रखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. ये सब बातें सड़क पर सुरक्षित ड्राइविंग के लिए बेहद अहम हैं. लेकिन जापान में हुई हालिया रिसर्च ने इसका एक आसान समाधान खोज निकाला है, कॉन्टिन्युअस ग्लूकोज मॉनिटर अलर्ट्स. चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं कि यह क्या है और इसका प्रभाव क्या होता है.

हाइपोग्लाइसीमिया और ड्राइविंग का खतरा

डायबिटीज से जुड़े ड्राइवरों के सामने सबसे बड़ी चिंता होती है हाइपोग्लाइसीमिया, यानी खून में शुगर लेवल का बहुत नीचे गिर जाना. यह अचानक हो सकता है और लक्षणों में कन्फ्यूज़न, ध्यान न लगना, धुंधली नजर, कमजोरी और बेहोशी तक शामिल हैं, जो गाड़ी चलाने को बेहद खतरनाक बना सकते हैं. हालांकि, ब्लड शुगर कम होने से बचने के कुछ सामान्य तरीके हैं, जिसमें पहले नंबर पर है ड्राइव करने से पहले खाना खाना या बीच में ब्लड शुगर चेक करना. लेकिन रिसर्च दिखाती है कि अधिकतर लोग इन सावधानियों का नियमित रूप से पालन नहीं करते. इसी वजह से वैज्ञानिकों ने एक बेहतर विकल्प की तलाश की, जो उन्हें CGM तक ले गया.

क्या कहते हैं नतीजे?

CGM ने डायबिटीज मैनेजमेंट में क्रांति ला दी है, क्योंकि इससे मरीज बिना बार-बार फिंगर प्रिक टेस्ट किए अपने ब्लड शुगर पर नजर रख सकते हैं. कई CGMs में लो-ब्लड शुगर अलर्ट फीचर होता है, जो शुगर लेवल एक तय सीमा से नीचे जाते ही साउंड या वाइब्रेशन के जरिए चेतावनी देता है ताकि समय रहते कदम उठाए जा सकें. इस स्टडी में 30 डायबिटीज मरीजों को शामिल किया गया, जो हफ्ते में कम से कम तीन बार गाड़ी चलाते थे. उसके बाद इसके नतीजे पर पहुंचा गया कि यह काम कैसे करेगा. इस दौरान कुछ बातों पर ध्यान दिया गया, जैसे कि

  • पहले चार हफ्तों तक उन्होंने ऐसे CGM इस्तेमाल किए जिनमें अलर्ट ऑन था.
  • फिर आठ हफ्तों के वॉशआउट पीरियड के बाद, उन्होंने चार हफ्तों तक बिना अलर्ट वाले CGM का इस्तेमाल किया.

आपको बताते चलें कि इस दौरान यह निकलकर सामने आया कि अलर्ट्स 80 mg/dL पर सेट थे, यानी हाइपोग्लाइसीमिया की सीमा (70 mg/dL) तक पहुंचने से पहले ही चेतावनी मिल जाती थी. रिसर्चर्स का कहना है कि इससे ड्राइवरों को पर्याप्त समय मिला कि वे तुरंत कुछ खाकर शुगर लेवल संभाल लें.

रिसर्च में क्या निकला?

स्टडी के दौरान किसी भी तरह का ट्रैफिक एक्सिडेंट नहीं हुआ, लेकिन कई प्रतिभागियों को हाइपोग्लाइसीमिया जरूर हुआ. अंतर इतना था कि बिना अलर्ट के 33 प्रतिशत प्रतिभागियों को हाइपोग्लाइसीमिया हुआ. इसके अलावा अलर्ट के साथ सिर्फ 19 प्रतिशत लोगों को हुआ.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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